विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक परेशान करने वाली रिपोर्ट ने हाल ही में यह नतीजा निकाला है कि भारत दुनिया का सब से अधिक अवसादग्रस्त देश है, जहां चिंता, सिजोफ्रेनिया और बाइपोलर डिस्और्डर के सब से अधिक मामले पाए गए. 2015-16 के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएमएचएस के अनुसार, भारत के हर छठे व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए किसी न किसी तरह की मदद की जरूरत है.

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ये आंकड़े भारतीयों के मानसिक स्वास्थ्य की एक गंभीर तसवीर को दिखाते हैं, विशेषरूप से एक ऐसा देश जहां अभी भी मानसिक बीमारियों को एक वर्जित यानी अमान्य विषय माना जाता है.

हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र पर कुछ ध्यान दिया गया है. लोकप्रिय लोग जैसे कि दीपिका पादुकोण ने आगे आ कर इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा शुरू की है. चिंतनीय यह है कि महिलाओं के बीच मानसिक बीमारियों को समझने की लोगों की दिलचस्पी कम ही है.

मानसिक स्वास्थ्य पर आई डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, अवसाद विकार पुरुषों के बीच 29.3 फीसदी की तुलना में महिलाओं में न्यूरोसाइकियाट्रिक (मनोविज्ञान) विकार 41.9 फीसदी के करीब है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बुजुर्गों को होने वाली प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे अवसाद, और्गेनिक ब्रेन सिंड्रोम और डिमैंशिया महिलाओं में अधिक सामान्य हैं. इसी तरह, एकधु्रवीय यानी यूनीपोलर अवसाद, जिसे 2020 तक वैश्विक अक्षमता का दूसरा प्रमुख कारण माना जाता है, महिलाओं में दोगुना सामान्य पाया गया. दूसरी ओर, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में एंजाइटी डिस्और्डर का जोखिम 2-3 गुना अधिक है.

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