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Manohar Kahaniya : प्रेमी की जलसमाधि

लेखक- श मो. आसिफ ‘कमल’ एडवोकेट 

9 जून, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के चंदौसी शहर का रहने वाला इस्तफर खान अपने मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर शहर की कोतवाली पहुंचा. उस ने कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा से मुलाकात कर बताया, ‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान पिछले महीने की 19 तारीख से गायब है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है.’’ ‘‘क्या..? वह 19 मई से गायब है और पुलिस के पास 20 दिन बाद आए हो? इतने दिनों तक कहां थे?’’ कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने हैरानी से पूछा.

‘‘साहब, हम सब घर वाले अपने स्तर से उसे तलाश कर रहे थे. हम ने उसे सभी जगह पर ढूंढा मगर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा है.’’ कहते हुए इस्तफर की आंखों में आंसू छलक आए. ‘‘कितनी उम्र है तुम्हारे बेटे की और वह क्या करता है? वह गायब कैसे हुआ? सब विस्तार से बताओ.’’ कोतवाल ने कहा.

‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान शादीश्ुदा है, उस के 2 बच्चे भी हैं. वह मकानों और कोठियों में रंगाईपुताई का काम ठेके पर लेता है. दूसरे शहरों में भी उस का ठेका चलता रहता है. 19 मई, 2021 को वह काम के सिलसिले में अलीगढ़ गया था. वह जब कभी बाहर जाता था तो अपनी बीवी और घर वालों से फोन पर बात करता रहता था. लेकिन उस के जाने के एकदो दिनों तक फोन नहीं आया तो हम ने उस का नंबर मिलाया. उस का फोन बंद आ रहा था. तब से आज तक उस का फोन बंद ही आ रहा है.

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‘‘इस से हम लोगों की चिंता बढ़ गई. अलीगढ़ में उस का काम कहां चल रहा था, यह तो हमें पता नहीं. फिर भी हम ने अपने स्तर से उसे सभी जगह ढूंढा. जब कहीं नहीं मिला तो हुजूर हम आप के पास आए हैं. आप उस का पता लगा दीजिए.’’ रोआंसे हो कर हाथ जोड़ते हुए इस्तफर गिड़गिड़ाया. ‘‘देखिए, आप ने थाने आने में बहुत देर कर दी. फिर भी हम उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करेंगे. आप बेटे का एक फोटो और तहरीर लिख कर दे दीजिए. चिंता मत करो, पुलिस जल्द ही उस की खोजबीन
कर लेगी.’’

इस के बाद इस्तफर ने लिख कर लाई हुई तहरीर और बेटे का फोटो कोतवाल साहब को दे दिया. इस के आधार पर फहीम खान की गुमशुदगी दर्ज कर ली. कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

गुमशुदगी दर्ज होने के बाद कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने जांच चौकी इंचार्ज एसआई उमेंद्र मलिक को सौंप दी. वह अपनी टीम के साथ गुमशुदा फहीम की तलाश में जुट गए. पुलिस ने फहीम खान का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया. उस के फोन की अंतिम लोकेशन अलीगढ़ की मिली. जिस इलाके की लोकेशन मिली थी, पुलिस टीम ने अलीगढ़ पहुंच कर उस इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने फहीम के बारे में जांच कराई तो पता चला कि वह आशिकमिजाज व्यक्ति था. तब उन्होंने इसी दिशा में जांच करने के निर्देश एसआई उमेंद्र मलिक को दिए.

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शाहिदा से चल रहा था चक्कर

इंसपेक्टर की लाइन पर काम करते हुए चौकी इंचार्ज उमेंद्र मलिक ने जांच शुरू की. चौकी इंचार्ज को जानकारी मिली कि फहीम का रामपुर जिले के पटवाई गांव की शाहिदा के साथ चक्कर चल रहा था.
फहीम की शाहिदा से मुलाकात उस की एक परिचित अफसाना ने कराई थी. अफसाना अलीगढ़ के फिरदौस नगर की रहने वाली थी और उस का निकाह सलीम उर्फ शंभू से हुआ था. सलीम फिरदौस नगर में ही अफसाना के साथ किराए पर रहता था. वह फहीम के घर भी आतीजाती थी. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम एक बार फिर अलीगढ़ पहुंची और सलीम व उस की पत्नी अफसाना को पूछताछ के लिए चंदौसी ले आई.

पुलिस ने उन दोनों से फहीम के बारे में पूछा तो वे अनभिज्ञता जताने लगे कि सलीम को जानते ही नहीं हैं, लेकिन जब उन से सख्ती की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि फहीम इस वक्त दुनिया में नहीं है. हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश हरदुआगंज की नहर में फेंक दी थी. हत्या की खबर सुनते ही पुलिस भी चौंक गई. पुलिस को फहीम की लाश बरामद करनी थी इसलिए उन दोनों को साथ ले कर हरदुआगंज में नहर के ऊपर बने पुल पर पहुंची. वहीं से उन्होंने उस की लाश नहर में फेंकी थी.

पुलिस ने गोताखोरों की मदद से जाल डलवा कर वहां लाश की खोजबीन कराई, लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस ने उस क्षेत्र के थानों में संपर्क कर किसी पुरुष की लावारिस लाश बरामद करने के बारे में पूछा. तब वहां के थानाप्रभारी ने बताया कि 28 मई को नहर के किनारे से 2 लाशें बरामद हुई थीं, जिन का अंतिम संस्कार भी कर दिया था. दोनों के कपड़े पुलिस के पास सुरक्षित रखे थे. पुलिस ने वे कपड़े फहीम खान के घर वालों को दिखाए. इतने दिनों में कपड़ों की हालत भी खराब हो चुकी थी, लेकिन फहीम खान की पत्नी ने पेंट पहचान ली. क्योंकि उस ने पति फहीम की टाइट पेंट उधेड़ कर ढीली की थी.

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इस के बाद पुलिस ने अफसाना की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस की सहेली शाहिदा और उस के भाई जीशान को भी गिरफ्तार कर लिया. इन चारों से पूछताछ करने के बाद फहीम की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी— उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध जनपद पीतल नगरी मुरादाबाद से सटा जिला संभल है. चांदी के वर्क बनाने के आवा, मेंथा, तंबाकू और आलू की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. साथ ही सींग व हड्डी से कंघी, बटन व अन्य शोपीस के कारोबार से संभल की पहचान भी दूरदूर तक हो गई है.

संभल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर जैसा तहसील मुख्यालय चंदौसी है. चंदौसी के सीकरी गेट मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी के बगल में ही इस्तफर खान का परिवार रहता था. उस के 4 बेटे थे. तसव्वुर खान, फहीम खान और वसीम खान का विवाह हो चुका था. जबकि चौथा बेटा सलीम खान अविवाहित था. बेटों के अलावा इस्तफर की 4 बेटियां भी थीं, जिस में से एक की मृत्यु हो चुकी थी. फहीम खान रंगाईपुताई का ठेकेदार था.

मजार पर हुई थी मुलाकात

फहीम का अलीगढ़ में भी ठेके का काम चल रहा था. वहीं पर उस की एक दिन क्वारसी क्षेत्र के फिरदौस नगर के रहने वाले सलीम उर्फ शंभू से मुलाकात हुई, जो बाद में दोस्ती में बदल गई. इस के बाद सलीम और उस की पत्नी अफसाना का फहीम के घर आनाजाना शुरू हो गया. एक तरह से दोनों के पारिवारिक संबंध हो गए थे. धार्मिक विचारों का फहीम बदायूं में स्थित नामी मजार पर जाता रहता था. इन्हें छोटे सरकार और बड़े सरकार के नाम से जाना जाता है. एक बार अफसाना भी उस के साथ थी. मजार पर अफसाना की सहेली शाहिदा भी मिल गई. शाहिदा अफसाना की सहेली थी, जो रामपुर जिले के गांव हाजीनगर में रहती थी.

