फेसबुक-व्हॉट्सएप का नशा सिगरेट-शराब से कम खतरनाक नहीं. एक बार लग जाए तो इनसान की रातों की नींद उड़ जाती है. चैटिंग के आगे उसे न तो भूख-प्यास महसूस होती है और न ही काम में मन लगता है. दूसरों को घूमता-फिरता, पार्टी करता और महंगे कपड़े खरीदता देख व्यक्तिगत जीवन से असंतोष का भाव अलग पैदा होने लगता है. ब्रिटिश लेखिका कैथरीन ऑर्मेरोड ने इसी के मद्देनजर हाल ही में जारी अपनी किताब ‘व्हाई सोशल मीडिया इज रूनिंग योर लाइफ' में सोशल मीडिया की लत से उबरने के उपाय सुझाए हैं.

बहस के डर से पीछे न हटें

सोशल मीडिया पर आमने-सामने की बातचीत नहीं होती. चैटिंग में कभी तनातनी हो भी जाए तो लोग पोस्ट को ‘लाइक' करके या उस पर अच्छे ‘कमेंट' देकर उसकी भरपाई कर लेते हैं. हालांकि रियल लाइफ में मिलने और बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ने पर मतभेद होने की संभावना बनी रहती है. कई लोग तो बहस के डर से ही ज्यादा बातचीत करने से हिचकिचाते हैं, जो गलत है. कैथरीन के अनुसार बातें रिश्तों में मिठास घोलती हैं. एक-दूसरे का नजरिया समझकर और छोटी-छोटी बातें नजरअंदाज करके लड़ाई आसानी से टाली जा सकती है. दोस्ती दुख-दर्द बांटने और तनाव दूर कर कुछ खुशनुमा पल हासिल करने का जरिया है.

‘फोन-फ्री’ जोन निर्धारित करें

बेडरूम और लिविंग रूम काम की व्यस्तता से बाहर निकलकर परिवार के साथ खुशनुमा पल बिताने का मौका देते हैं. इसलिए कैथरीन इन्हें ‘फोन-फ्री' जोन बनाने की सलाह देती हैं. वह डाइनिंग रूम में भी फोन के इस्तेमाल से बचने को कहती हैं, ताकि घरवालों के साथ खाना खाने का भरपूर लुत्फ उठाया जा सके. उनका यह भी मानना है कि फोन के इस्तेमाल का समय निर्धारित करना चाहिए. दिन के दो घंटे पार्टनर और बच्चों के साथ बिताने चाहिए.

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