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Family Story in Hindi – पापा के लिए

लेखिका- Renu Anshul

Family Story in Hindi – पापा के लिए – भाग 2 : पिता के प्यार के लिए सौतेली बेटी ने कौन सा त्याग किया?

लेखिका- Renu Anshul

बचपन में कितनी ही बार अमन और श्रेया का होमवर्क पूरा करवाने के चक्कर में मेरा खुद का होमवर्क, पढ़ाई छूट जाते थे. मुझे स्कूल में टीचर की डांट खानी पड़ती और घर में मम्मी की. वे मुझ पर इस बात को ले कर गुस्सा होती थीं कि मैं उन लोगों के लिए क्यों अपना नुकसान कर रही हूं, जिन्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं. जिन्होंने अब तक मुझे थोड़ी सी भी जगह नहीं दी अपने दिल में.

जब 12 साल की थी तो मुझे अच्छी तरह याद है कि एक दिन श्रेया की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. मम्मीपापा कंपनी के किसी काम से बाहर गए थे, दादी के साथ हम तीनों बच्चे ही थे. दादी को तो वैसे ही घुटनों के दर्द की प्रौब्लम रहती थी, इसलिए वे तो ज्यादा चलतीफिरती ही नहीं थी. पापामम्मी ने अमन को कभी कुछ करने की आदत डाली ही नहीं थी, उस का हर काम लाड़प्यार में वे खुद ही जो कर देते थे. मुझे ही सब लोगों के तिरस्कार और वक्त ने समय से पहले ही बहुत सयानी बना दिया था. तब मैं ने डाक्टर को फोन कर के बुलाया, फिर उन के कहे अनुसार सारी रात जाग कर उसे दवा देती रही, उस के माथे पर ठंडी पट्टियां रखती रही.

अगले दिन जब मम्मीपापा आए श्रेया काफी ठीक हो गई थी. उस ने पापा के सामने जब मेरी तारीफ की कि कैसे मैं ने रात भर जाग कर उस की देखभाल की है, तो उन कुछ

पलों में लगा कि पापा की नजरें मेरे लिए प्यार भरी थीं, जिन के बारे में मैं हमेशा सपने देखा करती थी.

उस के बाद एक दिन वे मेरे लिए एक सुंदर सी फ्राक भी लाए. शायद अब तक का पहला और आखिरी तोहफा. मुझे लगा कि अब मुझे भी मेरे पापा मिल गए. अब मैं भी श्रेया की तरह उन से जिद कर सकूंगी, उन से रूठ सकूंगी, उन के संग घूमनेफिरने जा सकूंगी, लेकिन वह केवल मेरा भ्रम था.

2-4 दिन ही रही स्नेह की वह तपिश, पापा फिर मेरे लिए अजनबी बन गए. उन का वह तोहफा, जिसे देख कर मैं फूली नहीं समा रही थी, उन की लाडली बेटी की देखभाल का एक इनाम भर था. लेकिन अब मेरा सूना मन उन के स्नेह के स्पर्श से भीग चुका था. मैं पापा को खुश करने के लिए अब हर वह काम करने की फिराक में रहती थी, जिस से उन का ध्यान मेरी तरफ जाए. अब बरसों बाद मुझे उन के लिए कुछ करने का मौका मिला है, तो मैं पीछे क्यों हटूं? मम्मी की बात क्यों सुनूं? वह क्यों नहीं समझतीं कि पापा का प्यार पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.

पापा की तबीयत इधर कई महीनों से खराब चल रही थी. बुखार बना रहता था हरदम. तमाम दवाएं खा चुके लेकिन कोई फायदा ही नहीं. अभी पिछले हफ्ते ही पापा बाथरूम में चक्कर खा कर गिर पड़े. उन्हें तुरंत अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा. सारे चैकअप होने के बाद डाक्टर ने साफ कह दिया कि पापा की दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं. अगर हम उन्हें बचाना चाहते हैं तो तुरंत ही एक किडनी का इंतजाम करना होगा. घर का कोई भी स्वस्थ सदस्य अपनी एक किडनी दे सकता है. एक किडनी से भी बिना किसी परेशानी के पूरा जीवन जिया जा सकता है, कुछ लोग हौस्पिटल में मजबूरीवश अपनी किडनी बेच देते हैं, लेकिन फिलहाल तो हौस्पिटल में ऐसा कोई आया नहीं. पापा को तो जल्दी से जल्दी किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत थी. उन की हालत बिगड़ती ही जा रही थी. पापा की हालत देखदेख मेरा मन रोता रहता था. समझ ही नहीं आता था कि क्या करूं अपने पापा के लिए?

हफ्ते भर से पापा अस्पताल में ही ऐडमिट हैं. अभी तक किडनी का इंतजाम नहीं हो पाया है. दादी, श्रेया, मैं, अमन, मम्मी सभी अस्पताल में थे इस वक्त. दादी की किडनी के लिए तो डाक्टर ने ही मना कर दिया था कि इस उम्र में पता नहीं उन की बौडी यह औपरेशन झेल पाएगी या नहीं. दादी के चेहरे पर साफ राहत के भाव दिखे मुझे.

पापा की अनुपस्थिति में मम्मी पर ही पूरी कंपनी की जिम्मेदारी थी, इसलिए वे आगे बढ़ने से हिचक रही थीं, वैसे ही तबीयत खराब होने की वजह से पापा बहुत दिनों से कंपनी की तरफ ध्यान नहीं दे पा रहे थे. कंपनी के बिगड़ते रिजल्ट इस के गवाह थे. मम्मी भी क्याक्या करतीं. श्रेया तो थी ही अभी बहुत छोटी, उसे तो अस्पताल, इंजैक्शन, डाक्टर सभी से डर लगता था. और अमन, उसे तो दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और आवारागर्दी से ही फुरसत नहीं है. पापामम्मी के ज्यादा लाड़प्यार और देखभाल ने उसे निरंकुश बना दिया था. मेरे साथ उस ने भी इस साल ग्रैजुएशन किया है, लेकिन जिम्मेदारी की, समझदारी की कोई बात नहीं. पता नहीं, सब से आंख बचा कर कब वह बाहर निकल गया, हमें पता ही नहीं चला. तब मम्मी ही आगे बढ़ कर बोलीं, ‘‘डाक्टर, अब देर मत करिए, मेरी एक किडनी मेरे पति को लगा दीजिए.’’

तभी इतनी देर से विचारों की कशमकश में हिचकोले सी खाती मैं ने, उन की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘नहीं मम्मी, हम सब को, पूरे परिवार को आप की बहुत जरूरत है. पापा को किडनी मैं दूंगी और कोई नहीं.’’

मेरी बात सुन कर मम्मी एकदम चीख कर ऐसे बोलीं, मानो बरसों का आक्रोश आज एकसाथ लावा बन कर फूट पड़ा हो, ‘‘दिमाग तो सही है तेरा नेहा. उस आदमी के लिए अपना जीवन दांव पर लगा रही है, जिस ने तुझे कभी अपना माना ही नहीं, जिस ने कभी दो बोल प्यार के नहीं बोले तुझ से… तू उसे अपने शरीर की इतनी कीमती चीज दे रही है… नहीं, कभी नहीं, यह बेवकूफी मैं तुझे नहीं करने दूंगी मेरी बच्ची, कभी नहीं. अभी तेरे सामने पूरा जीवन पड़ा है. पराए घर की अमानत है तू. अरे, जिन बच्चों पर वे अपना सर्वस्व लुटाते रहे, वे करें यह सब. अमन का फर्ज बनता है यह सब करने का, तेरा नहीं. तू ही है सिर्फ क्या उन के लिए.’’

‘‘मैं उन के लिए चाहे कुछ न हूं लेकिन मेरे लिए वे बहुत कुछ हैं. मैं ने तो दिल से उन्हें अपना पापा माना है मम्मी. मैं अपने पापा के लिए कुछ भी कर सकती हूं और फिर मम्मी, प्यार का प्रतिकार प्यार ही हो, यह कोई जरूरी तो नहीं.’’

