आजकल कच्ची उम्र में ही बच्चे जरूरत से ज्यादा मैच्योर होते जा रहे हैं. वे मनमानी करते हैं और जिद को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. अगर उन्हें कभी मातापिता ने किसी बात पर डांट दिया तो वे उसे मन पर लगा लेते हैं. ऐसे में मातापिता सोचने लगते हैं कि बच्चे बिगड़ रहे हैं.
घर में टैलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम सावधान इंडिया, सीआईडी, क्राइम पैट्रोल, गुमराह जैसी क्राइम थीम वाले धारावाहिक पूरा परिवार साथ बैठ कर देखता है. धारावाहिक में अपराध से जुड़े कई पहलुओं को बढ़ाचढ़ा कर ग्लैमरस अंदाज में दिखाया जाता है. इन सब का गहरा असर बच्चों के मासूम व कोमल मन पर पड़ता है.
महानगरों में ज्यादातर मातापिता नौकरी करते हैं. लिहाजा, बच्चे ज्यादातर घर में अकेले ही होते हैं. चूंकि मातापिता के अलावा घर में बुजुर्ग यानी दादादादी या नानानानी भी नहीं होते, जो बच्चों के मन की बात को समझें और विचारों को बांटें. लिहाजा, अकेलेपन में कई मासूम अपनी ही काल्पनिक दुनिया में खोए रहते हैं. कभीकभी तो ये बच्चे कुंठा के शिकार भी हो जाते हैं.
बच्चों के लिए समय निकालें
मातापिता बच्चों को भौतिक सुविधाएं तो दे देते हैं पर समय बिलकुल भी नहीं देते, जिस की उन्हें बहुत जरूरत होती है. और फिर इसी कारण बच्चे जानेअनजाने मातापिता से मन ही मन एक दूरी बना लेते हैं. उन से अपने मन की बात शेयर करना बंद कर देते हैं. ऐसी स्थिति में मातापिता को समझाने के तौर पर छोटी सी डांट भी उन के लिए बहुत बड़ी बात बन जाती है.
कई बार देखने को मिलता है कि मातापिता का गुस्सा मासूम बच्चों के कोमल मन में भय पैदा कर देता है. उन्हें मातापिता से केवल प्यार की ही उम्मीद होती है, जबकि मातापिता आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में अपने बच्चों को सब से आगे देखना चाहते हैं. वे भूल जाते हैं कि उन का प्यार बच्चे को आगे बढ़ने में मदद करेगा, न कि उन की डांट. बच्चा अगर परीक्षा में अच्छे अंकों से भी पास होता है तो उसे मातापिता ‘इस से ज्यादा अंक लाने चाहिए’, ‘पूरा दिन खेलते रहते हो’, ‘अब से पढ़ाई पर ध्यान दो’ वगैरह कह कर उस के कोमल मन पर प्रहार करते हैं. बच्चे तो सिर्फ शाबाशी के दो बोल की उम्मीद रखते हैं. लेकिन बदले में उन्हें मिलती है डांटफटकार.
इस डर से बच्चा मानसिक तौर पर विचारहीन हो जाता है और बाद में आत्महत्या जैसा क्रूर कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है.
गुजरात के कई शहरों में आएदिन ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं. किसी बच्चे ने रिजल्ट के डर से आत्महत्या कर ली तो किसी ने डांट की वजह से. कई मामलों में तो बच्चों के आत्महत्या करने की वजह खुद मातापिता ही नहीं समझ पाए हैं.
चिंताजनक बातें
ऐसी ही कुछ घटनाएं भावनगर और अहमदाबाद में हुईं, जिन में मातापिता बच्चों की आत्महत्या करने की वजह समझ ही नहीं पाए. भावनगर के मालणका गांव में कक्षा 7 में पढ़ने वाले 13 वर्षीय श्रयेश भरतभाई चौहान ने किसी कारण से अपने घर में ही गले में फंदा डाल कर आत्महत्या कर ली. वहीं अहमदाबाद में कक्षा 5 की छात्रा चांदनी प्रजापति (उम्र 12 साल) ने भी घर की छत के हुक में दुपट्टा डाल कर आत्महत्या कर ली.
