आमतौर पर किसानों के लिए नकदी फसलें कम लागत व कम समय में ज्यादा लाभ देने वाली मानी जाती हैं. नकदी फसलों की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग के बारे में जानकारी ले कर किसान अच्छा फायदा ले सकते हैं. इन्हीं नकदी फसलों में तंबाकू की खेती खास है. तंबाकू की खेती न केवल कम समय में की जाती है, बल्कि इस के मामले में किसानों को मार्केटिंग के लिए इधरउधर भटकना नहीं पड़ता है. तंबाकू की फसल की कटाई व प्रोसेसिंग के बाद किसान के खेत से ही फसल की बिक्री आसानी से हो जाती है. भारत में तंबाकू की कई किस्में उगाई जाती हैं. किन किस्मों को उगाना है, यह उस के अलगअलग इस्तेमाल पर निर्भर करता है. घाटे की खेती से उबरने के लिए तंबाकू की खेती एक अच्छा तरीका साबित हो सकती है.

तंबाकू की खेती कई तरह की मिट्टियों में की जा सकती है. हलकी दोमट, मध्यम दोमट, मिश्रित लाल व कछारी मिट्टियां इस के लिए ज्यादा मुफीद मानी जाती हैं, लेकिन ऐसी मिट्टियों में तंबाकू की पत्तियां मोटी, खुरदरी व बड़ी हो जाती हैं. ऐसे में इस फसल का इस्तेमाल हुक्का व बीड़ी बनाने के लिए किया जा सकता है. तंबाकू की खेती के लिए हलकी भुरभुरी मिट्टी ज्यादा अच्छी मानी गई है. इस में पैदा किए जाने वाले तंबाकू की गुणवत्ता व स्वाद ज्यादा अच्छा माना जाता?है, जिस का इस्तेमाल सिगार व सिगरेट वगैरह में किया जाता है.

खेती की तैयारी : तंबाकू की खेती के लिए सब से पहले नर्सरी डाली जाती है. नर्सरी के लिए हलकी भुरभुरी मिट्टी ज्यादा अच्छी होती है. नर्सरी डालने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए. 12 एकड़ खेत में तंबाकू की फसल रोपने के लिए 1 बीघे रकबे में नर्सरी डाली जाती है, जिस के लिए 1 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. नर्सरी में बीज डालने से पहले खेत को समतल कर के पाटा लगा देना चाहिए और सही नमी की अवस्था में रोपे जाने वाले खेत के रकबे के अनुसार नर्सरी में बीज की मात्रा डालनी चाहिए. क्षारीय मिट्टी में तंबाकू की फसल लेने से बचना चाहिए, क्योंकि इस मिट्टी में काली जड़ गलन बीमारी का प्रकोप पाया जाता है. तंबाकू की अलगअलग किस्मों के अनुसार इस की नर्सरी का समय तय किया जाता है. आमतौर पर नर्सरी डालने के लिए अगस्त के आखिरी हफ्ते से नवंबर के दूसरे हफ्ते तक का समय ज्यादा अच्छा माना जाता है. नर्सरी डालने के डेढ़ महीने बाद नर्सरी से तंबाकू के पौधों को उखाड़ कर खेत में रोपाई की जाती है. नवंबर महीने में डाली गई नर्सरी की रोपाई जनवरी के पहले हफ्ते तक की जा सकती है.

तंबाकू की प्रमुख किस्में : खाने वाले तंबाकू की खास किस्मों में पीटी 76, हरी बंडी, कोइनी, सुमित्रा, रंगपुर, ह्यइट वर्ले, भाग्य लक्ष्मी, सोना, गंडक बहार, पीएन 70, एनपी 35, प्रभात, डीजी 3 व डीजी 47 वगैरह प्रमुख मानी गई हैं. वहीं हुक्का, बीड़ी, सिगार व चुरुट के लिए एनपी 220, टाइप 23, टाइप 49, टाइप 238, पटुवा, फरुखाबाद लोकल, मोतीहारी, कलकतिया, पीएन 28, एनपीएस 219, पटियाली, सी 302 लकडा, एनपीएस 2116, चैथन, हरिसन स्पेशल, वर्जिनिया गोल्ड, जैश्री, धनादयी, कनकप्रभा, सीटीआरआई स्पेशल, जीएसएच 3, के 49, जी 6 आनंद 119, लंका 27, डीआर 1, भवानी स्पेशल व ओके 1 वगैरह उम्दा किस्में मानी गई हैं. इन किस्मों को अगस्त से नवंबर तक नर्सरी में डाला जा सकता है.

