निहारिका एक मीडिया संस्थान में कार्यरत है. काफी लंबे समय से उस को पैरों में दर्द की समस्या बनी हुई थी. मेट्रो की सीढ़ियां चढ़ते वक़्त या कार्यालय की सीढ़ियों पर वह रुकरुक कर चढ़ती थी. पैरों के जोड़ों में दर्द और कभीकभी की सूजन ने उसकी परेशानी बढ़ा रखी थी. अभी उम्र ही क्या थी, 35 की ही तो थी, लेकिन लगता था जैसे साठ साल की बुढ़िया की तरह चल रही है. कभीकभी बड़ी शर्म आती जब मेट्रो की सीढ़ियों पर बूढ़े लोग उससे ज़्यादा तेज़ी से चढते हुए प्लेटफार्म पर पहले पहुंच जाते थे. औफिस में निहारिका अपने पैरों को स्टूल पर रख कर बैठती थी. वरना कुरसी से लटकायएलटकायए सूजन इतनी बढ़ जाती थी कि शाम को छुट्टी के वक़्त अपनी चप्पल में पैर डालना मुश्किल हो जाता था. उसने जूते और बेलीज़ पहनना तो लगभग बंद ही कर दिया था. हील्स भी नहीं पहनती थी. बस, फ्लैट खुली चप्पलें ही पहन कर चली आती थी. रात को गर्म पानी में सेंधा नमक डाल कर पैरों की सिंकाई भी करती थी, लेकिन सूजन जाने का नाम ही नहीं ले रही थी.

निहारिका को समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसकी एड़ियों और घुटनो में दर्द और सूजन की क्या वजह है. यूरिन टेस्ट भी करवा लिया था. उस में भी सब नौर्मल था. आखिर एक दिन ब्लडप्रेशर चेक करवाया तो 170/110 निकला. 'आपका बीपी तो बहुत ज़्यादा है ! कब से रह रहा है इतना ज़्यादा बीपी ?' डाक्टर ने हैरान हो कर पूछा तो निहारिका इतना ही कह पाई कि पता नहीं डॉक्टर साहब, कभी चेक ही नहीं करवाया.

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