पहले ओले पड़ने और बाद में बरसात न होने से राजस्थान के किसानों की फसलें बरबाद हो गई हैं, ऊपर से फसलों पर लगने वाली बीमारियों ने किसानों की आस को खत्म कर दिया है. राजस्थान के किसान पहले ही रबी सीजन में ओला पड़ने की मार झेल कर बरबाद हो चुके हैं, अब खरीफ सीजन में भी बारिश की कमी के चलते फसलों में पनपे रोगों से किसानों की कमर टूट चुकी है. इस बार बारिश कम व देर से होने की वजह से किसानों ने जैसेतैसे खरीफ फसलों की बीजाई तो कर ली थी, लेकिन एक लंबे समय तक बारिश नहीं होने की वजह से फसलों में फैले संक्रमण से फसलें पीली पड़ कर तबाह हो गई हैं. प्रदेश के कई हिस्सों में कम बारिश के चलते पीली पड़ कर खराब हुई फसल की कटाई करने के बजाय किसान मवेशियों को खेतों में ही छोड़ते हुए देखे जा सकते हैं.

कई किसान तो ऐसे हैं, जिन के पास खराब हुई फसल को काटने या जुताई करने के लिए पैसे तक नहीं हैं. ऐसे हालात में वे खेतों में मवेशी छोड़ रहे हैं, जो फसल को चर कर खेतों को साफ कर रहे हैं. गौरतलब है कि किसानों ने अलगअलग किस्मों की फसलें बोई थीं, जो खराब हो गई हैं. इस से किसानों को काफी माली नुकसान उठाना पड़ा है. इस के चलते वे पूरी तरह से टूट गए हैं.

हद तक हुई बरबादी

किसानों का कहना है कि खेतों में लगी ज्वार, मूंगफली, मूंग, उड़द, बाजरा, चौलाई वगैरह की फसल 70 से 80 फीसदी तक खराब हो गई है और अब बारिश नहीं होने से फसलों में पीला मौजेक रोग फैल गया है. इस से खेतों में खड़ी फसल पीली पड़ कर खत्म हो गई है. खेती माहिरों के मुताबिक, ऐसे हालात में कीटनाशक दवा भी काम नहीं करती है. यही वजह है कि किसानों ने आस ही छोड़ दी है. हालांकि कुछ किसान तो खेतों में खड़ी फसल की बोआई कर रहे हैं. लेकिन ज्यादातर किसान ऐसे हैं, जो माली तौर पर काफी कमजोर हैं. वे अपने खेतों में खुद के मवेशी तो छोड़ ही रहे हैं, साथ ही उन्होंने गांव के बाकी लोगों से भी मवेशी चराने के लिए कह दिया है.

दवा भी बेअसर

किसानों ने बताया कि उन्होंने रोग लगने की शुरुआत में ही दवा का छिड़काव किया था. लेकिन बारिश नहीं होने से दवा भी फसल पर असर नहीं दिखा पाई. इस से किसानों की पूरी की पूरी फसलें बरबाद हो गई हैं. किसान कैलाश, प्रभु व नारायण ने बताया कि खेत में खराब हुई फसल लगी है. अब इसे काटने की हिम्मत ही नहीं बची है. जुलाई महीने में हजारों रुपए खर्च कर अलगअलग किस्म की फसलों की बोआई की थी, इस के बाद इन्हें रोगों से बचाने के लिए दवा का भी छिड़काव किया था, लेकिन समय पर बरसात नहीं होने से फसलें खराब हो गई हैं.

क्या है पीला मौजेक

दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र के अफसरों के मुताबिक, लंबे समय तक बारिश नहीं होने से पानी की कमी के चलते फसलें पीली पड़ कर मुरझा जाती हैं, जिस से फसल की बढ़वार रुक जाती है. ऐसे में किसी भी तरह की कीटनाशक दवा व कैमिकल का भी असर फसल पर नहीं होता है. फसल की बढ़वार के लिए दिया जाने वाला यूरिया भी बेअसर हो जाता है. पानी की कमी में कीटनाशक दवा का उलटा असर होने लगता है. इस से फसल पीली पड़ कर पूरी तरह खत्म हो जाती है.

माहू कीट ने मारा

एक ओर जहां पौधे संक्रमण के कारण पीले पड़ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर कीटों ने भी पौधों को चट करना शुरू कर दिया है. प्रदेश के बड़ली महाचंदपुरा, सांवलिया, लदाणा वगैरह गांवों में खेतों का जायजा लिया गया, तो बड़ी तादाद में फसलों पर कीट प्रकोप देखने को मिला, खासकर मूंग, उड़द, सोयाबीन जैसी दलहनी फसलों पर सब से ज्यादा कीट प्रकोप देखने को मिला. दलहनी फसलों पर माहू कीट का सब से ज्यादा प्रकोप होने से ये कीट पौधों से फलियों को चट कर रहे हैं. कीट प्रकोप से फसल को बचाने के लिए कृषि अधिकारी किसानों को जानकारी भी नहीं देते देखे गए हैं. इस से समस्या और भी ज्यादा गहरा गई है.

बाजरा भी नहीं बचा

समय पर बारिश नहीं होने से बाजरा व ज्वार जैसी कम पानी की फसलें भी तबाह हो गई हैं. फसल में बाजरे के सिट्टे तो खूब लगे, लेकिन सिट्टे में दाने नहीं पनप पाए. यदि एक हलकी सी बारिश भी समय पर हो जाती, तो शायद प्रदेशभर में बाजरे की भरपूर फसल उपजती, पर ऐसा हो न सका.

फसल बचाने की जुगत

कई किसान जो थोड़े बहुत पैसे वाले हैं व जिन के पास सिंचाई करने के साधन हैं, वे सिंचाई कर फसल को बचाने की जुगत में लगे हुए देखे गए. मूंग, उड़द व मूंगफली की फसल में सिंचाई कर इन्हें बचाने की कोशिश भी किसानों द्वारा की गई है, लेकिन कुओं या दूसरे पानी के स्रोतों का पानी का लैवल नीचे गिरने के कारण सिंचाई करना भी महंगा साबित हो रहा है.

सूखे पड़े हैं तालतलैया

मानसून की बेरुखी व बारिश की कमी में प्रदेश के तमाम बांध, तालाब, तालतलैया, एनीकट जलाशय सूखे पड़े हैं. नदीनालों में कहीं भी पानी नहीं है. जलाशयों में पानी न होने से किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आती देखी जा सकती हैं. इस के चलते किसानों को आगामी रबी की फसल लेने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. जलाशयों में पानी नहीं आने से रबी की फसल को पानी देना किसानों के लिए मुश्किल हो जाएगा. बांधों व जलाशयों में पानी की आवक होती, तो हजारों हेक्टेयर भूमि सिंचित होती, साथ ही कुओं का जलस्तर भी ऊंचा आ जाता.

इन से भी टूटी आस

खेत का पानी खेत में ही रोकने के लिए हजारों किसानों ने अपने खेत में खेत तलाइयां खुदवाई थीं, ताकि समयसमय पर सिंचाई कर रबी की भरपूर फसल ली जा सके, लेकिन किसानों की यह उम्मीद भी टूटती नजर आ गई. किसी भी खेत तलाई में एकाध फुट से ज्यादा पानी नहीं आया है. इस से किसान और भी ज्यादा चिंतित हैं.  

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