यह साल 2013 की बात है. शाहिदा की मां भी बदायूं शरीफ में अकसर आती थीं और कईकई दिन वहां रुकती थीं. इन के 3 बेटे और 3 ही बेटियां हैं. रजिया, नाजिया व शाहिदा तथा भाई जीशान भी मां के साथ बदायूं आताजाता रहता था. शाहिदा अफसाना की सहेली बन गई थी. फहीम पहली मुलाकात में ही शाहिदा को अपने दिल में बसा चुका था. बाद में इन दोनों की फोन पर बातें होने लगीं. इन के बीच हुई दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. फहीम शाहिदा के ऊपर खूब पैसे खर्च करता था. क्योंकि उस समय तक वह अविवाहित था.

मिलते रहे छिपछिप कर

दोनों ही जिंदगी साथ गुजारने और भविष्य के सुनहरे सपनों का तानाबाना बुनते रहते. एक दिन फहीम खान की बांहों में समाई शाहिदा ने कहा कि हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे, जल्दी शादी करो और मुझे अपने घर ले चलो. इस पर फहीम ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा. मैं ने सऊदी अरब जाने की योजना बना ली है और वहां नौकरी मिल गई है. वहां से खूब सारा पैसा कमा कर लाऊंगा, फिर दोनों अपने अलग घर में आराम से जिंदगी गुजारेंगे.’’ उसी दौरान फहीम सऊदी अरब चला गया. वह कई साल बाद वहां से लौटा तो काफी उपहार अपनी प्रेमिका शाहिदा को भी ला कर दिए.

एक दिन प्रेमीप्रेमिका दोनों अपने भविष्य का तानाबाना बुन रहे थे तभी शाहिदा के मोबाइल की घंटी बजी. फोन फहीम खान ने रिसीव किया. काल करने वाले की बात फहीम के कानों में जैसे जहर घोल गई. वह बोला, ‘‘कैसी हो मेरी जान? मैं ने कल भी काल की थी, लेकिन रिसीव नहीं की. कोई परेशानी हो तो बताओ, गुलाम तुरंत हाजिर होगा.’’फहीम कुछ देर तक चुपचाप उस की बातें सुनता रहा. फिर फोन करने वाले को उस ने गालियां दीं तो उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

इस के बाद तो फहीम को गुस्सा आ गया. वह सोचने लगा कि कौन है, जो उस की प्रेमिका से इस तरह बात कर रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि शाहिदा का ही प्रेमी हो.फहीम ने इस बारे में शाहिदा से पूछताछ की तो उलटे शाहिदा फहीम से लड़ने के लिए तैयार हो गई. दोनों ओर से बात बढ़ गई तभी शाहिदा अपना आपा खो बैठी और फहीम खान पर हाथ उठा दिया, जिस से नाराज हो कर फहीम ने भी शाहिदा की जम कर पिटाई कर डाली.

अब फहीम ने तय कर लिया कि वह यह पता लगा कर रहेगा कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है या नहीं. कुछ दिनों में फहीम ने जानकारी निकाल ली कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है. प्रेमिका शाहिदा किसी और युवक से प्रेम करने लगी है. शाहिदा की इस बेवफाई से फहीम खान को गहरा आघात लगा. इसी बात से दोनों के बीच ऐसी दरार पड़ी कि संबंधविच्छेद हो गए.

फहीम खान खोयाखोया सा रहने लगा. उस के दिल टूटने का एहसास परिजनों को हुआ तो उन्होंने फहीम खान का विवाह बरेली शहर में कर दिया. यह बात करीब 4 साल पहले की है. अब उस के 2 बच्चे भी हैं.
उधर शाहिदा से उस के दूसरे प्रेमी ने कई साल रिलेशनशिप रखी. दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन अंत शाहिदा के अनुमान के विपरीत निकला. दूसरे प्रेमी ने उस से शादी से साफ इनकार कर दिया. इस से शाहिदा के दिल के अरमां आंसुओं में बहने लगे.

रोरो कर शाहिदा का जीवन गुजरने लगा. परिजनों से भी उस का हाल देखा नहीं जाता था. शाहिदा ने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन परिजनों की कड़ी निगरानी के कारण सफल न हो सकी.
शाहिदा को अपने पहले प्रेमी फहीम खान की याद सताने लगी, लेकिन फहीम खान का मोबाइल नंबर उस के पास नहीं था. शाहिदा ने अपनी सहेली अफसाना से फहीम खान का मोबाइल नंबर लिया. शाहिदा से संबंध टूटने के बाद फहीम खान ने अपना नंबर बदल लिया था. उस का अफसाना से फोन से बातचीत व मेलजोल बरकरार था. अफसाना से फहीम का फोन नंबर ले कर एक दिन शाहिदा ने फहीम खान को फोन किया और मिलने की गुजारिश की. फहीम ने सोचा कि पुरानी घटना के जख्म माफी तलाफी से धुल जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि बाद में उन दोनों के बीच तल्खी और बढ़ गई.

और ज्यादा खराब हो गए संबंध

फहीम खान उस के फोन करने से और भी ज्यादा आक्रामक हो गया. दोनों में फोन पर जम कर नोकझोंक होती रहती. यह बात शाहिदा के भाई जीशान को बहुत नागवार गुजरी. उसे लगा कि फहीम की वजह से ही उस की बहन दुखी है. लिहाजा उस ने अफसाना से बात कर के फहीम खान को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. योजना के तहत अफसाना से फोन करा कर फहीम खान को 19 मई, 2021 को अलीगढ़ बुला लिया. उसी रात उसे खाने में नशीला पदार्थ खिलाया.

बेहोश हो जाने पर अफसाना व उस के पति सलीम उर्फ शंभू तथा जीशान और उस की बहन शाहिदा ने फहीम को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. वे उसे हरदुआगंज क्षेत्र में स्थित नहर के बरेठा पुल पर ले गए और उस के शरीर से भारी पत्थर बांध कर नहर में जिंदा ही फेंक दिया. पानी में डूब जाने से फहीम की मौत हो गई. चारों अभियुक्तों के गिरफ्तार हो जाने के बाद एसपी चक्रेश मिश्रा ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस मामले का खुलासा किया.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी शाहिदा, उस के भाई जीशान, सहेली अफसाना और उस के पति सलीम उर्फ शंभू को गिरफ्तार कर 23 जून, 2021 को न्यायालय के समक्ष पेश किया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया

Family Story in Hindi : जिंदगी की उजली भोर – भाग 3

‘‘एमबीए के बाद मुझे अहमदाबाद में अच्छी नौकरी मिल गई. अकसर गांव चला जाता. एक बार मैं ने रोशनी में बड़ा फर्क देखा, वह खूब हंसती, मुसकराती, गुनगुनाती, जैसे घर में रौनक उतर आई. पापा भी खूब खुश दिखते. फिर मैं 3-4 माह गांव न जा सका. फिर तुम से शादी तय हो गई. मैं शादी के लिए गांव गया. पर बहुत सन्नाटा था. बस, पापा और बाबू ही घर पर थे. पापा बेहद मायूस टूटेबिखरे से थे. घर में रोशनी नहीं थी. दिनभर पापा चुपचुप रहे. रात जब मेरे पास बैठे तो उदासी से बोले, ‘रोशनी चली गई. मैं ने ही उसे जाने दिया. वह और उस का सहपाठी अजहर बहुत पहले से एकदूसरे को चाहते थे. पर अजहर के मांबाप उस से शादी करने के लिए नहीं माने. वह नाराज हो कर बाहर चला गया. आखिर मांबाप इकलौते बेटे की जुदाई सहतेसहते थक गए. उसे वापस बुलाया और रोशनी से शादी पर राजी हो गए. अजहर आ कर मुझ से मिला, सारी बात बताई. मैं रोशनी की खुशी चाहता था. सारी जिंदगी उसे बांध कर रखने का कोई फायदा न था.

‘‘‘मुझे पता था कि उस ने अकेलेपन और एक सहारा पाने की मजबूरी में मुझ से शादी की थी. मुझ से शादी के बाद भी वह बुझीबुझी ही रहती थी. बस, जब अजहर ने उसे आने के बारे में बताया तब ही उस के चेहरे पर हंसी खिल उठी. फिर मेरी व उस की उम्र में फर्क भी मुझे ये फैसला करने पर मजबूर कर रहा था. मैं ने उसे अजहर के साथ जाने दिया. बस, एक दुख है, उस की कोख में मेरा अंश पल रहा था. मैं ने उस से वादा किया, बच्चा होने के बाद मैं तलाक दे दूंगा. फिर वह अजहर से शादी कर ले. उसे यह यकीन दिलाया कि बच्चे की पूरी जिम्मेदारी मैं उठाऊंगा. अब बेटा, यह जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपता हूं कि रोशनी की शादी के पहले तुम उस से बच्चा ले लेना और उस की परवरिश तुम ही करना.  यह मेरी ख्वाहिश और इल्तजा है.’

