Writer- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य

लगातार मौसम में बदलाव होने से इस समय प्याज और लहसुन की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती है. अगर समय रहते इन का प्रबंधन नहीं किया गया, तो प्याज व लहसुन की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

इस बारे में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और अध्यक्ष, प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने प्याज व लहसुन की खेती करने वाले किसानों को सलाह दी है कि मौसम की अनुकूलता के आधार पर दोनों फसलों में ?ालसा, मृदुरोमिल फफूंदी, बैगनी धब्बा रोग और थ्रिप्स कीट से सावधान रहने की आवश्यकता है.

वे कहते हैं कि अलसा रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां एक तरफ पीली और दूसरी तरफ हरी रहती हैं, वहीं मृदुरोमिल रोग में पत्तियों की सतह पर बैगनी रोएंदार बढ़वार दिखाई पड़ती है, जो बाद में हरा रंग लिए पीली हो जाती हैं.

दोनों रोगों की रोकथाम के लिए मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें, वहीं बैगनी धब्बा रोग में प्रभावित पत्तियों और तनों पर छोटेछोटे गुलाबी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में भूरे हो कर आंख के आकार के हो जाते हैं और इन का रंग बैगनी हो जाता है. इस रोग के प्रबंधन के लिए डिफेनोकोनाजोल 2.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

प्याज व लहसुन में थ्रिप्स कीट का प्रकोप भी ऐसे मौसम में अधिक होता है. ये कीट छोटे पीले रंग के होते हैं. इन के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस के कारण पत्तियों पर हलके हरे रंग के लंबेलंबे धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो बाद में सफेद रंग के हो जाते हैं. इस के प्रबंधन के लिए साइपरमेथ्रिन 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

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ध्यान रहे कि प्याज व लहसुन की पत्तियां चिकनी होती हैं. यही वजह है कि उस पर दवा चिपक नहीं पाती है, इसलिए चिपचिपा पदार्थ ट्राइटोन या सेंडोविट 1 मिलीलिटर प्रति लिटर  पानी में घोल कर छिड़काव करें.

दवाओं के छिड़काव के कम से कम

2 हफ्ते बाद ही प्याज व लहसुन को खाने में प्रयोग करें. दवा के छिड़काव के बाद नहाएं और कपड़ों को अच्छी तरह साबुन से धो लें.

जैव उर्वरक उपयोग करने से पहले जानें कुछ बातें हमारे यहां खेती में जैव उर्वरकों में राइजोबियम बैक्टीरिया, एजोटोबैक्टर, फास्फोरस  घोलक जीवाणु, पोटाश मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया, एजोस्पिरिलम के साथ ही माइक्रोराइजा का इस्तेमाल किया जाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

* बीज या जड़ों को शोधित किया जाता है.

* भूमि शोधन में इस्तेमाल किया जाता है.

* शोधन करने के लिए बीजोपचार

200 ग्राम प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से करें या फिर 50 से 100 ग्राम गुड़ के घोल में मिला कर शोधन करते हैं.

* भूमि शोधन के लिए जड़ या कंद के उपचार के लिए 15 से 20 लिटर पानी में

1 किलोग्राम जैव उर्वरक का घोल बना कर पौधे की जड़ों या कंदों को 10 से 20 मिनट तक शोधित कर के खेत में रोपाई करें.

* मिट्टी के उपचार के लिए 5 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जैव उर्वरक को 200 से 300 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर आखिरी जुताई के समय खेत में इस्तेमाल करना चाहिए.

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इस्तेमाल से पहले कुछ खास सावधानियां

* जैव उर्वरक खरीदने और इस्तेमाल करने से पहले उस की ऐक्सपायरी डेट जरूर देख लें.

* जैव उर्वरक का इस्तेमाल कड़ी धूप में कभी भी न करें. हमेशा सुबह या शाम के समय इस का इस्तेमाल करना चाहिए.

* खेत में सही नमी होना बहुत ही जरूरी है.

* किसी भी कैमिकल के साथ इसे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

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