चांदनी के घर वालों की मानें तो परीक्षा के डर की वजह से उस ने यह कदम उठाया. जबकि स्कूल से जुड़े शिक्षकों व कर्मचारियों का कहना था कि चांदनी अपनी क्लास की सब से होशियार छात्रा थी. ऐसे में परीक्षा के डर से आत्महत्या की बात गले नहीं उतरती. दोनों पक्षों की अलगअलग बातों से तय नहीं हो पाया कि आखिर चांदनी ने आत्महत्या क्यों की?
अहमदाबाद के नरोड़ा विस्तार में रहने वाली 12वीं की छात्रा खुशबू अशोकभाई पटेल ने बोर्ड की परीक्षा दी थी. कैमिस्ट्री के पेपर में 15 नंबर के प्रश्नों के उत्तर छूट जाने की वजह से घर वालों ने उसे खूब डांटा. खुशबू के मन पर इस डांट का ऐसा घातक असर पड़ा कि उस ने घर की छत से ही छलांग लगा दी.
ऐसा ही कुछ कविता के साथ भी हुआ. अहमदाबाद के अमराईवाड़ी विस्तार में रहने वाले कैलाशभाई गवाणे की 2 बेटियां करिश्मा (उम्र 19 वर्ष) और कविता (उम्र 17 वर्ष) थीं. कैलाशभाई चाहते थे कि उन की बेटी कविता परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हो. इस बात को ले कर बापबेटी में बहस हुई, जिस का अंजाम यह हुआ कि पिता की डांट से आहत कविता ने शहर के नेहरू ब्रिज से छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली.
अहमदाबाद के मेघाणीनगर निवासी संपतभाई पाटिल के घर में उन का 14 वर्षीय बेटा प्रशांत अपनी मां के साथ किसी शादी में जाना चाहता था लेकिन उस की मां उसे साथ नहीं ले गईं. जब वे शाम को घर वापस आईं तो उन्होंने प्रशांत की लाश घर के झूले से लटकती देखी.
ऐसे ही कई और मामले अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं जिन में मांबाप के गैरजिम्मेदाराना रवैए, डांट और जरूरत से ज्यादा प्रैशर के चलते बच्चे अ?ात्महत्या करने पर विवश हो जाते हैं.
ज्यादा बोझ न डालें
इन मामलों से सबक ले कर मातापिता को अपने बच्चों को, उन की मनोस्थिति को समझना चाहिए. तभी इस समस्या को सुलझाया जा सकता है. बच्चों पर पढ़ाई बोझ बनती जा रही है, ऊपर से मातापिता का अच्छे अंक लाने का प्रैशर, इस बोझ में और इजाफा कर देता है.
मनोचिकित्सक हिमांशु देसाई कहते हैं, ‘‘संयुक्त कुटुंब छूटते जा रहे हैं, मातापिता 1 या 2 बच्चे के साथ रहते हैं. ऐसे में वे अपनी इच्छाएं अपने बच्चों के द्वारा ही पूरी करना चाहते हैं. कई बार यह बच्चे की सहनशीलता की हद से बाहर की बात हो जाती है. परिणामस्वरूप, जब बच्चा मांबाप की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता तब वह डर जाता है और आत्महत्या करने का फैसला कर बैठता है.’’
बदलते दौर में बच्चों की बदलती प्रवृत्ति के मद्देनजर अब यह जरूरी हो गया है कि मातापिता बच्चों की बातों, इच्छाओं को न सिर्फ सम्मान दें बल्कि अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से उन के लिए समय भी निकालें ताकि कोई और मासूम मौत को गले न लगाए.
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