संगीता शुरू से ही ऐशोआराम में पलीबढ़ी थी. उसे मायके में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. जब जो चाहती, खरीदती. अपनी मरजी के मुताबिक खर्च करती. लेकिन शादी के बाद उस के खर्च करने की आदतों पर जैसे पाबंदी लग गई.

दरअसल, उस के पति राजीव की कमाई महीने में सिर्फ 35 हजार रुपए ही थी. घर का खर्च और इकलौते बेटे की स्कूल की फीस व पढ़ाईलिखाई पर आने वाले अतिरिक्त खर्च का बोझ ही राजीव बड़ी मुश्किल से उठा पाता था. ऐसे में संगीता आएदिन फालतू के खर्च कर डालती थी. बातबात में राजीव को एहसास दिलाती कि वह अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ 35 हजार रुपए ही कमाता रह जाएगा.

संगीता की तो जैसे अब आदत हो गई थी दूसरों से राजीव की तुलना करने की, ‘‘आज शालिनी ने 5 हजार रुपए की सुंदर साड़ी खरीदी तो कभी हमारे पड़ोसी ने नया म्यूजिक सिस्टम खरीदा, पता नहीं हम कभी कुछ खरीदेंगे भी या नहीं.’’

राजीव कई बार संगीता को समझाता पर उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. संगीता वही करती जो उस का दिल करता. संगीता की फुजूलखर्च की आदत से राजीव परेशान रहता, आएदिन उन में बहस होती.

संगीता अकेली ऐसी पत्नी नहीं है बल्कि हर मिडिल क्लास में संगीता जैसी नासमझ पत्नियां मिल जाएंगी जो अपनी सीमाओं से परे जा कर खर्च करती हैं. उन की आदत ही होती है बिना सोचेसमझे शौपिंग करते रहने की, चाहे घर का बजट ही क्यों न गड़बड़ा जाए.

मैरिज काउंसलर नीशू शुक्ला कहती हैं, ‘‘यदि घर में कमाने वाला सिर्फ एक व्यक्ति हो और उस की मासिक आय सामान्य हो तो हर पत्नी का यह फर्ज होता है कि वह सोचसमझ कर ही खर्च करे. किसी को भी अपनी सीमाओं को नहीं भूलना चाहिए, फिर बात कम बजट में घर चलाने की ही क्यों न हो.

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