मम्मी मुझे हैरत से देखती रह गई थीं. उन का पूरा चेहरा आंसुओं से भीग गया था. शायद सोच रही थीं – काश, इस बेटी के दिल को भी पढ़ा होता उन्होंने कभी. इस बेटी को भी गले लगाया होता कभी. अपने दोनों बच्चों की तरह कभी इस की भी पढ़ाई, होमवर्क और ऐग्जाम्स की फिक्र की होती. कभी डांटा होता, तो कभी पुचकारा होता इसे भी. कभी झिड़का होता तो कभी समझाया होता इसे भी. मगर उन्होंने तो कभी इसे नजर भर देखा तक नहीं और यह है कि…

और फिर किसी की भी नहीं सुनी मैं ने. पापा ने भले न बनाया हो, मैं ने अपनी एक किडनी दे कर उन्हें अपने शरीर का एक हिस्सा बना ही लिया. दोनों को हौस्पिटल से एक ही दिन डिस्चार्ज किया गया. मैं गाड़ी में कनखियों से बराबर देख रही थी कि पापा बराबर मुझे ही देख रहे थे. उन की आंखों में आंसू थे. कुछ कहना चाह रहे थे, मगर कह नहीं पा रहे थे. ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उन के दिल के अनकहे शब्द मेरे दिल को स्नेह की तपिश से सहला रहे हों, जिस से बरसों से किया मेरे प्रति उन का अन्याय शीशा बन कर पिघला जा रहा हो.

Family Story in Hindi – पापा के लिए – भाग 1 : पिता के प्यार के लिए सौतेली बेटी ने कौन सा त्याग किया?

लेखिका- Renu Anshul

जिस स्नेह और अपनेपन से मेरी मम्मी ने पापा के पूरे परिवार को अपना लिया था, उस का एक अंश भी अगर पापा उन की बेटी को यानी मुझे दे देते तो… लेकिन नहीं, पापा मुझे कभी अपनी बेटी मान ही नहीं सके. उन के लिए जो कुछ थे, उन की पहली पत्नी के दोनों बच्चे थे अमन और श्रेया. अमन तो तब मेरे ही बराबर था, 7 साल का, जब उस के पापा ने मेरी मम्मी से शादी की थी और श्रेया मात्र 3 बरस की थी.

दादी के बारबार जोर देने पर और छोटे बच्चों का खयाल कर के पापा ने मम्मी से, जो उन्हीं की कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थीं, शादी तो कर ली. लेकिन मन से वे उन्हें नहीं अपना पाए. मम्मी भी कहां मेरे असली पापा को भुला सकी थीं.

अचानक रोड ऐक्सीडैंट में उन की डैथ हुई थी. उस के बाद अकेले छोटी सी बच्ची यानी मुझे पालना उन के लिए पुरुषों की इस दुनिया में बहुत मुश्किल था. पापा के जाने के बाद 2 साल में ही इस दुनिया ने उन्हें एहसास करा दिया था कि एक अकेली औरत, जिस के सिर पर किसी पुरुष का हाथ नहीं, 21वीं सदी में भी बहुत बेबस और मजबूर है. उस का यों अकेले जीना बहुत मुश्किल है.

ननिहाल और ससुराल में कहीं भी ऐसा कोई नहीं था जिस के सहारे वे अपना जीवन काट सकतीं. इसलिए एक दिन जब औफिस में पापा ने उन्हें प्रपोज किया तो वे मना नहीं कर सकीं. सोचा, कि ज्यादा कुछ नहीं तो इज्जत की एक छत और मुझे पापा का नाम तो मिल जाएगा न. और वैसा हुआ भी.

पापा ने मुझे अपना नाम भी दिया और इतना बड़ा आलीशान घर भी. उन की कंपनी अच्छी चलती थी और समाज में उन का नाम, रुतबा सब कुछ था. नहीं मिली तो मुझे अपने लिए उन के दिल में थोड़ी सी भी जगह.

मेरे अपने पापा कैसे थे, यह तो विस्मृत हो गया था मेरी नन्ही यादों से, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ यह बखूबी समझ आ रहा था कि ये वाले पापा वाकई दुनिया के बैस्ट पापा थे, जो अपने दोनों बच्चों पर जान छिड़कते थे. मम्मी के सब कुछ करने के बावजूद भी उन्हें खुद स्कूल के लिए तैयार करते, उन्हें गाड़ी से स्कूल छोड़ने जाते, शाम को उन्हें घुमाने ले जाते, उन के लिए बढि़याबढि़या चीजें लाते, खिलौने लाते, तरहतरह की डै्रसेज लाते और भी न जाने क्याक्या. मेरे अकेले के लिए अगर मम्मी कभी कुछ ले आतीं, तो बस बहुत जल्दी सौतेलीमां की उपाधि से उन्हें सजा दिया जाता.

उन बच्चों को तो मेरी मम्मी पूरी तरह से मिल गई थीं. वे उन के संग हर जगह जातीं, संग खेलतीं, संग खातीं, मगर शायद उन की हरीभरी दुनिया में मेरे लिए कोई जगह नहीं थी. यहां तक कि अगर मम्मी मेरा कुछ काम कर रही होतीं और इस बीच यदि श्रेया और अमन, यहां तक कि पापा और दादी का भी कोई काम निकल आता, तो मम्मी मुझे छोड़ कर पहले उन का काम करतीं. इस डर से कि कहीं पापा गुस्सा न हो जाएं, कहीं दादी फिर से सौतेलीमां का पुराण न शुरू कर दें.

हमारे समाज में हमेशा सौतेली मां को इतनी हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है कि वह चाहे अपना कलेजा चीर कर दिखा दे, लेकिन कोई उस की अमूल्य कुरबानी और प्यार को नहीं देखेगा, बस उस पर हमेशा लांछन ही लगाए जाएंगे.

अच्छी मम्मी बनने के चक्कर में मम्मी मेरी तरफ से लापरवाह हो जातीं. सब को सब मिल गया था, मगर मेरा तो जो अपना था वह भी मुझ से छिनने लगा था. मम्मी को मुझे प्यार भी छिप कर करना पड़ता और मेरा काम भी. मैं उन की मजबूरी महसूस करने लगी थी,

मगर मैं भी क्या करती. उन के सिवा मेरा और था ही कौन? उन के बिना तो मैं पूरे घर में अपने को बहुत अकेला महसूस करती थी. चारों लोग कहीं तैयार हो कर जा रहे होते और अगर मैं गलती से भी उन के संग जाने का जिक्र भर छेड़ देती तो मम्मी मारे डर के मुझे चुप करा देतीं.

मेरा बालमन तब पापा की तरफ इस उम्मीद से देखता कि शायद वे मुझे खुद ही साथ चलने को कहें, मगर वहां तो स्नेह क्या, गुस्सा क्या, कोई एहसास तक नहीं था मेरे लिए. जैसे मेरा अस्तित्व, मेरा वजूद उन के लिए हो कर भी नहीं था. वे सब लोग गाड़ी में बैठ कर चले जाते और मैं वहीं दरवाजे पर बैठी रोतेबिसूरते उन के लौटने का इंतजार करती रहती. इतने बड़े घर में अकेले मुझे बहुत डर लगता था. तब सोचती, क्या मम्मी ने इन नए वाले पापा से शादी कर के ठीक किया? पता नहीं उन्होंने क्या पाया, लेकिन जातेजाते बारबार आंसू भरी आंखों से पीछे मुड़मुड़ कर उन का मुझे निहारना मुझ से उन के रीते हाथों की व्यथा कह जाता.

