राजस्थान सूबे के जोधपुर जिले के पिचियाक गांव के 87 साला प्रगतिशील किसान जीताराम प्रजापत के पास 19 बीघे जमीन?है. वैसे तो वे सभी फसलों की बोआई करते?हैं, पर सब्जियों की खेती ज्यादा करते हैं. जीताराम बताते?हैं कि जैविक बैगन की खेती से ज्यादा कमाई होती?है, इसीलिए वे हर साल इस की खेती ही ज्यादा करते हैं. जीताराम को खेती की पुरानी जानकारी है. वे?ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं?हैं, पर खेती में हमेशा नवाचार करते रहे हैं. वे पिछले 60 सालों से खेती के काम में लगे हुए हैं. जीताराम बताते हैं कि वे बैगन की बोआई जुलाई महीने में करते?हैं. वे 20 ग्राम बीज प्रति बीघे की दर से बोते?हैं. वे जोधपुर से उन्नत किस्म के बीज खरीद कर लाते हैं. उन्हें 10 ग्राम बीज 120 रुपए में मिलते?हैं.

वे सब से पहले नर्सरी लगाते हैं. वे खेत का चुनाव इस प्रकार करते हैं कि नर्सरी की जमीन कुछ उठी हुई हो, जहां पानी जमा नहीं होता हो. वे इस बात का भी खयाल रखते हैं कि चुने गए खेत में मिर्ची, टमाटर व बैगन की फसल जल्दी न ली गई हो. वे खेत की जुताई मईजून में करते हैं, ताकि सूर्य की गरमी से सूत्रकृमि व अन्य कीट और रोगों के बीजाणु खत्म हो जाएं. करीब 4 से 5 हफ्ते की नर्सरी होते ही वे पौधों की खेत में रोपाई कर देते हैं. इस से पहले वे खेत में गोबर की देशी खाद डालते हैं. वे ज्यादातर मींगनी की खाद 1 ट्रक प्रति बीघे के हिसाब से डालते हैं, जिस से बैगन की बढ़वार अच्छी होती है और उस में फलफूल खूब लगते है. मींगनी की 1 ट्रक खाद करीब 18 से 20 हजार रुपए में आती है. बैगन की रोपाई के 1 महीने बाद फलों की तोड़ाई शुरू हो जाती है. इस दौरान जीताराम देखते रहते हैं कि कोई पौधा रोगी तो नहीं है. वे रोगी पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देते हैं.जीताराम अपने खेत में कभी भी रासायनिक खाद (डीएपी व यूरिया) का इस्तेमाल नहीं करते है . उन का मानना है कि डीएपी व यूरिया के इस्तेमाल से जमीन बंधने लगती है और फिर कड़ी हो जाती है, जिस से फसल कमजोर होती है. इसीलिए वे हमेशा अपने खेतों में जैविक देशी खाद ही डालते हैं. जीताराम के खेत में कभी कीट यानी लट का प्रकाप होता है, तो वे जैविक नीम की दवा का छिड़काव करते हैं. वे कीटग्रस्त बैगनों को तोड़ कर गड्ढे में गाड़ देते हैं.

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