दिल्ली की 11 प्रतिशत जनसंख्या दमे से पीडि़त है. इस की वजह तेजी से बढ़ता हवा प्रदूषण और लोगों में बढ़ती धूम्रपान की आदत है. दमा अपने आप में चिंता का विषय है, उस से भी ज्यादा चिंता का विषय है दमा, हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का संबंध. एक जैसे लक्षणों की वजह से बहुत से ऐसे मामले सामने आते हैं जिन में कंजस्टिव हार्ट फेल्योर को दमा का अटैक समझ लिया जाता है. दोनों के इलाज की अलगअलग पद्धति होने और जांच में देरी होने से गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं और वह जानलेवा भी साबित हो सकता है.

दमा के इलाज के लिए आमतौर पर इनहेलर का इस्तेमाल किया जाता है. अगर हार्ट फेलियर होने पर इनहेलर दे दिया जाए तो गंभीर अरिहद्मिया होने से मरीज की जल्दी मौत हो सकती है. दमा और कंजस्टिव हार्ट फेल्योर के लक्षण एक जैसे होते हैं, जिन में सांस टूटना और खांसी है. यह जागरूकता फैलाना जरूरी है कि अपनेआप दवा देने से पहले और खुद ही अपनी बीमारी का पता लगाने से पहले डाक्टर से सलाह लेना जरूरी है. सही समय पर डाक्टरी सलाह लेने से जानलेवा हालात को रोका जा सकता है. कुछ खून जांच की पद्धतियां हैं जिन से कार्डिएक ओरिजिन और प्ल्यूमिनरी ओरिजिन का फर्क पता चलता है. इन में से एक टैस्ट है एमटी पीआरओबीएनपी ऐस्टीमेशन, जिसे स्क्रीनिंग पौइंट औफ केयर टैस्ट कहा जाता है. ऐसे टैस्ट से कई बार अस्पताल में गैरजरूरी भरती होने की परेशानी से बच सकते हैं.

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आमतौर पर लोग यह मान कर चलते हैं कि दमा और हार्ट अटैक में कोई भी समानता नहीं है, एक सांस प्रणाली को प्रभावित करता है तो दूसरा दिल के नाड़ीतंत्र को. जबकि तथ्य यह है कि दोनों में आपसी संबंध हैं, जो मरीज दमा से पीडि़त है. बिना दमा वालों के मुकाबले उसे हार्ट अटैक होने की 70 प्रतिशत संभावना ज्यादा होती है. इस के कई कारण हो सकते हैं जिन में तीव्र जलन और सूजन शामिल होती है. कुछ किस्म की जलन शरीर के लिए फायदेमंद होती है लेकिन पुरानी जलन जो नाक की एलर्जी, दमा, रिह्यूमेटौ आर्थ्राइटिस, एथीरोस्कलेरेसिसि की वजह से होती है, स्थायी नुकसान कर सकती है.

दमे के इलाज के लिए प्रयोग होने वाली कुछ दवाएं दमे के मरीजों में दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ा देती हैं. उदाहरण के लिए बीटा एमोनिस्टस, जो मांसपेशियों को आराम देने में मदद करती है, का प्रयोग दमा के मरीजों को तुरंत आराम देने के लिए प्रयोग की जाती है. एडीनालीन डेरीवेटिव्ज, औल बीटा एगोनिस्टस दिल पर नकारात्मक असर डालने के लिए जानी जाती है. यह खून में पोटैशियम के स्तर को कम करने के लिए भी जिम्मेदार होती है. यह दिल की रफ्तार में गड़बड़ी पैदा करती है. दमे को नियंत्रित करने में प्रयोग होने वाली कोर्टिकोस्टीरौयड्स को भी रक्त धमनियों में फड़फड़ाहट की वजह समझा जाता है. यह हर डाक्टर की जिम्मेदारी है कि वह दमा नियंत्रण के लिए प्रयोग होने वाली दवाओं के नकारात्मक असर के बारे में मरीजों को जागरूक करें. इसलिए दवाओं का ज्यादा प्रयोग और अपनेआप दवा लेने से परहेज करना चाहिए.

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यह जरूरी है कि दमे को नियंत्रित रखा जाए ताकि हालत बिगड़ कर दिल की समस्या बनने तक न पहुंच सके. दमे का उचित इलाज करने के लिए नियमित तौर पर लक्षणों का ध्यान रखना और इस बात का खयाल रखना चाहिए कि फेफड़े कितने अच्छे ढंग से काम कर रहे हैं. इन बातों का ध्यान रख कर दमे के इलाज को बेहतर तरह से योजनाबद्ध किया जा सकता है. दमे को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभा कर दमे के इलाज को लाभदायक बनाया जा सकता है और दमे के अटैक को रोका जा सकता है, लंबे समय तक दमे को नियंत्रित किया जा सकता है और इस तरह लंबे समय में होने वाली समस्याओं को रोक सकते हैं. सरकार को चाहिए कि वह नागरिकों को साफ और धूल रहित पर्यावरण प्रदान करे. उसे पर्यावरण प्रदूषण को काबू करने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए, उद्योगों और वाहनों के लिए नियम सख्त बनाने चाहिए, हवा की गुणवत्ता मापने के लिए मौनिटरिंग स्टेशनों के नैटवर्क को बेहतर बनाना चाहिए और लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए. यह भी देखा गया है कि अनियंत्रित दमा दिल पर दबाव बढ़ा देता है, जिस वजह से दिल का दायां हिस्सा काम करना बंद कर देता है. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि इलाज कर रहे डाक्टर दमे के मरीजों में दिल की समस्याओं के खतरे को टालने के लिए हर संभव उपाय करें. दमे और दिल के रोगी के आपसी संबंध के बारे में लोगों को जागरूक कर के उन्हें चेतन रखा जा सकता है. इस तरह उन्हें समय पर आवश्यक कदम उठाने में मदद मिल सकती है.

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