दादी का तो होना न होना बराबर ही था. वे भी मुझ से तब ही बात करती थीं जब उन्हें कोई काम होता था, वरना वे तो शाम को

जल्दी ही खापी कर अपने कमरे में चली जाती थीं. फिर पीछे दुनिया में कुछ भी होता रहे, उन की बला से. मैं आंखों में बस एक ही अरमान ले कर बड़ी होती रही कि एक दिन तो जरूर ही पापा कहेंगे – तू मेरी बेटी है, मेरी सब से प्यारी बेटी…

पूरे 16 साल हो गए इस घर में आए, बचपन की दहलीज को पार कर जवानी भी आ गई, लेकिन नहीं आई तो वह घड़ी, जिस को आंखों में सजाए मैं इतनी बड़ी हो गई. इस बीच अमन और श्रेया तो मुझे थोड़ाबहुत अपना समझने लगे थे लेकिन पापा… हर वक्त उन के बारे में सोचते रहने के कारण मुझ में उन का प्यार पाने की चाह बजाय कम होने के बढ़ती ही जा रही थी. मैं हर वक्त पापा के लिए, अपने छोटे भाईबहन के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहती.

Social Story in Hindi : अपने हिस्से की लड़ाई

लेखक- Satish Saxena

मैं 30 की हो चली हूं. मेरा मानना है कि सब को अपनेअपने हिस्से की लड़ाई लड़नी पड़ती है. एक लड़ाई मैं ने भी लड़ी थी, उस समय जब मैं थर्ड ईयर में थी. पर आज जिंदगी मेरे लिए सांसों का एक पुलिंदा बन चुकी है, जिसे मुझे ढोना है और मैं ढोए जा रही हूं, नितांत अकेली.

मैं नहीं जानती कि मेरी कहानी सुन कर कितनी युवतियां मुझे मूर्ख कहेंगी? कितनी मेरे साहस को सराहेंगी? यह जानने के बाद भी कि मेरे साहस ने ही मुझ से मेरे मातापिता छीने. वह प्यार छीना जो मेरे लिए बेशकीमती था. आज कोई नहीं है, जिसे मैं अपना कह सकूं. केवल और केवल एक हताशा है जो हर पल मेरे साथ रहती है और मेरी जीवनसंगिनी बन चुकी है.

आज मैं एक कालेज में लैक्चरर के पद पर नियुक्त हूं. स्टूडैंट्स को पढ़ाते समय जब कभी किताब खोलती हूं तो मेरी यादों की किताब के पन्ने तेजी से उलटनेपलटने लगते हैं. मुझे याद आ जाते हैं, कालेज के वे दिन जब मेरी मुलाकात आकाश से हुई थी. मैं अपनी सहेलियों में सब से ज्यादा सुंदर थी. मेरी बड़ीबड़ी हिरनी सी बोलती आंखों, गोरेचिट्टे छरहरे शरीर और कमर तक लहराते बालों पर ही तो वह मरमिटा था.

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आमतौर पर बीए फाइनल या एमए करतेकरते परिवार में लड़कियों की शादी तय करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. कुछ लड़कियां अपने मातापिता द्वारा पसंद किए गए लड़कों के साथ शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा लेती हैं, तो कुछ अपने प्रेमी को वर के रूप में पा कर नई जिंदगी की शुरुआत कर लेती हैं.

कालेज में इस उम्र की लड़कियों के बीच अधिकतर भावी पति ही चर्चा का विषय होते हैं. एक दिन मेरे और सहेलियों के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई कि शादी से पहले मंगेतर या प्रेमी के साथ क्या सैक्स उचित है?

कई लड़कियों का मानना था कि इस में अनुचित ही क्या है, जो कल होना है वह आज हो रहा है. आजकल लड़के कुछ ज्यादा ही डिमांडिंग हो गए हैं. यदि उन की डिमांड्स पूरी न हों तो यह भी संभव है कि विवाहपूर्व ही लड़के लड़की के संबंधों में दरार आ जाए. कुछ कह रही थीं कि इस में खतरा भी है. मान लो किन्हीं कारणों से यदि शादी नहीं हो पाई तो यह भी हो सकता है कि लड़का आप को ब्लैकमेल करना शुरू कर दे या यह भी हो सकता है कि लड़के से ब्रेकअप के बाद भविष्य में होने वाली शादी में, इस प्रकार का संबंध अड़चन बन जाए.

मैं शादी से पहले यौन संबंधों की पक्षधर कभी नहीं थी. मेरी नजर में ऐसे रिश्ते कैलकुलेटेड होते हैं, जो मात्र लड़की का शरीर पाने के लिए बनाए जाते हैं. इन में प्यार नहीं होता. वे लड़के जो अपनी भावी पत्नी या प्रेमिका से शादी से पहले सैक्स की डिमांड करते हैं, उन के लिए नारी केवल एक संपत्ति होती है, जिस का उपयोग वे अपनी इच्छानुसार करना चाहते हैं. वे यह भी नहीं सोचते कि जिस ने आप को अपना सर्वस्व समर्पित किया, अपने प्यार से आप को स्पंदित किया, उस के भी अपने कुछ जज्बात हैं? उस की भी अपनी कोई सोच है. यदि कुछ अवांछित हो गया तो भुगतना तो लड़की को ही पड़ेगा. खैर, यह अपनीअपनी लड़ाई है, जिसे प्रत्येक लड़की को अपनेअपने तरीके से लड़ना पड़ता है. मैं ने अपना प्रश्न रखा था. बहस का कोई परिणाम नहीं निकला.

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मेरे और आकाश के रोमांस को लगभग 2 महीने हो चले थे. उस के लिए हर दिन वेलैंटाइन डे हुआ करता था, वह कालेज के गेट पर मेरे आने से पहले एक गुलाब लिए खड़ा रहता. मुझे देखते ही उस की आंखें नशीली हो उठतीं. चेहरे पर कातिलाना मुसकराहट उभर आती. मेरा भी मन पुलकित हो उठता. प्रेम की ताजा और स्फूर्त गंध हम दोनों के बीच बहने लगती. वह मुझे बड़े आशिकाना अंदाज में फूल भेंट करता और कहता, ‘स्वागत है आप का, हुस्न ए मलिका अनामिका.’ उस के शब्द सुनते ही जाने कितने प्यार के पटाखे मेरे मन में भड़ाकभड़ाक की आवाज के साथ फटने लगते थे.

उन 2 महीने में मैं ने कभी यह महसूस नहीं किया कि वह प्रेम को सीधे सैक्स से जोड़ कर देखता है या उस में मेरे प्रति कोई दैहिक आकर्षण है. मुझे तो वह हर पल भावनात्मक रूप से ही जुड़ा हुआ मिला. यही उस की विशेषता थी जो मुझे उस से बांधे रखती थी. यही वह गुण था जो उसे अन्य लड़कों से भिन्न बनाता था. उस की उपस्थिति से ही मेरे मन के तार झंकृत होने लगते थे.

फिर एक दिन वह हो गया जिस की मुझे अपेक्षा नहीं थी. लाइब्रेरी के सामने वाली गैलरी में किसी को अपने आसपास न पा कर उस ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और अपने अधर मेरे अधरों पर टिकाने की कोशिश करने लगा. मेरे लिए यह स्थिति असह्य थी. क्रोध आंखों में उतर आया. शरीर कंपकंपा गया.

‘आकाश… हाउ डेयर यू?’ मैं ने  उसे धकेलते हुए गुस्से से कहा, ‘‘तुम ने मुझे समझ क्या रखा है? एक भोग्या? आई नैवर ऐक्सपैक्टेड दिस फ्रौम यू? गैट लौस्ट.’’ फिर पता नहीं कितनी देर तक मेरे शरीर में अंगारे दहकते रहे थे. मस्तिष्क में चिनगारियां फूटती रही थीं. मन सुलगता रहा था.