‘‘रूना, मैं ने उन्हें वचन दिया था कि यह जिम्मेदारी मैं जरूर पूरी करूंगा. अभी तक अजहर ने रोशनी को अलग फ्लैट में बड़ौदा में रखा है. वहीं उस ने बच्ची को जन्म दिया. पापा ने तलाक दे दिया. बस, वह बच्ची के जरा बड़े होने का इंतजार कर रही है ताकि वह बच्ची को हमें सौंप कर अजहर से शादी कर के नई जिंदगी शुरू कर सके. मैं बच्ची के सिलसिले में ही रोशनी से मिलने जाता था. उस की जरूरत का सामान दिला देता था. अजहर ने अपने घर में रोशनी की शादी और बच्ची के बारे में नहीं बताया है. जब हम इस बच्ची को ले आएंगे तो वे दोनों नवसारी जा कर शादी के बंधन में बंध जाएंगे.’’

यह सब सुन कर वह खुशी से भर उठी और इतना समझदार और जिम्मेदार पति पा कर उसे बहुत गर्व हुआ. उसे याद आया, सीमा ने उसे बताया था कि बड़ौदा मौल में समीर एक खूबसूरत औरत के साथ था. तो वह औरत रोशनी थी. अच्छा हुआ, उस ने इस बात को ले कर कोई बवाल नहीं मचाया. समीर ने रूना का हाथ थाम कर प्यार से कहा, ‘‘रूना, मेरी इच्छा है कि हम रोशनी की बच्ची को अपने पास ला कर अपनी बेटी बना कर रखेंगे, इस में तुम्हारी इजाजत की जरूरत है.’’ समीर ने बड़ी उम्मीदभरी नजरों से रूना को देखा, रूना ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मां खोने का दुख मैं उठा चुकी हूं. मैं बच्ची को ला कर बहुत प्यार दूंगी, अपनी बेटी बना कर रखूंगी. मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे आप जैसा शौहर मिला. आप एक बेमिसाल बेटे, एक चाहने वाले शौहर और एक जिम्मेदार भाई हैं. हम कल ही जा कर बच्ची को ले आएंगे. मैं उस का नाम ‘सवेरा’ रखूंगी क्योंकि वह हमारी जिंदगी में एक उजली भोर की तरह आई है.’’

समीर ने खुश हो कर रूना का माथा चूम लिया. उसे सुकून महसूस हुआ कि उस ने पापा से किया वादा पूरा किया. समीर और रूना के चेहरे आने वाली खुशी के खयाल से दमक रहे थे.

मैं अपनी टीचर के प्रति आकर्षित हूं, पर वे उम्र में मुझ से काफी बड़ी हैं, मैं क्या करूं ?

सवाल
मेरी उम्र 18 साल है, मैं अपनी टीचर के प्रति आकर्षित हूं. मैं जानता हूं कि वे उम्र में मुझ से काफी बड़ी हैं. मगर मैं क्या करूं? कितनी भी कोशिश कर लूं, उन्हें एक पल को भी भूल नहीं पाता.

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जवाब
इस उम्र में टीचर्स या सीनियर्स के प्रति आकर्षित होना सामान्य बात है. मगर आप दोनों के बीच उम्र का फासला काफी ज्यादा है, इसलिए उन्हें भूल जाएं. शिक्षक और छात्र के रिश्ते की मर्यादा को मान देते हुए उन्हें सिर्फ एक गुरु की नजरों से देखें. अपना मन दूसरे रचनात्मक कामों में लगाएं. पढ़ाई में मेहनत कर अच्छे नंबर लाएं और उन की नजरों में ऊपर उठें. उन की नजरों में खुद को तलाशना छोड़ दें क्योंकि इस से आप को कुछ हासिल नहीं होने वाला. वे उम्र में बड़ी हैं और संभवतया शादीशुदा भी होंगी.

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आप अभी पढ़ाईलिखाई में मन लगाएंगे तो ही ऊंचे ओहदे पर पहुंचेंगे और भविष्य सुखमय बीतेगा. फिर कोई भी सुंदर लड़की आप की हमसफर बनने को तैयार हो जाएगी.

पाकिस्तानी औरतें

कट्टरपंथियों की एक विशेष कला है कि वे हर सवाल उठाने वाले के बारे में खोज कर कुछ बकने लगते हैं या किसी और मुद्दे की, कहीं और की बात करने लगते हैं. पाकिस्तान में ‘औरत मार्च’ का आयोजन किया गया जिस में सैकड़ों औरतों ने अपने हकों की मांग करते हुए देश के कई  शहरों  में जुलूस निकाले. फैसलाबाद में इस पर बैन लगा दिया गया जिस पर दुनियाभर के मानवीय अधिकार गुटों ने आपत्ति की.

पाकिस्तान में औरतों की आजादी न के बराबर है. वहां धर्म का हवाला दे कर बारबार कहा जाता है कि वे सिर्फ मर्दों की खिदमत करें, उन से मार खाएं, उन के बच्चे पालें और अगर मार डाली जाएं तो चुपचाप दफन हो जाएं. कुछ पढ़ीलिखी औरतों को यह सब स्वीकार नहीं है और वे औरतों को मर्दों की तरह की बराबरी दिलाना चाहती हैं.

समस्या वही है जो भारत में है. भारत की तरह वहां भी कट्टरपंथी एकदम कूद पड़े कि एक तरफ कोविड फैल रहा है और ये औरतें मार्च निकालना चाहती हैं. कुछ को कश्मीर याद आ गया. कुछ धर्म का फायदा समझाने लगे. कुछ भारत को दोष देने में लग गए.

जब औरतों ने पुलिस से इस मार्च की इजाजत चाही तो, जैसा भारत में होता है,  इजाजत नहीं दी गई. शासन को लगा कि ये औरतें सारे सामाजिक ढांचे को बिगाड़ देंगी जिस में मर्द को मुफ्त की गुलाम मिलती हैं. पुलिस ने मार्च निकालने पर उतारू छात्राओं को धमकियां देनी शुरू कर दीं और उन्हें गिरफ्तार करने का अपना अधिकार जता दिया. एक इस्लामी गुट के बयान का हवाला दे दिया जिस में धमकी दी गई थी कि अगर ‘औरत मार्च’ फैसलाबाद में निकाला गया तो इस के बहुत बुरे नतीजे सामने आएंगे.

पुलिस कमिश्नर साहब औरतों के डैलीगेशन को समझाते रहे कि पाकिस्तान में तो औरतें आजाद हैं, फिर मार्च की क्या जरूरत. उन्हें या तो पता नहीं या जान कर अनजान बन रहे थे कि 4 वर्षों पहले अमेरिका तक में ऐसा मार्च निकालने की जरूरत पड़ी क्योंकि वहां भी औरतें बेहद घुटन महसूस करती हैं. कट्टर पाकिस्तान भारत और बंगलादेश की तो बात ही क्या है?

हां, इतना अवश्य संतोष है कि पाकिस्तान की औरतों ने मार्च निकालने का मन बनाया. पाकिस्तान की हुकूमत को उन से डर भी लगा. यह भी एक उपलब्धि है जो कम नहीं है.

Family Story in Hindi – नो प्रौब्लम

Family Story in Hindi – छलना- भाग 3 : क्या थी माला की असलियत?

माला ने मौन व्रत धारण कर लिया. क्रोध से आपा खो बैठी रमा. उस के केश पकड़ कर चिल्लाई, ‘‘जो अपने पति की नहीं हुई हमारी कैसे होती. तुझे मालूम है तेरे जाने के बाद तेरा महेश बदहवास हालत में लुटालुटा सा तुझे खोजा करता था. पता नहीं कहां है वह बेचारा.’’

माला ने अचानक चुप्पी तोड़ी और चीखने लगी, ‘‘बचाओ, बचाओ…’’

उस की चीखपुकार सुनते ही वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी. घबरा कर रमा ने माला के केश छोड़ दिए. वहां रुकना उचित न समझ कर शलभ ने रमा की बांह पकड़ी और उसे टैक्सी की ओर खींच कर ले चला.

