लोगों के शहरों में बसने से रिश्तेदारी सिमटने लगी है हालांकि इस की जगह दोस्तों ने ले ली है. जरूरी है कि दोस्तों में ही रिश्तेदारी तलाशी जाए. हर संभव मदद का लेनदेन करते रहें. परिवार नियोजन यानी फैमिली प्लानिंग का मतलब यह होता है कि आप अपने परिवार की प्लानिंग आर्थिक संसाधनों के हिसाब से करें जिस से परिवार के सदस्यों का सही पालनपोषण, शिक्षा और विकास हो सके. हमारे देश में फैमिली प्लानिंग में परिवार के आर्थिक पक्ष को तो रखा गया पर सामाजिक पक्ष को छोड़ दिया गया. इस का धीरेधीरे असर यह हो रहा है कि आने वाले दिनों में कुछ करीबी रिश्ते खत्म होने की कगार पर हैं.

जैसे, अब परिवार में एक लड़का या एक लड़की ही प्लान की जा रही है. जिस परिवार में केवल लड़की ही है उस परिवार में भाई नहीं होगा तो भाई और मामा का रिश्ता खत्म हो जाएगा. ऐसे ही अगर परिवार में केवल लड़का हुआ तो बहन और बूआ का रिश्ता आने वाले दिनों में बच्चे केवल किस्सेकहानी में सुनेंगे. ऐेसे ही अगर फैमिली प्लानिंग में केवल एक लड़का व एक लड़की रही तो दूसरा भाई नहीं होगा तो भाई और चाचा का रिश्ता नहीं होगा. इन रिश्तों से जुड़े तमाम रिश्ते खत्म हो जाएंगे जैसे मामा नहीं तो मामी और ममेरे भाई नहीं होंगे. चाचा नहीं तो चाची और चचेरे भाई नहीं होंगे. बूआ नहीं तो फूफा और फुफेरे भाईबहन नहीं होंगे. 2 बहनें नहीं होंगी तो मौसी का रिश्ता नहीं होगा.

मौसा और मौसेरे भाई नहीं होंगे. भारतीय समाज और परिवेश में हर रिश्ते का अलग महत्त्व है. उन के लिए अलग संबोधन होता है. विदेशों में इन रिश्तों में कौमन शब्द का प्रयोग होता है. चचेरे, फुफेरे और ममेरे भाईबहनों के लिए कजिन शब्द का प्रयोग होता है. ऐसे ही हर रिश्ते के साथ होता है. फैमिली प्लानिंग का एक प्रभाव यह भी समाज पर पड़ने वाला है. भारत में फैमिली प्लानिंग की जब शुरुआत हुई थी तो एक नारा दिया गया था, ‘बच्चे तीन ही अच्छे,’ लेकिन सरकार इस बात से सहमत नहीं थी. ऐसे में दूसरा नारा दिया गया ‘हम दो हमारे दो’. इस के जरिए समाज को यह सम?ाने की कोशिश की गई थी कि फैमिली प्लानिंग इस तरह से हो कि हमारा एक लड़का और एक लड़की हो. कुछ सालों बाद लोग जागरूक हुए और अब ‘एक ही बेटा या बेटी’ की प्लानिंग होने लगी है.

एक वर्ग ऐसा भी है जो ‘नो किड्स, डबल इनकम’ की धारणा पर चल रहा है. ऐसे लोग शादी तो करना चाहते हैं पर बच्चे नहीं पैदा करना चाहते. इन से भी दो कदम आगे कुछ ऐसे लोग भी हैं जो शादी ही नहीं करना चाहते. राहुल गांधी, सलमान खान जैसे बहुत सारे लोग ऐसे ही हैं. इस का समाज पर असर पड़ रहा है. फैमिली प्लानिंग के चक्कर में भारत ही नहीं, दूसरे तमाम देश भी आ गए हैं जहां अब जनसंख्या तेजी से घट रही है. आने वाले 50 सालों में वे देश मुश्किल में आने वाले हैं. इस की चिंता वहां की सरकारें करने भी लगी हैं. वे अब ज्यादा बच्चे पैदा करने की योजना पर काम कर रही हैं. भारत में भी 50 सालों के बाद ऐसे हालात दिखने लगेंगे. खत्म होते रिश्तों के साथ तालमेल कैसे बैठाएं यह तो सच है कि फैमिली प्लानिंग के चक्कर में कुछ रिश्ते खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं.