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मैं ने देखा, आकाश का हाल मुझ से बिलकुल उलटा था. चेहरा उड़ाउड़ा सा था. मानो कीमती वस्तु के अचानक खो जाने का डर उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

‘‘आई एम सौरी,’’ कंपकंपाते हाथों से उस ने मेरी बांहें पकड़ते हुए कहा था, ‘‘पता नहीं मैं कैसे सुधबुध खो बैठा? मेरा मकसद तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था. इतने अरसे से हम मिलते रहे हैं, पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ? प्लीज, आई एम सौरी अगेन.’’

उस दिन आकाश ने मेरी बांहें उस समय तक नहीं छोड़ी थीं, जब तक कि मैं ने उसे माफ नहीं कर दिया था.

एक जवान लड़की की मां, लड़की को ले कर किनकिन परेशानियों से जूझती हुई जीती है, यह मेरी मां इंद्रा ही जानती थीं या वे स्त्रियां जानती हैं, जिन की बेटियां जवान हो जाती हैं.

मेरे लिए मां हर पल परेशान रहती थीं. मेरे घर से बाहर निकलने से ले कर लौटने तक, चैन की सांस नहीं ले पाती थीं. हीरा सब के सामने हो तो कौन उसे लूटने का प्रयास नहीं करेगा? वे इसी भय से मुक्ति चाहती थीं. उन का कहना था कि मैं एक बार घर से विदा हो कर अपने पति के घर चली जाऊं, तब जा कर उन्हें चैन मिलेगा. पिताजी भी यही चाहते थे कि मैं फाइनल ईयर करतेकरते ही लाइफ में सैटल हो जाऊं.

बड़े प्रयासों के बाद उन्हें एक अच्छे परिवार वाला शिक्षित, सौम्य और संस्कारी लड़का मिला. वह आगरा में एक प्राइवेट फर्म में अच्छे पद पर कार्यरत था. लड़के के पिता ने पिताजी से कहा कि आप आगरा आइए. हमारा घर देखिए. लड़केलड़की को मिल लेने दीजिए, यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो शादी की बात भी हो जाएगी.

मां लड़के के पिता की बातें सुनते ही रोमांचित हो गई थीं. प्रतीत हुआ था जैसे उन का नाम किसी अवार्ड फंक्शन के लिए नामांकित हो गया हो. उन्होंने दूसरे दिन ही आगरा जाने की तैयारियां कर डालीं.

युवकयुवतियों के सिर से प्यार का भूत उतरे नहीं उतरता. मेरे सिर से भी नहीं उतरा था. मैं इस रिश्ते के लिए तैयार ही नहीं हुई. मैं ने स्पष्ट शब्दों में मां से कह दिया था, ‘‘मां, आकाश मेरा प्यार है. मैं शादी करूंगी तो उसी से, वरना नहीं.’’

मां बोली थीं, ‘‘हमारे खानदान में दूरदूर तक किसी ने प्रेमविवाह नहीं किया है तो मैं तुझे कैसे करने दूंगी? और यह जो तू प्यारप्यार करती है, यह प्यार नहीं है, एक हवस है. जैसे ही यह खत्म हुई वैसे ही प्यार का नशा भी उतर जाएगा. तुझे शादी तो हमारी इच्छा से ही करनी पड़ेगी.’’

‘‘यह नहीं होगा, मां,’’ मैं ने स्पष्ट कहा, ‘‘इस से बेहतर है कि मैं जिंदगी भर कुंआरी ही रहूं.’’

‘‘और यदि हमारे मनमुताबिक नहीं हुआ तो हम दोनों तुझ से रिश्ता ही तोड़ लेंगे,’’ मां अपना आपा खो चुकी थीं.

अंतत: मैं आगरा जाने के लिए तैयार हो गई थी. आगरा में मैं ने लड़के से मिलते ही अपने संबंध के बारे में सबकुछ साफसाफ बता दिया था. लड़का सुलझा हुआ था. पीढि़यों और विचारों के अंतर को भलीभांति समझता था. उस ने ही इस शादी से इनकार कर दिया.

अब मां को अपनी परेशानियों का अंत आसपास कहीं भी दिखाई नहीं दिया. निवाला हर बार मुंह के पास आतेआते नीचे गिर जाता था. लड़का पसंद आता भी तो शादी की बात किसी न किसी कारण से अधूरी रह जाती.

फिर धीरेधीरे उन की हताशा ने मेरे सुख में ही अपना सुख तलाशना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने मन में मेरे और आकाश के प्यार को रोकने के लिए जिद का जो बांध बांध रखा था, समय के साथसाथ वह टूटने लगा. पहले कुछ दरारें दिखाई दीं, फिर समूचा बांध ही ध्वस्त हो गया.

फिर एक दिन पिताजी की उपस्थिति में मां ने मुझे अपना फैसला सुना दिया, ‘‘हमें तेरी और आकाश की शादी मंजूर है. उसे एक दिन मातापिता के साथ बुला लो. उन की सहमति मिलते ही हम, तुम दोनों की सगाई कर देंगे.’’

यह सुन कर जो खुशी मुझे मिली थी, उस का वर्णन ठीक तरह से कर ही नहीं पाऊंगी. पोरपोर से प्यार शोर मचा रहा था. जीत जश्न मनाने लगी थी. आकाश का हाल भी मुझ जैसा ही था. हमारी मुट्ठियों में सारा आसमान सिमट आया था. बस, हमें और क्या चाहिए था?

दूसरे दिन ही दोनों परिवार इकट्ठे हुए. दोनों परिवारों ने अपने बच्चों की खुशियों के लिए रिश्ता मंजूर कर लिया और फिर 20 दिन बाद हमारी सगाई हो गई थी. मुझे शुरू से ही यह स्लोगन बहुत अच्छा लगता था, ‘ये दिन भी न रहेंगे.’ हमारा दुख सुख में बदल चुका था. उस के बाद तो हम ने जमाने को पीछे मुड़ कर देखना ही छोड़ दिया था.

सगाई के कुछ दिन बाद ही मेरा जन्मदिन था. जन्मदिन पर आकाश ने मुझे उपहार में 50 हजार रुपए की नीले रंग की साड़ी दी थी और होटल वेलैंटाइन में एक शानदार डिनर पार्टी भी. उस दिन मैं बहुत खुश थी. देर रात तक पार्टी चलती रही थी. पार्टी खत्म होते ही मैं उस रूम में चली आई थी, जो आकाश ने मेरे आराम के लिए बुक किया था. उस समय वह अपने दोस्तों में व्यस्त था.

रात को 2 बजे आकाश मेरे कमरे में घुसा था. उस के मुंह से शराब की दुर्गंध आ रही थी. कमरे में घुसते ही वह बोला, ‘‘आई नीड यू डार्लिंग, कम औन.’’

उस के इरादे समझते ही मैं बेड से उठ गई थी. तीखे शब्दों में मैं ने उस से कहा था, ‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो आकाश, शादी से पहले मुझे ऐसे संबंध पसंद नहीं हैं’’ ऐसा बोलते समय मैं भय से कांप भी रही थी.

‘‘डौंट टैल मी, ये लड़कियों के चोचले हैं. मैं बखूबी जानता हूं. और डार्लिंग अब तो हमारी सगाई भी हो चुकी है. यू आर माई वुड बी वाइफ नाऊ,’’ कह कर वह मेरी ओर बढ़ने लगा था.

मैं उस का एग्रेशन देख कर ही समझ गई थी कि मुझे पाना उस की जिद है. आज वह यह जिद पूरा कर के ही रहेगा. वह अपनी जिद पर अड़ा रहा और मैं अपनी जिद पर.

जब मैं नहीं झुकी तो उस ने मुझे चेतावनी दे डाली, ‘‘अगर तुम्हें मेरी इच्छा की कोई परवा नहीं है तो मुझे भी तुम्हारी कोई परवा नहीं है. मैं तुम से अपने संबंध अभी, इसी वक्त तोड़ता हूं. अब हमारी शादी कभी नहीं होगी. अपने ऐथिक्स का सेहरा अपने सिर पर बांध जिंदगीभर डोलती रहना.’’