चलतेचलते वह बोला, ‘‘यहां तमाशा खड़ा न कर के हमें चुपचाप मेरठ में इस के तमाम कर्जदारों को इस का अतापता बता देना चाहिए, वही आगे की कार्यवाही करेंगे.’’

‘‘अतापता ’’ इधरउधर देखते हुए दोहराया रमा ने, ‘‘अरे, यह कौन सी जगह है हमें तो मालूम ही नहीं. रुको अभी आती हूं घर का नंबर, गलीमहल्ला सब पता कर के…’’

रमा जैसे ही पलट कर माला के घर के पास पहुंची तो जड़ हो गई. माला ताली पीटपीट कर हंसते हुए पूछ रही थी, ‘‘कहो मां, कैसी थी मेरी ऐक्टिंग  छुट्टी कर दी न मैं ने माला दीदी की  अब इधर आने की दोबारा जुर्रत नहीं करेंगी…’’

अनुभा मौसी ने शाबासी दी बेटी को, ‘‘मान गए भई, तू ने तो टौप हीरोइंस को भी मात कर दिया. क्या ऐक्टिंग थी तेरी. अब तो तू हीरोइन बनेगी…’’

सामने खड़े हीही कर रहे थे महेश व माला के पिता. रमा को काटो तो खून नहीं. उस में कुछ पूछने और सुनने की शक्ति नहीं थी. लौट कर आ बैठी कार में. पति को सारा वृत्तांत सुना कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. सब की मिलीभगत थी. धोखा दे कर पैसा ऐंठने की अपनी सफलता पर जश्न मना रहे थे वे सब. बड़ी ही मासूमियत से सरल हृदयी लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर के छला था माला महेश ने.

 

बीमारी नहीं है पीरियड्स

किशोरावस्था लड़कियों के जीवन का वह समय होता है जिस में उन्हें तमाम तरह के शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. इस दौरान लड़कियां अपने शरीर में होने वाले बदलावों से अनजान होती हैं, जिस की वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिस में उलझन, चिंता और बेचैनी के साथसाथ हर चीज के बारे में जानने की उत्सुकता रहती है. लड़कियों को उन के परिवार के सदस्यों द्वारा न ही बच्चा समझा जाता है और न ही बड़ा. ऐसे में उन के प्रति कोई भी लापरवाही घातक हो सकती है.

लड़कियों में किशोरावस्था की शुरुआत 9 वर्ष से हो जाती है, जो 19 वर्ष तक रहती है. जब लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती है तो उस के प्रजनन अंगों में तमाम तरह के परिवर्तन बड़ी तेजी से होते हैं. इसी दौरान लड़कियों में पीरियड्स की शुरुआत होती है, जो उन के प्रजनन तंत्र के स्वस्थ होने का संकेत देती है.

किशोरावस्था की शुरुआत में परिवारजनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बेटी की उचित देखभाल करने के साथसाथ उसे भलेबुरे का भी परामर्श देते रहें, क्योंकि यह एक ऐसी उम्र है जिस में लड़की सपनों की दुनिया बुनने की शुरुआत करती है. ऐसे में लड़कियां उचित देखभाल व परामर्श न मिलने से गलत कदम भी उठा सकती हैं.

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हर लड़की के मातापिता को चाहिए कि वे तमाम शारीरिक परिवर्तनों के बारे में उसे पहले से अगवत कराएं, जिस से वह अपने शारीरिक बदलाव का मुकाबला करने में सक्षम हो पाए. किशोरावस्था में लड़की के प्रजनन अंगों से अचानक खून आना उसे मानसिक रूप से विचलित कर सकता है, इसलिए यह जरूरी है कि इस के बारे में लड़की को पहले से ही जानकारी हो. जिस से पीरियड्स में अस्वच्छता से होने वाली बीमारियों व संक्रमण से उस का बचाव किया जा सके.

क्या है पीरियड्स

महिला रोग विशेषज्ञ डा. प्रीति मिश्रा के अनुसार, लड़कियां में मुख्यत: 2 अंडाशय, गर्भाशय व उस को जोड़ने वाली फैलोपियंस ट्यूब नामक 2 नलियां होती हैं. यही आगे चल कर स्वस्थ बच्चा जनने में सहायक होती हैं. लड़की जब जवान होती है तो उस के अंडाशय से हर सप्ताह 1 अंडा फूट कर बाहर आने लगता है, जो बच्चेदानी की भीतरी दीवार पर हर माह जमने वाले खून की परत से जा कर चिपक जाता है. अगर इस दौरान लड़की के अंडे से पुरुष शुक्राणु नहीं मिलते तो बच्चेदानी के अंदर जमी खून की परत टूट जाती है और ये अंडे शरीर से बाहर निकलने लगते हैं, जिसे पीरियड्स के रूप में जाना जाता है.

पीरियड्स के पहले दिन से ले कर 2 सप्ताह बाद तक अंडाशय में नया अंडा फूटने के लिए तैयार होने लगता है और गर्भाशय में दोबारा खून की नई परत जमने लगती है. इसी प्रकार यह मासिक चक्र चलता रहता है. महिलाओं में माह के 28वें दिन पीरियड्स आने का समय होता है, अगर इस से पहले स्त्री का अंडाणु और पुरुष का शुक्राणु मिल जाएं तो गर्भ ठहर सकता है और पीरियड्स बंद हो जाती है.

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पीरियड्स के दौरान आमतौर पर एक महिला की योनि से 35 से 50 मिलीलिटर खून निकलता है, जो कभीकभी इस मात्रा से अधिक भी हो सकता है. ऐसी अवस्था में कभी भी उसे घबराना नहीं चाहिए. आमतौर पर पीरियड्स का चक्र 2 से 7 दिन तक चलता है, जिस के शुरुआती दिनों में खून का बहाव तेज होता है और बाद में धीरेधीरे कम व समाप्त हो जाता है. अगर पीरियड्स के दौरान अधिक रक्तस्राव हो रहा है तो खून की कमी की समस्या हो सकती है. ऐसे में किसी अच्छे डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

यह आम बात है

लड़कियों के लिए पीरियड्स के शुरुआती कुछ महीने बेहद संवेदनशील होते हैं, क्योंकि पीरियड्स के दौरान कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं, जिस से लड़कियां मानसिक रूप से परेशान हो सकती हैं. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि उन्हें पीरियड्स के दौरान आने वाली परेशानियों के बारे में पूरी जानकारी हो, जिस से वे इन चीजों का  मुकाबला कर पाएं.

पीरियड्स के दौरान अकसर थकान होने के साथ ही शरीर ढीला हो जाता है और सिर दर्द, चिड़चिड़ापन और स्तनों में कसाव की समस्या देखने को मिलती है. इस दौरान लड़कियों में कब्ज की शिकायत व काम में मन न लगने जैसी समस्या होना आम बात है. इस के अलावा उन्हें कमर व पेड़ू में दर्द की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है, जो कैल्शियम व आयरन की कमी से हो सकती है. इस कमी को दूर करने के लिए लड़कियों को नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए, जिस से उन्हें राहत महसूस होती है.

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कभीकभार पीरियड्स आने का अंतराल 3 महीने का भी हो जाता है, जो लड़कियों में दबाव या चिंता के कारण होता है. यह कारण किसी अपने से बिछड़ने को ले कर भी हो सकता है. जिन लड़कियों में पीरियड्स की शुरुआत जल्द हुई हो उन में एकदो साल तक पीरियड्स चक्र अनियमित होने की शिकायत देखने को मिलती है. ऐसे में अगर किसी लड़की में पीरियड्स चक्र 21 से 45 दिन का है तो यह सामान्य बात हो सकती है, अगर पीरियड्स चक्र में अंतराल 2 या 3 महीने का हो और यह लगातार चला आ रहा हो तो ऐसी अवस्था में किसी महिला डाक्टर से सलाह लेना जरूरी हो जाता है.

डा. प्रीति मिश्रा के अनुसार अगर लड़कियों में एक ही महीने में 2 बार पीरियड्स की समस्या है तो डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है, लेकिन कभीकभी बहुत ज्यादा खुशी, चिंता, दुख या डर की वजह से भी पीरियड्स जल्दी आ सकती है.