रोपाई की तैयारी : तंबाकू के पौधों की रोपाई 1 से डेढ़ महीने के भीतर खेत में कर देनी चाहिए. पौधों की रोपाई के लिए खेत में प्रति एकड़ की दर से 4 ट्राली गोबर की खाद, 50 किलोग्राम डीएपी, 25 किलोग्राम पोटाश व 10 किलोग्राम यूरिया का बुरकाव करना चाहिए. इस के बाद इस खाद को मिट्टी में मिला कर अच्छी तरह से जुताई कर के पाटा लगा देना चाहिए. नर्सरी से पौधों को उखाड़ने से 2 दिन पहले खेत की हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. इस के बाद खेत में नमी की सही मात्रा रहते ही लाइन से लाइन व पौध से पौध की दूरी ढाई फुट रख कर रोपाई करनी चाहिए. 1 एकड़ खेत में रोपाई के लिए करीब 10000 तंबाकू के पौधों की जरूरत पड़ती है. रोपाई के करने के बाद हजारे से पौधों को पानी देना चाहिए. ज्यादा रकबे की रोपाई के तुरंत बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.

खाद व उर्वरक : रोपाई के 1 महीने बाद 80 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से डेढ़ महीने के अंतर पर व दूसरी व तीसरी बार 20-20 किलोग्राम की मात्रा देनी चाहिए. तंबाकू की गुणवत्ता अच्छी हो, इस के लिए कोशिश करें कि फसल में रासायनिक खादों की जगह वर्मी कंपोस्ट, कंपोस्ट खाद व गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाए.

सिंचाई व खरपतवार : तंबाकू की रोपाई के बाद हर 15 दिनों पर सिंचाई करते रहना चाहिए. फसल कटाई के 15 दिनों पहले खेत की सिंचाई रोक दी जाती है. फसल की अच्छी पैदावार व गुणवत्ता के लिए पहली निराई 10-15 दिनों बाद करनी चाहिए. फसल में घासफूस के नियंत्रण के लिए जरूरत के हिसाब से 3 बार निराई करना जरूरी होता है.

बीमारियां व कीट : तंबाकू की फसल में मोजैक बीमारी का ज्यादा प्रकोप देखा गया है. इस के अलावा शुरुआती अवस्था में आग्र पतन, चित्ती, पडकुंचन रोगों का प्रकोप पाया जाता है. इस के अलावा तंबाकू की सूंड़ी, इल्ली, गिडार, तना छेदक, माहू, कटुआ व दीमक कीटों का प्रकोप देखा गया है. ये सभी कीट व रोग पौधों को पूरी तरह खत्म कर देते हैं. कीटों की रोकथाम के लिए कार्बेनिल 10 फीसदी धूल का छिड़काव फसल में कीट का प्रकोप दिखाने के समय ही कर देना चाहिए. इस के अलावा क्लोर पायरीफास 20 ईसी या प्रोफेनोफास 50 ईसी का छिड़काव करना चाहिए. बीमारी की रोकथाम के लिए कार्बेंडाजिम, मैंकोजेब, थीरम, मेटालेक्जिल, डीनोकेप दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए. तंबाकू की फसल के लिए ज्यादा पाला व ज्यादा बारिश भी नुकसानदेह होती है. ज्यादा पाले व बारिश की दशा में फसल के सूखने व बरबाद होने के आसार बढ़ जाते हैं. ऐसे में ज्यादा बारिश व पाले वाली जगहों पर तंबाकू की खेती करने से बचना चाहिए.

फुनगों की तोड़ाई : तंबाकू की फसल में अच्छी गुणवत्ता व पैदावार बढ़ाने के लिए उस के फुनगों की तोड़ाई करना जरूरी होता है. जब फसल 60 दिनों की हो जाए, तो हर 10 दिनों के बाद 3 बार फुनगों की तोड़ाई की जानी चाहिए. यह कोशिश करें कि पौधों में 9 से 10 पत्ते ही आने पाएं.

पौधों की कटाई : खाने वाले तंबाकू की फसल 120 दिनों में, बीड़ी वाले तंबाकू की फसल 140 से 150 दिनों में और सिगार व चुरुट वाले तंबाकू की फसल 90 से 100 दिनों में कटाई के लायक हो जाती है. पौधों की पत्तियां जब हरी हों तभी उन की कटाई कर देनी चाहिए और कटाई के बाद 3 दिनों तक पौधों को खेत में ही छोड़ देना चाहिए. जब पत्तियां पीली पड़ जाएं तो उन को खेत से उठा कर सही जगह पर दोबारा फैला कर सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए. इस दौरान खाने वाले तंबाकू की नसों पर चीरा लगाना जरूरी होता है. सूखने के दौरान तंबाकू में नमी व सफेदी जितनी ज्यादा आती है उतना ही अच्छा गुण, रंग, स्वाद व गंध पैदा होती है. ऐसे में तंबाकू की पलटाई समय से करते रहना चाहिए. इस से किसानों को तंबाकू का अच्छा मूल्य मिल जाता?है. घर पर करीब 1 हफ्ते तक सुखाने के बाद पत्तियों में चीरा लगा कर अलगअलग किया जाता है. उस के बाद कुछ दिनों के लिए पत्तियों को पालीथीन से ढक कर सुगंध पैदा करने के लिए छोड़ दिया जाता?है. जब उन मेंअच्छी सुगंध उठने लगती है, तो इस की गठिया बांध कर इस में पानी का छिड़काव कर के छटका जाता है. जब इस में सफेदी आने लगे तो यह मान लिया जाता है कि तंबाकू की गुणवत्ता अच्छी स्थिति में हो गई है.