वह उठ कर कमरे से बाहर जाने का प्रयास करने लगा. मैं काटो तो खून नहीं वाली स्थिति में आ गई. मैं ने तेजी से आगे बढ़ कर उसे फिर सोफे पर बिठा दिया. मैं गिड़गिड़ाने लगी थी, ‘‘यह क्या कह रहे हो आकाश? तुम नशे में हो. नहीं समझ पा रहे हो कि जो कुछ तुम ने कहा है, यदि ऐसा हुआ तो इस का असर हमारी जिंदगियों को तबाह कर देगा. जिस प्यार को मैं ने मुश्किल से पाया है, वह मेरी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाएगा. प्लीज, जरा यह तो सोचो?’’

पर वह जरा भी विचलित नहीं हुआ. कहने लगा, ‘‘माई डिसीजन इज फाइनल, तुम्हें क्या करना है, इस का फैसला तुम कर लो.’’ मेरी पकड़ से छूटने का प्रयास करते हुए उस ने अपना फैसला सुना दिया.

मैं उसे और नहीं रोक पाई थी. सारी मिन्नतें, कसमें, वादे सब नाकाम होते चले गए थे. वह तेजी से उठा और कमरे से निकल गया.

उस सवेरे 3 जिंदगियां मर गई थीं. मेरी, मां की और पिताजी की. पिताजी ने आकाश के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करने का निश्चय किया तो मां ने उन्हें रोक दिया. मेरी बदनामी का डर था. उस के बाद हम ने शहर ही छोड़ दिया. कुछ समय बाद न मां रहीं, न पिताजी. दोनों को सदमा निगल गया. रह गई तो सिर्फ मैं, हताश, अपनी जिंदगी को ढोती हुई.

पीरियड खत्म हो गया है. किताब भी बंद हो गई है. पर मैं अभी भी अनिश्चितता की स्थिति में हूं. मुझे नहीं पता कि मैं अपनी लड़ाई जीती हूं या हारी? मां और पिताजी की मौत का बोझ मेरे सिर पर है. यह मुझे आज की युवतियां ही बता पाएंगी कि मेरा आकाश की इच्छाओं के सामने झुकना सही था या गलत? मुझे तो इसी तरह जीना है. सिर्फ इसी तरह.

 

मैं 27 वर्षीय युवती हूं, एक 2 वर्षीय बेटी है, मैं अपनी शादी से खुश नहीं हूं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 27 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 3 साल हो चुके हैं. एक 2 वर्षीय बेटी है. मैं अपनी शादी से खुश नहीं हूं. मुझे क्या करना चाहिए? वैसे बाहरी तौर पर देखने पर सब ठीक लगता है. सुंदर, सुशील पति है. संपन्न परिवार है, जो एक आम लड़की की ख्वाहिश होती है, पर मुझे सुकून नहीं है.

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जवाब

आप ने पूरा खुलासा नहीं किया कि आप अपनी शादी से खुश क्यों नहीं हैं. आर्थिक रूप से संपन्न हैं, मातृत्व सुख भी है, फिर परेशानी क्या है? पति आप को प्यार नहीं करते, आप ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया. पर यदि ऐसी कोई शिकायत है तो भी आप को अपने प्यार और व्यवहार से उन का दिल जीतने का प्रयास करना चाहिए. घरपरिवार में तालमेल बैठाने का प्रयास करना चाहिए. समय के साथ स्थितियां आप के अनुकूल हो जाएंगी. आप को अपनी बेटी पर भी ध्यान देना है. यदि आप स्वयं दुखी और तनाव में रहेंगी तो बच्ची की ठीक से परवरिश नहीं कर पाएंगी. अत: विवेक से काम लें.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

सर्वभक्षी कीट मिलीबग का प्रबंधन

लेखक-रवि प्रकाश मौर्य,

पिछले कई सालों से मिलीबग के रूप में एक नई चूषक कीट की समस्या देखने को मिल रही है. आने वाले समय में इस कीट की समस्या और भी बढ़ेगी, इसलिए समय रहते इस का प्रबंधन करना जरूरी है. मिलीबग कीट पहले कुछ खरपतवारों और आम के पौधों पर ही दिखाई पड़ता था, परंतु धीरेधीरे अपना स्वभाव बदल कर अब यह दूसरे फलफूलों और फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगा है. मिलीबग के पोषक पौधे आम, कटहल, अमरूद, नीबू, आंवला, पपीता, शहतूत, करौंदा, अंजीर, पीपल. इस के अलावा बरगद, भिंडी, बैगन, मिर्च, गन्ना, गुलाब, गुड़हल आदि पर यह कीट पाया जाता है.

पहचान और क्षति के लक्षण मिलीबग एक छोटा, अंडाकार, पीले, भूरे या हलके भूरे रंग का सर्वभक्षी कीट है. इस कीट का शरीर सफेद मोम जैसी चूर्णी पदार्थ से ढका रहता है. यह पौधों का रस चूसता है और मधु स्राव भी छोड़ता है, जिस पर काली फफूंद लग जाती है. यह कीट मार्च से नवंबर महीने तक सक्रिय रहता है और प्रौढ़ के रूप में सर्दियों में निष्क्रिय हो जाता है. यह पौधों का रस चूस कर पौधों को कमजोर बना देते हैं. पौधों की पत्तियों, तने, फूलों व फलों पर सफेद रुई जैसे गुच्छे उभरने लगते हैं. इसे दहिया रोग भी कहा जाता है. इस के प्रकोप से पत्तियां पीली हो कर मुड़ने लगती हैं.

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ये कीट चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जिस से चींटियां और दूसरे कीट आकर्षित होते हैं. ऐसे करें प्रबंधन * फूलों व सब्जियों में अच्छे स्वस्थ बीजों का चयन करें. खेत में खरपतवार को नष्ट कर दें और खेत को साफ रखें.

* पौधों के संक्रमित भाग को पौधों से अलग कर के नष्ट करें.

* संक्रमित खेत में प्रयोग किए गए यंत्रों को साफ कर के प्रयोग करें. इस से बचाव के लिए एजादिरेक्टीन 2 मिलीलिटर या फिर 2 मिलीलिटर क्लोरोपाइरीफास या 2 मिलीलिटर साइपरमेथ्रिन प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. वृक्षों में प्रबंधन गरमी के दिनों यानी मईजून के महीने में पेड़ के चारों ओर एक मीटर लंबाई में खेत की अच्छी तरह गुड़ाई करनी चाहिए, ताकि दिए हुए अंडे ऊपर आ कर नष्ट किए जा सकें.

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नवंबर महीने में जिस समय कीट दिखाई देते हैं, तो उन को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए जमीन से डेढ़ फुट ऊपर तने में मोटी पौलीथिन 30 सैंटीमीटर चौड़ी पेड़ के चारों तरफ बांध देनी चाहिए और बंधी पौलीथिन के ऊपर व नीचे की तरफ ग्रीस लगा देनी चाहिए, जिस से शिशु पेड़ पर नहीं चढ़ पाते हैं. इस से बचने के लिए एजादिरेक्टीन 2 मिलीलिटर या फिर 2 मिलीलिटर क्लोरोपाइरीफास या 2 मिलीलिटर साइपरमेथ्रिन प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. ध्यान रहे, पहले दूसरे उपायों और जैविक कीटनाशी का इस्तेमाल करें. बहुत जरूरत पड़ने पर ही रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल सावधानी के साथ करें.

indian idol 12: मीका सिंह ने रियलिटी शो के जजों को लताड़ा, कहा- यहां ड्रामा हो रहा है

बीते कुछ दिनों से सिंगिग रियलिटी शो इंडियन आइडल 12 चर्चा का विषय बना हुआ है. इस शो को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब किशोर कुमार को ट्रिब्यूट देने उनके बेटे अमित कुमार पहुंचे.