पीरियड्स से जुड़े अंधविश्वास से बचें

सौंदर्य विशेषज्ञ व सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रिया सिंह राठौर का कहना है कि युवामन किसी तरह के बंधन में बंध कर नहीं रहना चाहता, ऐसे में उन पर विभिन्न प्रकार की रूढि़वादी परंपराओं को थोपना घातक हो सकता है. अकसर पीरियड्स को ले कर तमाम तरह की भ्रांतियां व अंधविश्वास देखने को मिलते हैं, जिन्हें लड़कियों पर भी थोपने की कोशिश की जाती है. ये अंधविश्वास और भ्रांतियां लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं.

सुप्रिया सिंह का कहना है कि अधिकतर लोगों की सोच है कि पीरियड्स के दौरान निकलने वाला खून गंदा होता है, जबकि यह खून हमारे शरीर में उपलब्ध खून की तरह ही होता है जो पीरियड्स के दौरान योनिमार्ग से बाहर निकलता है. यदि यौनांगों की साफसफाई का ध्यान रखा जाए तो पीरियड्स के दौरान निकलने वाले खून से किसी प्रकार का संक्रमण नहीं होता.

पीरियड्स को ले कर सदियों से यह अंधविश्वास बना हुआ है कि पीरियड्स के दौरान लड़की को खाना नहीं बनाना चाहिए न ही खानेपीने की वस्तुओं, कुओं, तालाबों, नदियों आदि के पास जाना चाहिए. ऐसा करने से सब अशुद्ध हो जाता है, जबकि पीरियड्स के दौरान इन सब चीजों के छूने से किसी तरह की हानि नहीं होती, यह मात्र अंधविश्वास और भ्रांति के कारण होता है. हां, यह जरूर है कि पीरियड्स के दौरान अगर खाना बनाने या परोसने का काम किया जा रहा है, तो हाथों को साबुन से भलीभांति धो लेना चाहिए, जिस से किसी तरह का संक्रमण फैलने से रोका जा सके.

पीरियड्स के दौरान खानपान को ले कर भी तमाम तरह की भ्रांतियां हैं, जिन की वजह से लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लोगों का मानना है कि पीरियड्स के दौरान खट्टा पदार्थ खाने से अधिक खून निकलता है जबकि इस दौरान खट्टी चीजें खाने से कोई नुकसान नहीं होता. इस के अलावा दूध, दही और पनीर खाने पर भी रोक लगाई जाती है जबकि पीरियड्स के दौरान इन पदार्थों के खाने से शरीर को पोषण प्राप्त होता है.

अच्छा खानपान जरूरी

पीरियड्स के दौरान लड़कियों के खानपान पर खास ध्यान देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि किशोरावस्था के दौरान उन के शरीर का विकास तेजी से होता है, ऐसे में पीरियड्स के दौरान कभीकभी अधिक रक्तस्राव उन में लौहतत्त्वों की कमी का कारण बन सकता है. इसलिए लड़कियों को हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल, दालें, गुड़ के साथ पौष्टिक पदार्थों के खाने पर विशेष जोर देना चाहिए. उन्हें आयरन की गोलियां खाने को दी जानी चाहिए. अकसर यह भी सुनने में आता है कि परिवार वाले उन लड़कियों को धार्मिक स्थलों पर जाने की इजाजत नहीं देते. जिन्हें पीरियड्स हो रही है. वैसे तो धार्मिक स्थलों पर जाने से कोई फायदा नहीं है पर लड़कियों पर इस तरह की बंदिश ठीक नहीं है.

अकसर लड़कियां पीरियड्स की जटिलताओं से बचने के लिए अपने अभिभावकों से अपनी समस्याएं साझा करने से हिचकती हैं, जो ठीक नहीं है, क्योंकि इस से आगे चल कर उन के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लड़कियों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए पीरियड्स के दौरान अपनी साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. साथ ही खानेपीने की वस्तुओं को छूने से पहले व बाद में साबुन से हाथ धोना नहीं भूलना चाहिए.

28 मई को विश्व पीरियड्स दिवस मनाया गया जिस में विश्व की महिलाओं द्वारा अलगअलग स्थानों पर जुलूस निकाले गए ताकि लड़कियों को इस बारे में सही जानकारी दी जा सके. साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि पीरियड्स के बारे में चर्चा करना शर्म की बात नहीं है. यह शरीर की एक प्रक्रिया है और अंधविश्वास से इस का कोई सरोकार नहीं है.

लापरवाही बन सकती है संक्रमण का कारण

पीरियड्स के दौरान की गई लापरवाही संक्रमण का कारण बन सकती है, क्योंकि जानकारी के अभाव में अकसर लड़कियां पीरियड्स के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग करती हैं, जिस से उन के प्रजनन अंगों में कई तरह के संक्रमण पैदा हो जाते हैं. यह संक्रमण यौनांगों में किसी प्रकार के घाव होने, बदबूदार पानी निकलने, दर्द, दाने या खुजली के रूप में हो सकते हैं. जिन की वजह से असामान्य रूप से स्राव होने लगता है, जो कमर व पेड़ू के दर्द का कारण बनता है. कभीकभार यौनांगों में अधिक संक्रमण की वजह से बदबूदार सफेद पानी भी आने लगता है, जिस की वजह से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

इन बातों का रखें खयाल

पीरियड्स के दौरान साफसफाई का विशेष खयाल रखना चाहिए. इस दौरान की गई कोई भी लापरवाही लड़की के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है. डाक्टर प्रीति मिश्रा के अनुसार पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले पैड की स्वच्छता का विशेष खयाल रखना चाहिए. आमतौर पर ग्रामीण लड़कियां पीरियड्स के दौरान खून को सोखने के लिए पुराने व गंदे कपड़ों के पैड का इस्तेमाल करती हैं, जो उन के प्रजनन तंत्र के संक्रमण का कारण बन सकता है. ऐसी अवस्था में यह जरूरी है कि लड़की सिर्फ सैनेटरी पैड का ही इस्तेमाल करे जो आजकल बेहद सस्ते दामों में बाजार में उपलब्ध हैं.

पीरियड्स के दौरान प्रतिदिन स्नान करना भी जरूरी होता है. नहाते समय अपने भीतरी कपड़ों को अच्छी तरह से साबुन और साफ पानी से धो कर खुली धूप में सुखाना चाहिए और पीरियड्स के दौरान प्रयोग किए जाने वाले सैनेटरी पैड को दिन में कम से कम 2 से 3 बार जरूर बदलते रहना चाहिए. सैनेटरी पैड बदलने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं.

डा. प्रीति मिश्रा के अनुसार पीरियड्स के दौरान निकलने वाले खून को सोखने के लिए जिस सैनेटरी पैड का इस्तेमाल किया जाता है वह अलगअलग ब्रैंड्स में उपलब्ध हैं. ऐसी अवस्था में कम पैसे में भी इस की खरीदारी की जा सकती है. यह न केवल आरामदेह होता है बल्कि इस से संक्रामक बीमारियों से भी बचाव होता है. ये सैनेटरी पैड मैडिकल स्टोर, जनरल स्टोर या फिर डिपार्टमैंटल स्टोर पर आसानी से मिल जाते हैं.

जल संरक्षण पर गायिका पद्म श्री डॉ. अनुराधा पौडवाल का सराहनीय कार्य

मशहूर बौलीवुड गायिका पद्म श्री डाॅं.अनुराधा पौड़वाल को संगीत जगत में  योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म श्री के अलावा सर्वश्रेष्ठ गायिका का एक राष्ट्रीय  पुरस्कार, चार फिल्म फेअर पुरस्कार सहित कई पुरस्कारो से नवाजा जा चुका है.

अपने पति अरूण पौड़वाल के निधन के बाद से डाॅ. अनुराधा पौड़वाल ने अपना एनजीओ ‘‘सूर्योदय फाउंडेशन’’बनाकर समाज सेवा के कार्य करने शुरू किए.

