Hindi Social Story: बहुत सालों से लोगों को पता ही नहीं था कि यहां कोई म्युनिसिपैलिटी भी है. अगर कोई बीमारी आती भी, तो कुछ दिनों बाद खुद ही खत्म हो जाती. धूल और गंदगी को हवा उड़ा ले जाती. पानी से लबालब नालियां खुद ही कुछ दिनों बाद खाली हो जाती थीं. म्युनिसिपैलिटी को ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही न पड़ती. लेकिन 15 अगस्त आने से पहले ही अचानक दृश्य बदलने लगा.
देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा था. देशभर में हिमालय से कन्याकुमारी तक लोगों में जोश था. म्युनिसिपल कौर्पोरेशन भी उत्साह से भर उठा. सारी सड़कों पर झाड़ू लगाई जाने लगी, नालियों का कचरा साफ होने लगा और हर महल्ले में घरघर झंडे लगाए जाने लगे.
लोग झंडे ले कर गातेबजाते धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे थे. म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन बालकनी में खड़े हो कर संतोषपूर्वक कह रहे थे, ‘इस महान अवसर पर हम ने भी काफीकुछ कर लिया.’
कमेटी के जो सदस्य उन के साथ थे उन में से एकदो ने उन की आंखों में आंसू भी देखे. उन्होंने सेना के जवानों को कंबल बेच कर बड़े पैसे बनाए थे और बाद में उन पैसों का उपयोग चेयरमैन का पद प्राप्त करने में किया था.
मैं चेयरमैन के दफ्तर अकसर आताजाता रहता था. 15 अगस्त बीत चुका था. हफ्तेभर बाद जब झंडे वगैरह उतार लिए गए तो मैं उन से मिलने गया. लेकिन उन के चेहरे पर बहुत ज्यादा खुशी दिखाई नहीं दे रही थी. इतना उदास देख मैं उन से पूछ पड़ा, “क्या बात है, चेयरमैन साहब?”
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