डा. मधुकर एस भट्ट 

वर्षों बाद अचानक उसे अपने दवाखाने में एक रोगी के रूप में देख कर न तो मैं उसे पहचान पाया और न ही वह मुझे. लेकिन रोग के बारे में सुनने और जांच के दौरान मैं ने उसे पहचान लिया. चिकोटी काटते हुए पूछा, ‘‘क्यों रे, रहीम, पहचाना नहीं? और तुम्हारा मोटापा कहां चला गया?’’ तब तक उस ने भी मुझे पहचान लिया था और चेहरे पर फीकी मुसकराहट लाते हुए बोल पड़ा, ‘‘मेरा मोटापा तुम्हारे ऊपर चढ़ गया, बैलेंस बराबर रखना है न.’’ फिर तो हम दोनों डाक्टर और रोगी के रिश्ते को भूल कर एकदूसरे से लिपट गए और पुराने दिनों की याद में खो गए.

हम दोनों 12वीं कक्षा तक साथ पढ़े थे. अपने भारीभरकम शरीर और मजाकिया स्वभाव के कारण कक्षा में वह बहुत लोकप्रिय था. हम दोनों में गहरी दोस्ती थी. मैं दुबलापतला था और मुझे उस मोटे के साथ देख कर अकसर सहपाठी कहा करते थे कि ये दोनों मिल कर धरती का बोझ बैलेंस कर रहे हैं. फिर मैं मैडिकल में चला आया और वह एग्रीकल्चर में. कुछ दिनों तक संपर्क बना रहा, फिर अपनेअपने पेशे में हम लोग उलझ कर रह गए.

स्कूली दिनों में बहुत आलसी था वह. खेलकूद में उसे कोई रुचि नहीं रहती थी. लेकिन हां, कार्यक्रमों में मिठाई बनवाने की जिम्मेदारी लेने में उसे बहुत आनंद आता था. उस का मानना था कि वार्षिक कार्यक्रम में खेलकूद के अलावा मिठाई खाने की भी एक प्रतियोगिता होनी चाहिए.

उस की मैडिकल जांच के दौरान मुझे पता चला कि डायबिटीज का रोग उसे विरासत में पिताजी से मिला था. उस ने माना कि दवा और खानेपीने के परहेज में लापरवाही के कारण डायबिटीज नियंत्रण में न आते देख, डाक्टरों ने उसे इंसुलिन लेने की सलाह दी, तो वह भाग खड़ा हुआ और लोगों के बहकावे में आ कर तरहतरह की अवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के प्रयोग में उलझ गया. फलस्वरूप, उस का रोग बहुत बढ़ गया और मधुमेह से जुड़ी अन्य जटिलताओं के लक्षण उत्पन्न होने लगे. तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, और फिर सही चिकित्सा से स्थिति नियंत्रण में चल रही थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...