ब्रिटिश मैडिकल जर्नल ‘लासेंट’ में छपे इंडियन काउंसलिंग औफ मैडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एक शोध के मुताबिक, भारत के कुछ राज्यों में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जिन राज्यों में मामले बढ़ रहे हैं उन राज्यों के लिए यह खतरे की घंटी है.

रिपोर्ट में बताया गया कि देशभर में प्री-डायबिटीज के मामले 15 फीसदी यानी 13.6 करोड़ के आसपास हैं. वहीं, डायबिटीज के मामले लगभग 11.4 करोड़ हैं. प्री-डायबिटिक का मतलब, आने वाले सालों तक इन लोगों के डायबिटिक होने की संभावना है. इस में गोवा, पुद्दूचेरी, केरल, चंड़ीगढ़ व दिल्ली टौप पर हैं. वहीं यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश विस्फोटक स्थिति में हैं.

इसी रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में हाइपरटैंशन और कोलैस्ट्रौल बीमारी से लगभग 35 फीसदी से अधिक लोग ग्रस्त हैं. जबकि, मोटापे से लगभग 26.6 फीसदी लोग ग्रस्त हैं.

इस अध्ययन की प्रमुख लेखक डाक्टर आर एम अंजना के मुताबिक, "जब प्री-डायबिटीज के प्रसार की बात आती है, तो लगभग ग्रामीण और शहरी विभाजन नहीं दिखाई देता है. प्री-डायबिटीज का स्तर उन राज्यों में अधिक पाया गया है जहां डायबिटीज का मौजूदा प्रसार कम था. यह एक टिकटिक करने वाले टाइम-बम जैसा है."

दरअसल, डायबिटीज के प्रकार टाइप-1 और टाइप-2 हैं. टाइप-1 जैनेटिक होता है. यह बच्चों और युवाओं में देखने को मिलता है लेकिन मामले कम होते हैं. टाइप-2 डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ा है और दुनियाभर में इस का असर तेजी से हो रहा है.

प्री-डायबिटिक की बात की जाए, तो यह एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है. इस में शुगर का स्तर सामान्य से अधिक होता है लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि उसे टाइप-2 डायबिटीज की श्रेणी में रखा जा सके.

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