20 वर्षीय प्रभात बहुत खुश था. दीवाली का त्योहार उसे काफी अच्छा लगता था. प्रभात के कालेज में समझाया जा रहा था कि दीवाली पर पटाखे नहीं चलाने चाहिए. प्रभात को इन बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था. अपने घर वालों से जिद कर के प्रभात ने पटाखे और फुलझडि़यां खरीद ली थीं. उस ने दीवाली पर अपने रिश्तेदारों को भी बुलाया था.
सब ने तय किया कि आज महल्ले में खूब धमाल मचाएंगे. उस के कुछ साथी तो तेज आवाज वाले बमपटाखे भी लाने वाले थे. शाम होते ही महल्ले के सभी लड़के एक जगह आ गए. प्रभात के घर की छत काफी बड़ी थी, इसलिए सभी वहीं पर आ गए. प्रभात और उस के साथियों का धमाल शुरू हो गया. पटाखों का धुआं चारों ओर फैलने लगा था.
अचानक प्रभात को सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उसे खांसी भी आ गई. वह घबरा कर नीचे आया. घरपरिवार के लोगों ने मामले को हलके में लिया. प्रभात की तकलीफ बढ़ने लगी. कुछ देर में ही वह बेहोश हो गया.
घर के लोग प्रभात को ले कर अस्पताल की तरफ भागे. वहां डाक्टरों ने बताया कि प्रभात को दमे की बीमारी थी जो दीवाली के पटाखों के धुएं से और बढ़ गई है, जिस से प्रभात की तबीयत खराब होने लगी थी. डाक्टरों के काफी इलाज के बाद ही वह ठीक हो सका. डाक्टरों ने प्रभात और उस के परिवार के लोगों को हिदायत देते हुए कहा कि कभी इस को धुएं में मत भेजिएगा. इस से दमे की बीमारी दोबारा उभर सकती है. अब प्रभात कभी पटाखे नहीं चलाता और दूसरों को भी चलाने से मना करता है.
खुशी कम, धुआं ज्यादा
दीवाली खुशियों का त्योहार है. इस त्योहार की सब से बड़ी बुराई यह है कि खुशियां मनाने के लिए लोग पटाखों और फुलझडि़यों का सहारा लेते हैं जिन से जहरीला धुआं फैलता है और वह वातावरण को विषैला बना देता है. यह धुआं अस्थमा के मरीजों को नुकसान पहुंचाता है. इन में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी उम्र के लोग होते हैं. सांस की बीमारी के अलावा पटाखों की तेज आवाज कानों को भी नुकसान पहुंचाती है. इस की आवाज से आदमी ही नहीं, जानवर भी बेचैन हो जाते हैं. इस को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है. ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए ही अस्पतालों और स्कूलों में साइलैंस जोन बनाए जाते हैं, वहां पर तेज आवाज में हौर्न बजाने की मनाही होती है.
देखा जाता है कि जब लोग तेज आवाज वाले पटाखे, बम और दूसरी चीजें चलाते हैं तो अपना मुंह दूसरी ओर कर के कान पर हाथ रख लेते हैं यानी यह आवाज उन को भी अच्छी नहीं लगती है. सोचने की बात यह है कि जब हमारे कानों को कोई चीज अच्छी नहीं लगती तो वह दूसरों को कैसे अच्छी लगेगी? इसलिए तेज आवाज के पटाखे नहीं चलाने चाहिए.
जोखिमभरा पटाखा कारोबार
पटाखे केवल चलाने वालों को ही नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि बनाने वालों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. पटाखे बनाने में बारूद का इस्तेमाल होता है जो बनाने वाले के हाथों को नुकसान पहुंचाता है. इस के अलावा जब यह बारूद नाक के रास्ते फेंफड़ों तक पहुंचता है तो यह व्यक्ति को गंभीर बीमारी का शिकार बना देता है.
दीवाली के दौरान पटाखों की दुकानों में आग लगने और विस्फोट होने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. कई बार तो इस से बाजारों में आग भी लग जाती है. इसलिए सरकार ने पटाखों की दुकानें खुली जगह पर लगाने का आदेश दिया है. इस के बाद भी पटाखा बेचने वाले गलीमहल्ले में दुकानें लगाते हैं, जिस से दुर्घटनाएं होती हैं. यदि पटाखों का यह कारोबार बंद हो जाए तो तमाम तरह की परेशानियां अपनेआप खत्म हो जाएंगी. पटाखे खुशी कम और दुख ज्यादा देते हैं.
रोशनी खड़ी करे परेशानी
दीवाली में खुशियां मनाने का दूसरा तरीका बिजली की रोशनी का है. इस के लिए लोग बड़ी संख्या में बिजली की झालरें, बल्ब और दूसरे सजावटी सामानों का इस्तेमाल करते हैं. इस में सब से बड़ी बात यह है कि लोग एकदूसरे की देखादेखी में अपने घर पर ज्यादा से ज्यादा रोशनी करना चाहते हैं. इस से बिजली का खर्च बढ़ता है. इस का परिणाम यह होता है कि बिजली सप्लाई में परेशानी आती है. अस्पतालों, औफिसों, रेलवे स्टेशनों और बाजारों को समुचित मात्रा में बिजली नहीं मिल पाती. बिजली का सजावटी सामान लगाने के लिए लोग बिजली चोरी करते हैं. इस वजह से जगहजगह पर फ्यूज उड़ जाते हैं, जिस से बिजली जाने की परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है.
दीवाली रोशनी का त्योहार माना जाता है. लोग बाजारों में देररात तक खरीदारी करते हैं. जिस से बिजली की व्यवस्था खराब हो जाती है. इसलिए बिजली की फुजूलखर्ची रोकने के लिए कम बिजली जलानी चाहिए. रोशनी करने के लिए दीयों का प्रयोग करें, यह वातावरण के लिए ठीक रहता है.
रंगोली से दीवाली में घर की सजावट की जाती है, लेकिन इसे बनाने के लिए हानिकारक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि रंगोली बनाने के लिए प्राकृतिक चीजों को ही आजमाएं. इस के लिए फूल और पत्ती का प्रयोग कर सकते हैं. चावल रंगने के लिए हलदी का इस्तेमाल करें. पत्तियों को बारीक काट लें, इन का इस्तेमाल रंगोली को आकर्षक बनाने के लिए कर सकते हैं. इसी तरह प्राकृतिक रंग बनाने में अलगअलग रंगों के फूलों के भी रंग निकाल सकते हैं.
ईकोफ्रैंडली दीवाली मनाने के लिए कृत्रिम रंगों का बहिष्कार करें. लखनऊ में रंगोली की बड़ी कलाकर ज्योति रतन कहती हैं कि प्राकृतिक रंगों से आकर्षक रंगोली बनाई जा सकती है. रंगोली में डिजाइन और रंगों का प्रयोग महत्त्वपूर्ण होता है. आज बाजार में तरहतरह के फूल आने लगे हैं जिन से रंगबिंरगी रंगोली बनाई जा सकती है.