वह हर वर्ष कुछ म्यूजीषिनो को सम्मानित करती हैं.इसी वजह से उन्हे ‘मदर टेरेसा’के अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है. कोरोना महामारी के दौरान डाॅ.अनुराधा पौड़वाल ने महाराष्ट्र के   अस्पतालों  में बीस आॅक्सीजन कंसेट्ेटर  व एक एम्बुलेंस मुहैया करायी थी. इतना ही नही इन दिनों वह जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित हैं.

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इसलिए इस दिशा में लगातार काम कर रही हैं.डाॅ.अनुराधा पौड़वाल ने पानी बचाव मुहीम भी शुरू की है और उन्होंने पानी को फेंकने की बजाय उसे शुद्ध कर पुनः उपयोग करने के लिए एक माॅडल बनाया है. जिसे उनके एनजीओ ‘सूर्योदय फाउंडेशन’ने ‘जल संरक्षण का संपूर्ण माॅडल’नाम दिया है.उन्होने यह माॅडल खासकर छात्रों के लिए बनाया हैऔर इसे छात्रों के बीच ही वितरति कर उन्हें जलसंरक्षण की बात समझानी शुरू की है.

इसी पहल के हत पद्म श्री डॉ. अनुराधा पौडवाल ने ‘सूर्योदय फाउंडेशन’की तरफ से स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय में छात्रों को जल संरक्षण का पूरा माॅडल देकर अपनी तरह की पहली पहल की है.अनुराधा पौडवाल संकट से निपटने के लिए निस्वार्थ रूप से अपना समय और ऊर्जा समर्पित कर रही हैं और एक बहुत ही आवश्यक बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं.पानी बचाने के उनके कार्य लोगों को जिम्मेदार तरीके से पानी का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं.

खुद अनुराधा पौडवाल कहती हैं-‘‘हमारे देश ही नही पूरे विश्व  की मानव आबादी दिन प्रतिदिन नियमित रूप से बढ़ती जा रही है,जबकि हमारे जलसंसाधन काफी सीमित हैं.

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जिसके चलते गंभीर तनाव पैदा हो गया है.अब जरुरत है कि पानी कोटि का ऊ बनाने के लिए कई तरीके अपनाए जाएं.लोगों को अपने पानी के बिल में कटौती करने के लिए एक सरल लेकिन अक्सर उपेक्षित रणनीति अपनानी चाहिए और वह रणनीति यह है कि लोग अपने पानी का दोबार उपयोग करें।बिजली के विपरीत, पानी का बार-बार पुनः उपयोग किया जा सकता है. यही है जल संरक्षण का विचार।पानी शुुद्धिकरण की कई तकनीक मोजूद हैं.‘‘

डाॅ.पौड़वाल आगे कहती हें-‘‘“लोग अक्सर स्कूल और विश्व विद्यालयों की उपेक्षा करते हैं. जबकि इन स्थानों को जलसंरक्षण के लिए सर्वो परि होना चाहिए. अगर हम छात्रों में पानी बचाने की आदत डालेंगे,तो भविष्य में बदलाव देखने को मिलेगा. इसीलिए मैने कालेजों मे जाकर छात्रों को ‘जल संरक्षण माॅडल’देेने की पहली की शुुरूआत की है.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai : पहली बार गोयनका परिवार संग तीज का जश्न मनाती नजर आएंगी सीरत

वैसे तो सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिलते रहता है. आने वाले एपिसोड में यह देखने को मिलगा कि सीरत शादी के बाद पहली तीज मनाने वाली है. जिसके लिए वह गोयनका हाउस पहुंच जाएंगी.

इसका सबूत सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के सेट से वायरल हुई तस्वीर है. पहले तो सीरत और कार्तिक की शादी की खबर को सुनकर पूरा परिवार काफी ज्यादा नाराज होने वाला है.

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गोयनका परिवार में आने के बाद सीरत तीज त्योहार का हिस्सा बनने वाली है. लीक हुई तस्वीर में सीरत पूजा का थाल पकड़े नजर आ रही है. हरियाली तीज के जश्न में सीरत झूला भी झूलने वाली है. झूला झूलते हुए तस्वीर में सीरत काफी ज्यादा प्यारी लग रही हैं.

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सीरत यानि शिवांगी जोशी की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, जिससे लोग अपनी निगाहें हटा नहीं पा रहे हैं.

तीज के खास मौकेे पर सीरत और कार्तिक लाइट ग्रीन कलर के आउटफीट में नजर आ रहे हैं. इस ड्रेस के साथ सीरत की ज्वैलरी भी काफी शानदार मैच कराई गई है. वैसे तो ऑनस्क्रीन सीरत औऱ कार्तिक की जोड़ी को फैंस काफी ज्यादा पसंद करते हैं. उन्हें हमेशा साथ में देखना पसंद करते हैं.

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आने वाले एपिसोड में आपको औऱ भी ज्यादा मजेदार चीजे देखने को मिलेंगी, जिसमें सीरत और कार्तिक एक -दूसरे के साथ रोमांस करते नजर आएंगे.

अब देखना यह है कि पहले कि तरह गोयनका परिवार कार्तिक और सीरत को अपना पाता है या नहीं.

Family Story in Hindi : जीवन संध्या में – कर्तव्यों को पूरा कर क्या साथ हो पाए प्रभाकर और पद्मा?

लेखिकाडा. उर्मिला सिन्हा

तनहाई में वे सिर झुकाए आरामकुरसी पर आंखें मूंदे लेटे हुए हैं. स्वास्थ्य कमजोर है आजकल. अपनी विशाल कोठी को किराए पर दे रखा है उन्होंने. अकेली जान के लिए 2 कमरे ही पर्याप्त हैं. बाकी में बच्चों का स्कूल चलता है.

बच्चों के शोरगुल और अध्यापिकाओं की चखचख से अहाते में दिनभर चहलपहल रहती है. परंतु शाम के अंधेरे के साथ ही कोठी में एक गहरा सन्नाटा पसर जाता है. आम, जामुन, लीची, बेल और अमरूद के पेड़ बुत के समान चुपचाप खड़े रहते हैं.

नौकर छुट्टियों में गांव गया तो फिर वापस नहीं आया. दूसरा नौकर ढूंढ़े कौन? मलेरिया बुखार ने तो उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है. एक गिलास पानी के लिए तरस गए हैं. वे इतनी विशाल कोठी के मालिक हैं, मगर तनहा जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हैं.

जिह्वा की मांग है कि कोई चटपटा व्यंजन खाएं, मगर बनाए कौन? अपने हाथों से कभी कुछ खास बनाया नहीं. नौकर था तो जो कच्चापक्का बना कर सामने रख देता, वे उसे किसी तरह गले के नीचे उतार लेते थे. बाजार जाने की ताकत नहीं थी.

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स्कूल में गरमी की छुट्टियां चल रही हैं. रात में चौकीदार पहरा दे जाता है. पासपड़ोसी इस इलाके में सभी कोठी वाले ही हैं. किस के घर क्या हो रहा है, किसी को कोई मतलब नहीं.

आज अगर वे इसी तरह अपार धनसंपदा रहते हुए भी भूखेप्यासे मर जाएं तो किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा. उन का मन भर आया. डाक्टर बेटा सात समुंदर पार अपना कैरियर बनाने गया है. उसे बूढ़े बाप की कोई परवा नहीं. पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने कितनी तकलीफ और यत्न से बच्चों को पाला है, वही जानते हैं. कभी भूल कर भी दूसरी शादी का नाम नहीं लिया. सौतेली मां के किस्से सुन चुके हैं. बेटी सालछह महीने में एकदो दिन के लिए आ जाती है.

‘बाबूजी, आप मेरे साथ चल कर रहिए,’ बेटी पूजा बड़े आग्रह से कहती.

‘क्यों, मुझे यहां क्या कमी है,’ वे फीकी हंसी हंसते .

‘कमी तो कुछ नहीं, बाबूजी. आप बेटी के पास नहीं रहना चाहते तो भैया के पास अमेरिका ही चले जाइए,’ बेटी की बातों पर वे आकाश की ओर देखने लगते.

‘अपनी धरती, पुश्तैनी मकान, कारोबार, यहां तेरी अम्मा की यादें बसी हुई हैं. इन्हें छोड़ कर सात समुंदर पार कैसे चला जाऊं? यहीं मेरा बचपन और जवानी गुजरी है. देखना, एक दिन तेरा डाक्टर भाई परिचय भी वापस अपनी धरती पर अवश्य आएगा.’