शो से बाहर आते ही उन्होंने कहा कि उन्हें फोर्स करके शो के कंटेस्टेंट कि तारीफ करवाई गई है. उनके इस बयान के बाद से कुछ लोग उनके सपोर्ट में हैं तो वहीं कुछ लोग उनके खिलाफ हो गए हैं. अब इस पूरे मामले पर पॉप्यूलर सिंगर मीका सिंह का रिएक्शन आ गया है.

इंडियन आइडल के इस विवाद पर सलीम मर्चेंट और कई लोग अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं. उन्हें लोगों ने सपोर्ट किया है तो कुछ लोगों ने गलत कहा है. कि शो के अंदर की बात को उन्हें सर्वजनिक नहीं करना चाहिए था.

हाल ही में एक इंटरव्यू में मीका सिंह ने रियलिटी शोज के कई जजों की जमकर लताड़ लगाई है. मीका सिंह ने कहा कि जो लोग गलत तरीके से शोज में आकर दूसरों की भावनाओॆ को ठेस पहुंचाते हैं. वैसे शोज में कभी रियल लोग आ ही नहीं सकते हैं.

जो लोग खुद को जज कहते थे वह आज पूरे तरह से ट्रोल होते नजर आ रहे हैं. उन्हें पता ही नहीं है कि वह क्या कर रहे हैं.

आगे मीका सिंह ने अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पहले लोग इसे रियल कहते थें, इसलिए इसका नाम रियलिटी शो पड़ा है. प्रॉब्लम यह है कि जो लोग जज कर चुके हैं या फिर ये सब देख रहे हैं. ये बातें इनके बारे में हो रही है. रियलिटी शो को जज करने के लिए अप्रोच नहीं किया जाता है यह आपका टैलेंट आपको लेकर जाता है.

नेहा कक्कड़ ने किया पति रोहनप्रीत संग इस गाने पर डांस, वीडियो हुआ वायरल

नेहा कक्कड़ के भाई टोनी कक्कड़ ने हाल ही में अपना गाना ‘ साथ क्या निभाओगे’ रिलीज किया है, जिसे खूब पसंद किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर यह गाना खूब छाया हुआ है. टोनी कक्कड़ ने अल्ताफ राजा के  पुराने गाने को दूबारा रिक्रिएट किया है.

इस गाने में सोनू सूद और निधि अग्रवाल नजर आ रहे हैं. वहीं बहन नेहा कक्कड़ भाई के इस गाने को लेकर काफी ज्यादा खुश हैं. हाल ही में नेहा के पति रोहनप्रीत ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह नेहा और साले रोहनप्रीत के साथ डांस करते नजर आ रहे हैं.

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गाने के शुरुआत में नेहा पहले तो रूठकर चली  जाती हैं बाद में वह अपने अंदाज में आकर डांस करती हैं. इनका यह अंदाज फैंस को काफी ज्यादा पसंद आता है.

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10 अगस्त को शेयर किए गए वीडियो को खूब पसंद किया जा रहा है. लोग इस वीडियो पर प्यार लुटाते नजर आ रहे हैं. इस वीडियो को खूब लाइक और व्यूज मिल चुके हैं.

नेहा कक्कड़ इन दिनों अपने पति के साथ क्वालिटी टाइम बिताती नजर आ रही हैं. नेहा कुछ दिनों पहले ही पति के साथ एयरपोर्ट पर स्पोर्ट हुईं थी. जहां लोगों ने प्रेग्नेंसी को लेकर उन्हें ट्रोल किया था.

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कुछ दिनों पहले नेहा कक्कड़ अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से लोगों को ऑनफॉलो किया है. जिसे लेकर वह चर्चा में बनी हुईं थी. नेहा के इस डिसीजन पर खूब विवाद भी हुआ था.

खैर नेहा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह आएं दिन नए- नए पोस्ट शेयर करती रहती हैं. जिसका इंतजार फैंस को होता है.

 

Social Story in Hindi : कायर- जब देश के लिए कुछ करने का सपना देखने वाला नरेंद्र फंसा भ्रष्टाचार के दलदल में

लेखक- कर्नल पुरुषोत्तम गुप्त (से.नि.)

‘‘अब क्या होगा?’’ माथे का पसीना पोंछते हुए नरेंद्र ने नंदिता की ओर देखा. फरवरी माह में तापमान इतना नहीं होता कि बैठेठाले व्यक्ति को पसीना आने लगे. अंतर्मन में चल रहे द्वंद्व और विकट मनोस्थिति से गुजर रहे नरेंद्र के पसीने छूट रहे थे. यह केवल एक साधारण सा प्रश्न था या उस अवसाद की पराकाष्ठा जो उस को तब से साल रही थी जब से उसे वह पत्र मिला है.

कुछ पल दोनों के बीच मरुस्थल जैसी शांति पसरी रही. फिर नंदिता बोली, ‘‘इतनी चिंता ठीक नहीं. जो होगा सो होगा. शांत मन से उपाय ढूंढ़ो. अकेले तुम तो हो नहीं. हमाम में तो सारे ही नंगे हैं. और फिर ये ढेर सारे मंत्री, जिन की तोंद मोटी करने में तुम्हारा भी अहम योगदान रहा है, क्या तुम्हारी मदद नहीं करेंगे?’’

अपनी बात नंदिता पूरी कर भी नहीं पाई थी कि नरेंद्र ने कहा, ‘‘डूबते जहाज से चूहे तक भाग जाते हैं. यह एक पुरानी कहावत है. मुझे नेता वर्ग से कतई उम्मीद नहीं है कि वे मुझे इस मुसीबत से निकालेंगे. इस घड़ी में मुझे मित्र के नाम पर कोई भी नजर नहीं आता.’’

नरेंद्र के कथन में निराशा और व्यथा का मिश्रण था. नंदिता, जिस की सोच कुछ अधिक जमीनी थी, कुछ पल सोचने के बाद बोली, ‘‘इस परेशानी के हल के लिए भी पक्के तौर पर वकील होंगे जैसे हर बीमारी के लिए अलगअलग डाक्टर होते हैं. जरूरत है तो थोड़े प्रयास की. विश्वासपात्रों के जरिए पता लगाओ और सब से अच्छे वकील की सहायता लो. थोड़ेबहुत संपर्क मेरे भी हैं. मैं भी भरपूर प्रयास करूंगी कि कोई रास्ता निकले.’’

यह कह कर दोनों अपनेअपने काम में लग गए. इस समस्त चर्चा का कारण था वह पत्र जो नरेंद्र को विभाग से मिला था. उस के विरुद्ध भ्रष्टाचार के अनेक आरोप थे जिन का स्पष्टीकरण 2 सप्ताह के भीतर मांगा गया था. नरेंद्र अतीत में डुबकियां लगाने लगा.

15 साल पहले जब वह भारतीय प्रशासनिक सेवा में भरती हुआ था, अनेक सपने उस की आंखों में तैर रहे थे.

देश और समाज के प्रति समर्पित एक ऐसा नवयुवक जो कुछ कर दिखाने का संकल्प ले कर देश की सर्वोच्च सेवा प्रणाली में दाखिल हुआ था. जीवन के बीहड़ में अंधेरे कब उजालों पर हावी होते चले गए, कुछ पता ही नहीं चला. गरमी में पिघलती मोमबत्ती की तरह कब सपने साकार होने से पहले ही मटियामेट हो गए, इस का उसे ज्ञान ही नहीं हुआ.  व्यवस्था का शिकार होना जैसे उस की नियति बन गई. शायद कुछ अच्छे संस्कारों और परवरिश का ही प्रभाव था कि वह कीचड़ में धंस तो अवश्य गया था पर उस ने अपना विवेक पूरी तरह से खोया नहीं था.

