मेरे पास 4000 वर्गफुट जमीन है, जिस में मैं सब्जी की आर्गेनिक खेती करना चाहता हूं. मैं उसी जमीन के थोड़े से एरिया में सब्जी बोता हूं. मुझे कुछ सुझाव दें? इस तरह की जानकारी आज के समय में बहुत लोग चाहते हैं, क्योंकि ज्यादातर सब्जियां उगाने में जहरीले रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है, जो स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक है ही, हमारी खेती की जमीन की उपजाऊ कूवत को भी नुकसान पहुंचाते हैं. तो क्यों न हम आर्गेनिक फार्मिंग की तरफ बढ़ें और पौलीहाउस में सब्जी की खेती करें. वाकई यह आज के दौर में फायदे का सौदा है.

पौलीहाउस बनाने में एक बार खर्च जरूर आता है, लेकिन इस का फायदा हमें सालोंसाल मिलता है. जानकारों के अनुसार, 1 हजार वर्गफुट का पौलीहाउस बनाने के लिए अगर हम 200 माइक्रोन की (लो डैंसिटी पौलीथिन) इस्तेमाल करते हैं, तो उस का खर्च लगभग 45000 रुपए तक आता है. पौलीहाउस बनाते समय अपने इलाके के मौसम को ध्यान में रख कर बनाएं. पौलीहाउस में हवा के आनेजाने और सूरज की रोशनी को भी ध्यान में रखें. इस के लिए दिशाओें को अवश्य ध्यान में रखें. पौलीहाउस की छत 2 प्रकार की बनाई जाती है. एक ढलान वाली त्रिभुजाकार, दूसरी गोलाकार आकार में. बर्फीले इलाकों में पौलीहाउस की छत गोलाकार आकार में बनानी चाहिए. दूसरी जगहों पर किसी भी प्रकार के आकार वाली छत बना सकते हैं.

क्यों है पौलीहाउस फायदेमंद

आज विश्वभर के 90 फीसदी पौलीहाउस प्लास्टिक की पन्नी, एल्यूमीनियम की चादर, लकड़ी या बांस के ढांचे से बनते हैं. इसी कारण पौलीहाउस अब पहले के मुकाबले सस्ते पड़ते हैं. देश के पूर्वोत्तर राज्यों में अच्छी क्वालिटी के बांस आसानी से और कम कीमत पर मिल जाते हैं. इन जगहों पर बांस का इस्तेमाल पौलीहाउस का ढांचा बनाने में किया जा सकता है. एल्यूमीनियम में जंग नहीं लगती है. इस के इस्तेमाल से पौलीहाउस के ढांचे का भार कम किया जा सकता है. लकड़ी और बांस के ढांचे 5-7 साल तक उपयोगी होते हैं और अगर ठीक प्रकार से रखरखाव किया जाए तो धातु से बने ढांचे की उम्र 20-25 साल तक होती है. पौलीहाउस ऐसी जगह पर लगाएं जो सड़क से नजदीक हो और बारिश का पानी इकट्ठा न होता हो. इस के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वहां रोशनी और साफ पानी आसानी से मिल सके. पौलीहाउस में पौधों की सिंचाई ड्रिप सिस्टम से करनी चाहिए. सर्दी के मौसम में पौलीहाउस में बिना किसी कृत्रिम ऊर्जा के ही उस का प्राकृतिक सौर ऊर्जा द्वारा यानी सूरज की रोशनी के द्वारा तापमान बढ़ जाता है, जो ठंड के मौसम में बेहतर फसल पैदा करने के लिए उपयोगी है. फसलों से संबंधित जैविक क्रियाएं तेजी से होती हैं. इस से फसलों की पैदावार व गुणवत्ता में सुधार होता है. साथ ही, सालभर फसल लेना भी संभव है.

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