वे भविष्य के रंगीन सपने देखने लगते.

फाटक खुलने की आवाज पर वे चौंक उठे. दिवास्वप्न की कडि़यां बिखर गईं. ‘कौन हो सकता है इस समय?’

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चौकीदार था. साथ में पद्मा थी.

‘‘अरे पद्मा, आओ,’’ प्रभाकरजी का चेहरा खिल उठा. पद्मा उन के दिवंगत मित्र की विधवा थी. बहुत ही कर्मठ और विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य न खोने वाली महिला.

‘‘तुम्हारी तबीयत अब कैसी है?’’ बोलते हुए वह कुरसी खींच कर बैठ गई.

‘‘तुम्हें कैसे पता कि मैं बीमार हूं?’’ वे आश्चर्य से बोले.

‘‘चौकीदार से. बस, भागी चली आ रही हूं. इसी से पता चला कि रामू भी घर चला गया है. मुझे  क्या गैर समझ रखा है? खबर क्यों नहीं दी?’’ पद्मा उलाहने देने लगी.

वे खामोशी से सुनते रहे. ये उलाहने उन के कानों में मधुर रस घोल रहे थे, तप्त हृदय को शीतलता प्रदान कर रहे थे. कोई तो है उन की चिंता करने वाला.

‘‘बोलो, क्या खाओगे?’’

‘‘पकौडि़यां, करारी चटपटी,’’ वे बच्चे की तरह मचल उठे.

‘‘क्या? तीखी पकौडि़यां? सचमुच सठिया गए हो तुम. भला बीमार व्यक्ति भी कहीं तलीभुनी चीजें खाता है?’’ पद्मा की पैनी बातों की तीखी धार उन के हृदय को चुभन के बदले सुकून प्रदान कर रही थी.

‘‘अच्छा, सुबह आऊंगी,’’ उन्हें फुलके और परवल का झोल खिला कर पद्मा अपने घर चली गई.

प्रभाकरजी का मन भटकने लगा. पूरी जवानी उन्होंने बिना किसी स्त्री के काट दी. कभी भी सांसारिक विषयवासनाओं को अपने पास फटकने नहीं दिया. कर्तव्य की वेदी पर अपनी नैसर्गिक कामनाओं की आहुति चढ़ा दी. वही वैरागी मन आज साथी की चाहना कर रहा है.

यह कैसी विडंबना है? जब बेटा 3 साल और बेटी 3 महीने की थी, उसी समय पत्नी 2 दिनों की मामूली बीमारी में चल बसी. उन्होंने रोते हुए दुधमुंहे बच्चों को गले से लगा लिया था. अपने जीवन का बहुमूल्य समय अपने बच्चों की परवरिश पर न्योछावर कर दिया. बेटे को उच्च शिक्षा दिलाई, शादी की, विदेश भेजा. बेटी को पिता की छाया के साथसाथ एक मां की तरह स्नेह व सुरक्षा प्रदान की. आज वह पति के घर में सुखी दांपत्य जीवन व्यतीत कर रही है.

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पद्मा भी भरी जवानी में विधवा हो गई थी. दोनों मासूम बेटों को अपने संघर्ष के बल पर योग्य बनाया. दोनों बड़े शहरों में नौकरी करते हैं. पद्मा बारीबारी से बेटों के पास जाती रहती है. मगर हर घर की कहानी कुछ एक जैसी ही है. योग्य होने पर कमाऊ बेटों पर मांबाप से ज्यादा अधिकार उन की पत्नी का हो जाता है. मांबाप एक फालतू के बोझ समझे जाने लगते हैं.

पद्मा में एक कमी थी. वह अपने बेटों पर अपना पहला अधिकार समझती थी. बहुओं की दाब सहने के लिए वह तैयार नहीं थी, परिणामस्वरूप लड़झगड़ कर वापस घर चली आई. मन खिन्न रहने लगा. अकेलापन काटने को दौड़ता, अपने मन की बात किस से कहे.

प्रभाकर और पद्मा जब इकट्ठे होते तो अपनेअपने हृदय की गांठें खोलते, दोनों का दुख एकसमान था. दोनों अकेलेपन से त्रस्त थे और मन की बात कहने के लिए उन्हें किसी साथी की तलाश थी शायद.

प्रभाकरजी स्वस्थ हो गए. पद्मा ने उन की जीजान से सेवा की. उस के हाथों का स्वादिष्ठ, लजीज व पौष्टिक भोजन खा कर उन का शरीर भरने लगा.

आजकल पद्मा दिनभर उन के पास ही रहती है. उन की छोटीबड़ी जरूरतों को दौड़भाग कर पूरा करने में अपनी संतानों की उपेक्षा का दंश भूली हुई है. कभीकभी रात में भी यहीं रुक जाती है.

हंसीठहाके, गप में वे एकदूसरे के कब इतने करीब आ गए, पता ही नहीं चला. लौन में बैठ कर युवकों की तरह आपस में चुहल करते. मन में कोई बुरी भावना नहीं थी, परंतु जमाने का मुंह वे कैसे बंद करते? लोग उन की अंतरंगता को कई अर्थ देने लगे. यहांवहां कई तरह की बातें उन के बारे में होने लगीं. इस सब से आखिर वे कब तक अनजान रहते. उड़तीउड़ती कुछ बातें उन तक भी पहुंचने लगीं.

2 दिनों तक पद्मा नहीं आई. प्रभाकरजी का हृदय बेचैन रहने लगा. पद्मा के सुघड़ हाथों ने उन की अस्तव्यस्त गृहस्थी को नवजीवन दिया था. भला जीवनदाता को भी कोई भूलता है. दिनभर इंतजार कर शाम को पद्मा के यहां जा पहुंचे. कल्लू हलवाई के यहां से गाजर का हलवा बंधवा लिया. गाजर का हलवा पद्मा को बहुत पसंद है.

गलियों में अंधेरा अपना साया फैलाने लगा था. न रोशनी, न बत्ती, दरवाजा अंदर से बंद था. ठकठकाने पर पद्मा ने ही दरवाजा खोला.

‘‘आइए,’’ जैसे वह उन का ही इंतजार कर रही थी. पद्मा की सूजी हुई आंखें देख कर प्रभाकर ठगे से रह गए.

‘‘क्या बात है? खैरियत तो है?’’ कोई जवाब न पा कर प्रभाकर अधीर हो उठे. अपनी जगह से उठ पद्मा का आंसुओं से लबरेज चेहरा उठाया. तकिए के नीचे से पद्मा ने एक अंतर्देशीय पत्र निकाल कर प्रभाकर के हाथों में पकड़ा दिया.

कोट की ऊपरी जेब से ऐनक निकाल कर वे पत्र पढ़ने लगे. पत्र पढ़तेपढ़ते वे गंभीर हो उठे, ‘‘ओह, इस विषय पर तो हम ने सोचा ही नहीं था. यह तो हम दोनों पर लांछन है. यह चरित्रहनन का एक घिनौना आरोप है, अपनी ही संतानों द्वारा,’’ उन का चेहरा तमतमा उठा. उठ कर बाहर की ओर चल पड़े.

‘‘तुम तो चले जा रहे हो, मेरे लिए कुछ सोचा है? मुझे उन्हें अपनी संतान कहते हुए भी शर्म आ रही है.’’

पद्मा हिलकहिलक कर रोने लगी. प्रभाकर के बढ़ते कदम रुक गए. वापस कुरसी पर जा बैठे. कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था.

‘‘क्या किया जाए? जब तुम्हारे बेटों को हमारे मिलनेजुलने में आपत्ति है, इस का वे गलत अर्थ लगाते हैं तो हमारा एकदूसरे से दूर रहना ही बेहतर है. अब बुढ़ापे में मिट्टी पलीद करानी है क्या?’’ उन्हें अपनी ही आवाज काफी दूर से आती महसूस हुई.

पिछले एक सप्ताह से वे पद्मा से नहीं मिल रहे हैं. तबीयत फिर खराब होने लगी है. डाक्टर ने पूर्णआराम की सलाह दी है. शरीर को तो आराम उन्होंने दे दिया है पर भटकते मन को कैसे विश्राम मिले?