भ्रष्ट आचरण उसे विकट परिस्थितियों में अपनाना तो पड़ा पर अपनी नैतिकता की धज्जियां उड़ते देख वह अकसर रो पड़ता. इस अवांछित उत्पीड़न से बचने का वह हरसंभव प्रयास करता और अपने उत्तरदायित्व के सेवाभाव को व्यापार भाव से कलंकित होने से बचाने की कोशिश करता. लगभग 12 वर्ष पहले नंदिता ने उस की पत्नी के रूप में उस के जीवन में प्रवेश किया. नंदिता इतनी सुंदर कि कोई भी उस की आंखों की ऊष्मा से पिघल कर बह जाए.

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अत्यंत महत्त्वाकांक्षी और भौतिक युग की हर सुंदर वस्तु से अबाध मोह. नातेरिश्तों का केवल इतना महत्त्व कि वे उस के अपने लक्ष्यों की उपलब्धि में सहायक हों, बाधक नहीं. उस के लिए विवाह एक औपचारिक आवरण था सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने का.

यों तो सामान्य तौर पर वह एक अच्छी पत्नी और 10 वर्षीय बेटे की मां थी, पर कहीं गहरे में उसे ठहराव से नफरत थी. उसे आंधीतूफान की तरह बहना और उड़ना ही रुचिकर लगता था. पति के सेवाकाल में उस के शीर्षस्थ अधिकारियों और राजनीतिक क्षेत्र में प्रभावशाली व्यक्तियों से सामान्य से अधिक घनिष्ठ संबंध थे. उस की धनलोलुपता के कारण उन के आपसी संबंधों में प्राय: कड़वाहट आ जाती. उस की अनंत इच्छाओं की पूर्ति के लिए उसी अनुपात में धन की भी आवश्यकता रहती. नरेंद्र अकसर इस का तीव्र प्रतिरोध करता और अपनी सीमित आय का हवाला देता पर नंदिता उस पर निरंतर दबाव बनाए रहती.

स्वप्नलोक से जब वापस यथार्थ की धरती पर वह आया तो उस पत्र ने उसे फिर से आतंकित करना शुरू कर दिया. पिछले 2 सालों से वह समाज कल्याण विभाग का निदेशक था. काफी बड़ा विभाग था. इस के अंतर्गत आने वाली विविध गतिविधियों का दायरा बहुत बड़ा था. विभाग का सालाना बजट लगभग 600 करोड़ रुपए का था. यह एक अथाह समुद्र था जिस में अधिकतर काम केवल कागजों पर ही होता और धन का बंटवारा हो जाता. नरेंद्र ने इस संस्कृति को बदलने का पूरा प्रयास किया पर उसे आंशिक रूप से ही सफलता मिल सकी.

उस आवें (भट्ठे) में बैठ कर अपना आचरण अलग कैसे निर्धारित कर सकता था, उसे भी तो उसे जलाते रहने के लिए लकडि़यां जुटानी थीं. और फिर नंदिता का लगातार दबाव और अनंत चाहतें. जिंदगी के अंधेरेउजियारे गलियारों को पार करता वह इस मुकाम पर बेदाग पहुंचा था और अब उस को कसौटी पर कसने का प्रबंध किया जा रहा था.

किसी अच्छे वकील से सलाह करने की नंदिता की राय उसे सही लगी. निदेशक के रूप में उस का संपर्क 1-2 वकीलों से था. रमण बाबू का वकील के रूप में काफी दबदबा था. संयोग से उन का टेलीफोन नंबर उस के मोबाइल में था. तुरंत बात कर मिलने का समय तय किया और अगले दिन पहुंच गया उन के चैंबर में. औपचारिक शिष्टाचार के बाद नरेंद्र ने खुद पर लगे आरोपों को विस्तार से बताया और जांच संबंधी मिला पत्र वकील साहब के सामने रख दिया.

कुछ देर शांत रहने के बाद रमण बाबू बोले, ‘‘देखिए, अभी यह केस प्रारंभिक अवस्था में है. यह पत्र किन्हीं ठोस प्रमाणों या साक्ष्यों की ओर इंगित नहीं करता है पर बिना किसी आधार के यह पत्र जारी नहीं किया जाता, इसलिए इस के पीछे कुछ ठोस प्रमाणों के होने की पूरी संभावना है. इसे नकारना या स्वीकारना बुद्धिमानी नहीं होगी. इसे मेरे पास छोड़ दीजिए. इस का उत्तर सामान्य रूप से ही दिया जाएगा और मैं इस का प्रारूप 1-2 दिन में बना कर आप को सूचित कर दूंगा.’’

चायनाश्ते के बाद यह बातचीत समाप्त हो गई और नरेंद्र वापस आ गए. योजनानुसार पत्र का उत्तर रमण बाबू के माध्यम से दिया गया. शेर अपने बाड़े से बाहर आ चुका था तो केवल एक उत्तर से कैसे शांत होता.

सतर्कता विभाग का अगला पत्र और कठोर था जिस में न नकारे जा सकने वाले तथ्यों का ब्योरा था और शीघ्र ही उत्तर की अपेक्षा थी जिस के अभाव में अगली कार्यवाही की चेतावनी भी थी. रमण बाबू ने अपने अनुभव और ज्ञान से तो उत्तम उत्तर ही देने का प्रयास किया, लेकिन सतर्कता विभाग ने उसे खारिज कर जांच के आदेश दे दिए.

नरेंद्र का आत्मविश्वास डगमगा गया था. सचाई से लड़ने की ताकत नरेंद्र में नहीं थी. नंदिता की सोच जैसी भी रही हो, वह इस घड़ी में अपने को अलग नहीं रख सकती थी. एक घनिष्ठ मित्र रहे मंत्री से फोन पर मिलने का समय ले कर वह खूब सजधज कर उन के यहां जा पहुंची.

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‘‘वाह जानेमन, आज तुम ने इस नाचीज को कैसे याद किया,’’ मंत्री महोदय ने उत्साहित हो कर नंदिता को अपनी बांहों में भर लिया. नंदिता ने कोई प्रतिरोध नहीं किया पर शीघ्र ही संयत हो कर अपने पति की व्यथा उन के सामने रखी और उन से मदद की अपेक्षा जाहिर की. एकाएक मंत्रीजी ने पैतरा बदला और कुछ पल पहले का आसक्तपूर्ण व्यवहार अत्यंत नाटकीय हो गया. शब्द चाहे कितने ही विनम्र रहे हों पर आशय यही था कि वे इस मामले में पूरी तरह असमर्थ हैं.

उस ने हार नहीं मानी और अपने प्रयासों को और तेज किया. लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात. इस संकट की घड़ी में किसी ने साथ न दिया. उस ने एक आखिरी प्रयास और करने का विचार किया.

नरेंद्र के एक बैचमेट सुधीर काफी लोकप्रिय अधिकारी थे और उन से दोनों के घनिष्ठ संबंध थे. 2 वर्ष पहले उन की पत्नी का एक कार दुर्घटना में देहांत हो गया था. सारी बात सुन कर सुधीर ने सांत्वना दी और इस विपदा में उन का साथ देने का वादा किया पर ठोस रूप से वे कुछ कर पाएंगे, इस की आशा बहुत कम थी.

समय समाप्त होने पर सतर्कता विभाग के डीएसपी ने नरेंद्र से मिलने की पेशकश की. अब स्थिति साफ हो गई थी. शिकंजा धीरेधीरे कसता जा रहा था. निश्चित समय पर नरेंद्र के कार्यालय में डीएसपी रामपाल पहुंच गए. पहले दौर की बातचीत, कार्यालय की कार्यप्रणाली, उस के विभिन्न उपविभागों की जानकारी आदि तक सीमित रही और रामपाल ने किसी विशिष्ट विवरण और स्पष्टीकरण को नहीं छुआ. अगली मीटिंग 7 दिन बाद निश्चित की गई.