संयुक्त परिवार खत्म हो गए हैं. परिवार के घटने से सहयोग करने वालों की संख्या घट गई है. इस का एक ही विकल्प सामने है कि अब हम समाज में रिश्ते बनाएं. दोस्तों में नजदीकियां तलाशें. वैसे भी जब हम अलगअलग शहरों में रहने लगे हैं तो यहां हमारे घर के लोगों की जगह हमारे पड़ोसी हमारे सब से बड़े मददगार होने लगे हैं. एक जगह पर रहतेरहते हमारे तमाम दोस्त बन जाते हैं. यही हमारी जरूरत पर सब से पहले काम आते हैं. यह कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह समाज में रहता है. हमें समाज में रहना, आपसी दूरियां, भेदभाव और मनमुटाव खत्म कर के भरोसा और विश्वास पैदा करना होगा. करीबी रिश्तों में एक जिम्मेदारी का भाव होता है.

यहां मदद को जिम्मेदारी सम?ा जाता है. दोस्त को मदद में जिम्मेदारी की जगह पर सहयोग सम?ा जाता है. इस का अर्थ यह होता है कि जैसी मदद आप अपने दोस्त की करेंगे वैसी ही मदद की उम्मीद आप उस से कर सकते हैं. दोस्ती में इस को सम?ों. आप को अपने दोस्त की मदद उस की जरूरत पड़ने पर करनी होगी. अगर आप उस की मदद नहीं करेंगे तो उस से मदद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. रिश्तों में अपवाद को छोड़ दें तो लोकलाज और सामाजिक दबाव ही सही, रिश्तेदार मुसीबत में साथ खड़े जरूर होते हैं. बदलते समाज में दोस्त एक नई जरूरत है. इस बात को सम?ाने की जरूरत है. इस के अनुकूल ही व्यवहार करने की जरूरत है. दोस्तों के बीच संबंधों को ले कर बेहद सतर्क रहने की भी जरूरत होती है. उन के सुख और दुख में शामिल रहें. जब हम दोस्तों की बात करते हैं तो यह ध्यान रखें कि फेसबुक और सोशल मीडिया के जो फ्रैंड्स होते हैं, हम उन को दोस्त न मान लें.

कई लोग ऐसी गलती करते हैं और फिर डिप्रैशन में चले जाते हैं यह सोच कर कि उन के 5 हजार दोस्तों में से जरूरत पड़ने पर 5 दोस्त भी मदद करने नहीं आए. द्य रिश्तेदारों जैसे बनाएं दोस्त द्य सोशल मीडिया जैसे नहीं, रिश्तेदारों जैसे दोस्त बनाएं. द्य आपस में जरूरी तालमेल रखिए, एकदूसरे की मदद कीजिए. द्य केवल मदद ही नहीं, उन की खुशी के पलों में भी शामिल रहिए. द्य आर्थिक मदद लेने और देने में खयाल रखें, रिश्ते यहीं टूटते हैं. द्य कई बार दोस्ती में लोग मदद मांगने में संकोच करते हैं. ऐसे में बिना मांगे मदद देने का प्रयास करें. द्य अगर कोई बात ऐसी है जो आपस में दरार डालने का काम कर रही है तो उस को आपसी बातचीत से हल कर लें. द्य दोस्ती रिश्तेदारी से भी नाजुक होती है, इस बात का खयाल रखें. इस की केयर उसी तरह से करें. द्य रिश्तेदारी टूट कर जुड़ भी जाती है, रिश्तेदार आपसी विवाद भूल भी जाते हैं. लेकिन दोस्ती में पड़ी दरार को मिटाना कठिन होता है.

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