पद्मा के दोनों बेटों की वैसे तो आपस में बिलकुल नहीं पटती है, मगर अपनी मां के गैर मर्द से मेलजोल पर वे एकमत हो आपत्ति प्रकट करने लगे थे.

पता नहीं उन के किस शुभचिंतक ने प्रभाकरजी व पद्मा के घनिष्ठ संबंध की खबर उन तक पहुंचा दी थी.

प्रभाकरजी का रोमरोम पद्मा को पुकार रहा था. जवानी उन्होंने दायित्व निर्वाह की दौड़भाग में गुजार दी थी. परंतु बुढ़ापे का अकेलापन उन्हें काटने दौड़ता था. यह बिना किसी सहारे के कैसे कटेगा, यह सोचसोच कर वे विक्षिप्त से हो जाते. कोई तो हमसफर हो जो उन के दुखसुख में उन का साथ दे, जिस से वे मन की बातें कर सकें, जिस पर पूरी तरह निर्भर हो सकें. तभी डाकिए ने आवाज लगाई :

‘‘चिट्ठी.’’

डाकिए के हाथ में विदेशी लिफाफा देख कर वे पुलकित हो उठे. जैसे चिट्ठी के स्थान पर स्वयं उन का बेटा परिचय खड़ा हो. सच, चिट्ठी से आधी मुलाकात हो जाती है. परिचय ने लिखा है, वह अगले 5 वर्षों तक स्वदेश नहीं आ सकता क्योंकि उस ने जिस नई कंपनी में जौइन किया है, उस के समझौते में एक शर्त यह भी है.

प्रभाकरजी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उन की खुशी काफूर हो गई. वे 5 वर्ष कैसे काटेंगे, सिर्फ यादों के सहारे? क्या पता वह 5 वर्षों के बाद भी भारत आएगा या नहीं? स्वास्थ्य गिरता जा रहा है. कल किस ने देखा है. वादों और सपनों के द्वारा किसी काठ की मूरत को बहलाया जा सकता है, हाड़मांस से बने प्राणी को नहीं. उस की प्रतिदिन की जरूरतें हैं. मन और शरीर की ख्वाहिशें हैं. आज तक उन्होंने हमेशा अपनी भावनाओं पर विजय पाई है, मगर अब लगता है कि थके हुए तनमन की आकांक्षाओं को यों कुचलना आसान नहीं होगा.

बेटी ने खबर भिजवाई है. उस के पति 6 महीने के प्रशिक्षण के लिए दिल्ली जा रहे हैं. वह भी साथ जा रही है. वहां से लौट कर वह पिता से मिलने आएगी.

वाह री दुनिया, बेटा और बेटी सभी अपनीअपनी बुलंदियों के शिखर चूमने की होड़ में हैं. बीमार और अकेले पिता के लिए किसी के पास समय नहीं है. एक हमदर्द पद्मा थी, उसे भी उस के बेटों ने अपने कलुषित विचारों की लक्ष्मणरेखा में कैद कर लिया. यह दुनिया ही मतलबी है. यहां संबंध सिर्फ स्वार्थ की बुनियाद पर विकसित होते हैं. उन का मन खिन्न हो उठा.

‘‘प्रभाकर, कहां हो भाई?’’ अपने बालसखा गिरिधर की आवाज पहचानने में उन्हें भला क्या देर लगती.

‘‘आओआओ, कैसे आना हुआ?’’

‘‘बिटिया की शादी के सिलसिले में आया था. सोचा तुम से भी मिलता चलूं,’’ गिरिधरजी का जोरदार ठहाका गूंज उठा.

हंसना तो प्रभाकरजी भी चाह रहे थे, परंतु हंसने के उपक्रम में सिर्फ होंठ चौड़े हो कर रह गए. गिरिधर की अनुभवी नजरों ने भांप लिया, ‘दाल में जरूर कुछ काला है.’

शुरू में तो प्रभाकर टालते रहे, पर धीरेधीरे मन की परतें खुलने लगीं. गिरिधर ने समझाया, ‘‘देखो मित्र, यह समस्या सिर्फ तुम्हारी और पद्मा की नहीं है बल्कि अनेक उस तरह के विधुर  और विधवाओं की है जिन्होंने अपनी जवानी तो अपने कर्तव्यपालन के हवाले कर दी, मगर उम्र के इस मोड़ पर जहां न वे युवा रहते हैं और न वृद्ध, वे नितांत अकेले पड़ जाते हैं. जब तक उन के शरीर में ताकत रहती है, भुजाओं में सारी बाधाओं से लड़ने की हिम्मत, वे अपनी शारीरिक व मानसिक मांगों को जिंदगी की भागदौड़ की भेंट चढ़ा देते हैं.

‘‘बच्चे अपने पैरों पर खड़े होते ही अपना आशियाना बसा लेते हैं. मातापिता की सलाह उन्हें अनावश्यक लगने लगती है. जिंदगी के निजी मामले में हस्तक्षेप वे कतई बरदाश्त नहीं कर पाते. इस के लिए मात्र हम नई पीढ़ी को दोषी नहीं ठहरा सकते. हर कोई अपने ढंग से जीवन बिताने के लिए स्वतंत्र होता है. सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ना ही तो दुनियादारी है.’’

‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है, परंतु पद्मा और मैं दोनों बिलकुल अकेले हैं. अगर एकसाथ मिल कर हंसबोल लेते हैं तो दूसरों को आपत्ति क्यों होती है?’’ प्रभाकरजी ने दुखी स्वर में कहा.

‘‘सुनो, मैं सीधीसरल भाषा में तुम्हें एक सलाह देता हूं. तुम पद्मा से शादी क्यों नहीं कर लेते?’’ उन की आंखों में सीधे झांकते हुए गिरधर ने सामयिक सुझाव दे डाला.

‘‘क्या? शादी? मैं और पद्मा से? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? लोग क्या कहेंगे? हमारी संतानों पर इस का क्या असर पड़ेगा? जीवन की इस सांध्यवेला में मैं विवाह करूं? नहींनहीं, यह संभव नहीं,’’ प्रभाकरजी घबरा उठे.

‘‘अब लगे न दुहाई देने दुनिया और संतानों की. यही बात लोगों और पद्मा के बेटों ने कही तो तुम्हें बुरा लगा. विवाह करना कोई पाप नहीं. जहां तक जीवन की सांध्यवेला का प्रश्न है तो ढलती उम्र वालों को आनंदमय जीवन व्यतीत करना वर्जित थोड़े ही है. मनुष्य जन्म से ले कर मृत्यु तक किसी न किसी सहारे की तलाश में ही तो रहता है. पद्मा और तुम अपने पवित्र रिश्ते पर विवाह की सामाजिक मुहर लगा लो. देखना, कानाफूसियां अपनेआप बंद हो जाएंगी. रही बात संतानों की, तो वे भी ठंडे दिमाग से सोचेंगे तो तुम्हारे निर्णय को बिलकुल उचित ठहराएंगे. कभीकभी इंसान को निजी सुख के लिए भी कुछ करना पड़ता है. कुढ़ते रह कर तो जीवन के कुछ वर्ष कम ही किए जा सकते हैं. स्वाभाविक जीवनयापन के लिए यह महत्त्वपूर्ण निर्णय ले कर तुम और पद्मा समाज में एक अनुपम और प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करो.’’

‘‘क्या पद्मा मान जाएगी?’’

‘‘बिलकुल. पर तुम पुरुष हो, पहल तो तुम्हें ही करनी होगी. स्त्री चाहे जिस उम्र की हो, उस में नारीसुलभ लज्जा तो रहती ही है.’’

गिरिधर के जाने के बाद प्रभाकर एक नए आत्मविश्वास के साथ पद्मा के घर की ओर चल पड़े, अपने एकाकी जीवन को यथार्थ के नूतन धरातल पर प्रतिष्ठित करने के लिए. जीवन की सांध्यवेला में ही सही, थोड़ी देर के लिए ही पद्मा जैसी सहचरी का संगसाथ और माधुर्य तो मिलेगा. जीवनसाथी मनोनुकूल हो तो इंसान सारी दुनिया से टक्कर ले सकता है. इस छोटी सी बात में छिपे गूढ़ अर्थ को मन ही मन गुनगुनाते वे पद्मा का बंद दरवाजा एक बार फिर खटखटा रहे थे.

 

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