गन्ना देश की एक खास नकदी फसल है. एक अनुमान के मुताबिक इस की खेती हर साल लगभग 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है. देश के विभिन्न भागों में इस की 4 बार बोआई की जाती है. यह एक लंबी अवधि की फसल है, जिसे तैयार होने में कम से कम 1 साल का समय लग जाता है. इस लिहाज से केवल गन्ने के सहारे रहने वाले किसानों को एक ओर जहां अनेक रोजमर्रा की जरूरत वाली फसलों से वंचित होना पड़ता है, तो वहीं दूसरी ओर कई बार आपदा या कोई अन्य कारण होने से भारी नुकसान उठाना पड़ जाता है. किसी खेत में कई बार एक ही फसल लगातार उगाने से खेत की मिट्टी की उर्वरता व उत्पादकता की कूवत कम होने लगती है.

ऐसे में गन्ने के साथ अंत:फसल लेना एक समझदारी भरा फैसला साबित होगा, क्योंकि इस से जहां एक ओर प्राकृतिक आपदाओं की मार से दूसरी फसल से कुछ न कुछ जरूर हासिल किया जा सकता है, तो वहीं दूसरी ओर एकसाथ एक ही खेत में अलगअलग फसलें को उगाने से एक फसल के हानिकारक असर, दूसरी फसलों द्वारा खत्म हो जाते हैं. इस प्रकार मिट्टी की उर्वरता व उत्पादकता ठीक रहती है. क्या है अंत:फसल : इस बारे में राजा दिनेश सिंह कृषि विज्ञान केंद्र प्रतापगढ़ के विषय वस्तु विशेषज्ञ (प्रसार) डा. जेबी सिंह कहते हैं, ‘जब 2 या 2 से अधिक फसलों को समान अनुपात में उगाया जाता है, तो इसे अंत:फसल कहते हैं या अलगअलग फसलों को एक ही खेत में, एक ही साथ कतारों में उगाना ही अंत:फसल कहलाता है. ‘गन्ने की बोआई के बाद उस की बढ़वार पहले 4-5 महीने तक काफी धीरेधीरे होती है. ऐसे में लाइनों के बीच खाली जगहों पर अंत:फसल उगाने के लिए पूरा मौका होता है. शरदकालीन गन्ने के साथ मटर, मसूर, आलू, गोभी, शलजम, मूली, प्याज, धनिया, गेहूं, राई व सरसों वगैरह की बोआई की जा सकती है.’

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