इस अंतराल में रामपाल ने एक लंबी प्रश्नावली तैयार की जिस का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उन आरोपों से गहन संबंध था जो नरेंद्र पर लगे थे. तहकीकात की कला में प्रशिक्षित और अत्यंत बुद्धिमान पुलिस अफसर के रूप में रामपाल की काफी ख्याति थी और यह बात नरेंद्र को भलीभांति मालूम थी.

उसे इस बात का अब पूरा विश्वास हो गया था कि उस का बच कर निकलना असंभव ही है. उस ने रमण बाबू को फोन किया और सारी स्थिति से अवगत कराया. वे भी रामपाल की योग्यता से थोड़ाबहुत परिचित थे, बोले, ‘‘खरीद लो.’’

‘‘क्या कहा?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘जो तुम ने सुना. खरीद लो,’’ यह कह कर रमण बाबू ने फोन काट दिया.

अगली मीटिंग निर्धारित दिन और समय पर हुई. इस से पहले कि रामपाल अपनी प्रश्नावली के आधार पर पूछताछ शुरू करते, नरेंद्र ने पूछा, ‘‘डीएसपी साहब, इस गुत्थी को सुलझाने का कोई और विकल्प है? मुझे मालूम है कि मैं इस समय कहां खड़ा हूं. किन परिस्थितियों में यह सब हुआ, उस की विवेचना से कोई लाभ नहीं. क्या आप मुझे किसी प्रकार इस विपत्ति से बचा सकते हैं?’’

रामपाल ने कोई जवाब नहीं दिया. उसे ऐसी स्थितियों से अकसर दोचार होना पड़ता था. कुछ देर खामोशी के बाद पुन: नरेंद्र ने विनय याचना की जिस का कोई प्रभाव रामपाल पर नहीं पड़ा. अंत में नरेंद्र ने कहा, ‘‘डीएसपी साहब, मुझे यह बताएं कि मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’

पुलिस अफसर और इस भाषा का अर्थ न समझे, इस की संभावना शून्य थी. रामपाल चुप रहा.

‘‘कहिए, ‘2’ ठीक रहेगा,’’ नरेंद्र ने कहा.

कोई उत्तर तो दूर, कहीं किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया भी रामपाल ने नहीं की.

‘‘कम हैं तो 3 सही, अन्यथा आप ही कुछ सुझाएं,’’ नरेंद्र ने पुन: कहा.

रामपाल निर्लिप्त भाव से बैठे रहे, जैसे वे न समझ में आने वाली कोई फिल्म देख रहे हों.

यह मरघट की सी चुप्पी नरेंद्र के लिए जानलेवा साबित हो रही थी. धीरेधीरे उस ने अपना ‘औफर’ 10 लाख रुपए तक कर दिया पर उस विकट पुलिस अफसर ने न इस का कोई प्रतिवाद किया और न ही किसी प्रकार का आक्रोश जताया.

अंत में रामपाल उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘सर, मैं कल इसी समय आऊंगा और तब बात केवल केस से संबंधित विषय पर ही होगी. कृपया इस का ध्यान रखिएगा.’’

नरेंद्र को अब लेशमात्र भी संदेह नहीं रह गया था कि उस के बचाव के सब रास्ते बंद हो चुके हैं. अब संघर्ष की कोई संभावना नहीं बची है. उस की समस्त आशाओं पर पानी फिर चुका था. जीवन में व्यर्थता का बोध बढ़ता जा रहा था. रामपाल से अगली मीटिंग का परिणाम उसे मालूम था. बयान कलमबंद किए गए. अगला कदम कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल करना था.

वह पूरी तरह टूट चुका था और काल ने जैसे यह निश्चय कर लिया था कि वह हरसंभव दुख और परेशानी नरेंद्र की झोली में डाल देगा. परिस्थितियों ने उसे पाट दिया था. आत्मदया के पोखर में वह डूबताउतराता रहता. आने वाली निकृष्ट जिंदगी से आतंकित हो अकेले में विलाप करता. ऐसे प्रताडि़त जीवन की कभी उस ने कल्पना भी न की थी.

आखिरकार उस ने निश्चय कर लिया, यह कोई साधारण निर्णय नहीं था. एक पत्र नंदिता के नाम लिखा :

प्रिय नंदिता

पिछले 2-3 माह की घटनाओं से तुम अवगत हो. किन परिस्थितियों में मैं भ्रष्ट आचरण के मोहजाल में फंस गया, उस से तुम अपरिचित नहीं हो. अब उस के बारे में बात करना बेकार है. कभी सोचा तक न था कि जीवन में ऐसा मोड़ भी आएगा. इस कलंकित जीवन को मैं कैसे झेलूं, मेरी सोच थम गई है. इस कलुषित आत्मा के शुद्धीकरण का कोई उपाय तुम्हारे पास होता तो तुम निश्चित रूप से बतातीं. मैं साहसी कभी रहा ही नहीं और मेरा सामर्थ्य लोगों की घूरती आंखों की अग्नि को झेलने का नहीं है. इस प्रताडि़त जीवन को बचाने के लिए हर सांस का प्रयास कष्टदायी होगा. जीने की चाहत खत्म हो गई है. सुख और शांति की खोज में मैं पलायन कर रहा हूं.

बेटे का ध्यान रखना. इतिहास को मत दोहराना. उस की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना. तुम अपना जीवन फिर से नए साथी के साथ प्रारंभ कर सकती हो, मुझे खुशी होगी. साथ बिताए मधुर क्षणों को याद करते हुए हर वर्ष एक दीपक जला कर मुझे याद कर लेना.

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ढेर सारे प्यार के साथ

तुम्हारा,

नरेंद्र

सधे हाथों और शांत मन से पत्र लिफाफे में डाल कर सील किया. फिर उस पर पत्नी का नाम लिख कर पास रखी टेबल पर रख दिया. अब कुछ करने को शेष नहीं था. अलमारी से अपनी पिस्तौल निकाल कनपटी पर लगा घोड़ा दबा दिया.

एक आवाज और फिर घोर निस्तब्धता.

नंदिता जो अभी बाहर से आई थी, चौंक कर नरेंद्र के कमरे की ओर दौड़ी. वहां का वीभत्स दृश्य देख वह हतप्रभ रह गई. यह उस के जीवन की सब से बड़ी त्रासदी थी. पास जा कर देखा, नरेंद्र की मृत्यु हो चुकी थी. अपने आंसुओं पर वह अपना नियंत्रण खो बैठी. एक घना जंगल और उस से भी अधिक घना अंधकार.

आंखों में जैसे सारा ब्रह्मांड घूम गया और नंदिता को लगा कि उस का अस्तित्व उड़ते हुए परखचों से अधिक कुछ भी नहीं है. यह अपनेआप में एक आश्चर्य था कि वह अपना संतुलन बनाए रख सकी. किसी प्रकार अपने को संभाल उस ने पुलिस और अन्य कई अधिकारियों को सूचित किया. पिस्तौल की आवाज से सड़क पर चलते आदमी भी रुक गए. नंदिता के रुदन की आवाज से उन्होंने अनुमान लगाने शुरू किए और फिर लालनीली बत्तियों वाली गाडि़यों का आगमन हुआ. कई तरह की टिप्पणियां हुईं–

‘नरेंद्र साहब ने खुद को गोली मार ली.’

‘अरे क्यों, पत्नी से पटती नहीं होगी.’

‘जरूर नौकरी की कोई समस्या रही होगी.’

‘पर जान देने वाली इस में क्या बात है?’

‘भाई, कह नहीं सकते. वजह तो कोई बड़ी ही रही होगी.’

‘वह कायर था,’ पोपले मुंह से निकले एक वृद्ध के ये शब्द किसी सांप की फुफकार से लगे.

बहरहाल, पुलिस की छानबीन के बाद केस आत्महत्या का बना और उचित कार्यवाही के बाद बंद कर दिया गया.

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