कमाई का दमदार जरीया खेतीबागबानी की जमीन बढ़ती जनसंख्या के साथसाथ लगातार घट रही है, ऐसे में लंबेचौड़े इलाके में खुलेआम बाग लगाना घाटे का सौदा है. हालात से निबटने के लिए सघन बागबानी अपनाने में ही बागबानों व देश की भलाई है फल इनसानों के लिए सभी जरूरी पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं. वर्तमान में फलों की पैदावार में देश का दूसरा स्थान है. आजादी के बाद देश का फल उत्पादन 6 गुने से भी अधिक बढ़ा, मगर देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए इसे और बढ़ाने की जरूरत है. इस समय देश में फलों के पेड़ों को लगाने की जो परंपरा है,

वह ज्यादा जगह लेने के साथसाथ ज्यादा समय भी ले रही है. इन समस्याओं से नजात पाने के लिए वर्तमान में हाईडैंसिटी प्लांटिंग (एचडीपी) यानी सघन बागबानी एक दमदार जरीया साबित हुई है. इस से प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन और लाभ लिया जा सकता है. क्या है सघन बागबानी यह फलों के पेड़ लगाने की नई तरकीब है, जिस का मतलब है प्रति इकाई क्षेत्र में अधिकतम पैदावार लेने के लिए कम अंतर पर फलों के पेड़ों को लगाना. इस विधि में जमीन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए पौधों को उन के क्रांतिक अंतर पर रोपा जाता है. बहुत से देशों में आम, सेब, आड़ू व संतरा वगैरह फलों में इस विधि के जरीए सामान्य विधि के मुकाबले 5 से 10 गुना ज्यादा उपज हासिल की जा रही है.

खास बात यह है कि भारत में बागबानी क्षेत्र को बढ़ाने के साथसाथ उस के उत्पादन में इजाफा करने के लिए वर्ष 2005-2006 से चलाए जा रहे राष्ट्रीय बागबानी मिशन के तहत सघन बागबानी को पूरा बढ़ावा व सहयोग दिया जा रहा है. भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल प्राय: आम, अमरूद, नीबूवर्गीय फलों, सेब, केला, पपीता, अनार, नाशपाती, अनानास वगैरह में किया जा रहा है. उत्तर भारत के राज्यों में आम, अमरूद और नीबूवर्गीय फलों में सघन बागबानी बहुत ही सफल साबित हुई है. सघन बागबानी में ध्यान रखने वाली बातें जल्दी फल व अधिक उपज देने वाली प्रजातियां : फलों की अधिक बढ़ने वाली जातियों के मुकाबले कम बढ़ने वाली जातियां सघन रोपण के लिए ज्यादा अच्छी होती हैं. जैसे कि आम की आम्रपाली, अमरूद की लखनऊ 49 (सरदार), सेब की सुपर गोल्डन प्रजातियां. इसी प्रकार जल्दी फल व अधिक उपज देने वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए. छोटे मूलवृंत वाले पौधे?: नाटे बहुभू्रणीय मूलवृंत छोटे आकार के पौधे तैयार करने के लिए ज्यादा अच्छे होते हैं.

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