हरी खाद की खेती में बहुत ज्यादा अहमियत है. इस से उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही यह जमीन के नुकसान को भी रोकती है. यह खेत को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैगनीज, लोहा और मोलिब्डेनम वगैरह तत्त्व भी मुहैया कराती है. यह खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ा कर उस की भौतिक दशा में सुधार करती है. हरी खाद को अच्छी उत्पादक फसलों की तरह हर प्रकार की भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस से भूमि की सेहत ठीक बनी रह सकेगी. हरी खाद मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए उम्दा और सस्ती जीवांश खाद है. हरी खाद का अर्थ उन पत्तीदार फसलों से है, जिन की बढ़वार जल्दी व ज्यादा होती है. ऐसी फसलों को फलफल आने से पहले जोत कर मिट्टी में दबा दिया जाता है. यह सूक्ष्म जीवों द्वारा विच्छेदित हो कर पौधों के पोषक तत्त्वों में वृद्धि करती है. ऐसी फसलों का इस्तेमाल में आना ही हरी खाद देना कहलाता है.
हरी खाद देने की विधियां
पहली विधि : इस विधि में हरी खाद जिस खेत में देनी होती है, उसी खेत में हरी खाद की फसल पैदा की जाती है और उसी में सड़ाई जाती है. इस तरह की फसलें अकेली या किसी दूसरी मुख्य फसल के साथ मिश्रित रूप में बोई जाती हैं. जिन क्षेत्रों में बारिश अधिक होती है, वहां इस विधि को अपनाया जाता है.
दूसरी विधि : इस विधि में किसी अन्य खेत में उगाई गई हरी खाद की फसल को काट कर उस खेत में फैलाते हैं, जिस में हरी खाद देनी होती है. फैलाने के बाद हरी खाद वाली फसल को मिट्टी में दबा दिया जाता है. ऐसा खास हालात में किया जाता है. जब सघन कृषि प्रणाली के कारण हरी खाद वाली फसलों को उगा कर उन्हें पलटने का समय कम होता है तब और न्यूनतम वर्षा वाले क्षेत्रों में हरी खाद इसी विधि से दी जाती है.