मार्केटिंग व लाभ : तंबाकू किसान ओमप्रकाश का कहना है कि ज्यादातर मामलों में खेत में खड़ी फसल ही बिक जाती है, जिसे व्यापारी करीब 25000 रुपए प्रति बीघे की दर से लेते हैं. तंबाकू की 1 एकड़ फसल के लिए करीब 15000 रुपए की लागत आती है, जबकि 1 एकड़ से फसल अच्छी होने की दशा में 4 महीने में करीब 1 लाख रुपए की आमदनी होती है. इस प्रकार लागत मूल्य को निकालने के बाद शुद्ध आमदनी करीब 85 हजार रुपए प्रति एकड़ हो जाती है. भारतीय तंबाकू की ज्यादा मांग बाहरी देशों में होने के कारण अच्छा मूल्य मिलता है. भारत द्वारा उत्पादित तंबाकू अमेरिका, रूस, फ्रांस, अफ्रीका, ब्रिटेन, सिंगापुर, बेल्जियम, हांगकांग, चीन, नीदरलैंड व जापान वगैरह देशों को भेजा जाता है. ऐसे में किसान विदेशी निर्यातक व्यापारियों से संपर्क कर के अपनी उपज का अच्छा दाम पा सकते हैं.

तंबाकू की खेती से किसान हुआ मालामाल

बस्ती जिले के परशुरामपुर ब्लाक की पश्चिमी सीमा पर स्थित गांव मदनापुर के रामराज वर्मा के परिवार में कुल 25 लोग हैं. 40 साल पहले उन के पास केवल 12 बीघे जमीन थी, जिस पर वे पारंपरिक रूप से धान व गेहूं की फसल ले रहे थे. लेकिन उन्हें इस खेती से कोई खास फायदा नहीं मिल रहा था. ऐसे में वे अपने आसपास के किसानों से व्यावसायिक खेती के बारे में पता करते रहते हैं. एक बार वे किसी काम से गोंडा जिले के नवाबगंज ब्लाक में गए थे. उन्होंने वहां किसानों को तंबाकू की खेती करते देखा. जब उन्होंने वहां के किसानों से तंबाकू की खेती के बारे में जानकारी ली, तब उन्हें पता चला कि तंबाकू की खेती से कम समय में अच्छा फायदा मिल सकता है. ऐसे में घर आ कर उन्होंने परिवार के लोगों से तंबाकू की खेती किए जाने पर बातचीत की. सभी लोगों की रजामंदी के बाद उन्होंने अपने 2 एकड़ खेत में तंबाकू की खेती की शुरुआत की. पहली बार उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ, लेकिन तंबाकू की तैयार फसल बेचने में किसी तरह की परेशानी नहीं आई.

तंबाकू बाजार ने बढ़ाया जोश : किसान रामराज वर्मा ने तंबाकू की बिक्री को देखते हुए इस की व्यावसायिक व वैज्ञानिक खेती का फैसला ले दिया था. तंबाकू की फसल से उन्हें 2 एकड़ खेत से साल 1974 में करीब 5000 रुपए की आमदनी हुई. उन्होंने तंबाकू की खेती से हुई आमदनी के पैसे से 15 एकड़ खेत लीज पर ले कर तंबाकू की खेती की. इस बार उन्हें करीब 25000 रुपए की आमदनी हुई. वे तंबाकू की गुणवत्ता का विशेष खयाल रखते थे, जिस से तंबाकू व्यापारी उन के घर से तैयार फसल को खरीद कर ले जाते थे. किसान रामराज के परिवार के 25 लोग लगातार तंबाकू की खेती में लगे रहे और करीब 5 सालों में वे किराए की 25 एकड़ जमीन पर तंबाकू की खेती करने लगे थे.

3 एकड़ खेत से 50 एकड़ खेत के बने मलिक

यह किसान रामराज वर्मा  की मेहनत का ही फल था कि उन्हें लगातार तंबाकू की खेती से फायदा मिलता रहा. ऐसे में उन्होंने तंबाकू की खेती से कुछ ही सालों में अच्छा फायदा लेना शुरू कर दिया था. फायदे के इस पैसे का इस्तेमाल उन्होंने परिवार के सदस्यों की संख्या को देखते हुए जमीन की खरीदारी में किया और वे हर साल तंबाकू की फसल से होने वाले फायदे के पैसे से कुछ न कुछ जमीन खरीदते रहे. अपनी मेहनत की वजह से वे करीब 40 सालों में 200 बीघे खेत के मालिक बन गए. 2 एकड़ खेत में शुरू की गई तंबाकू की खेती वर्तमान में 15 एकड़ तक पहुंच गई है, जिस से वे अच्छी आमदनी ले रहे हैं.

इस के अलावा उन्होंने खेती व उस से जुड़े रोजगारों में भी परिवार के सदस्यों को जोड़ लिया. तंबाकू की खेती के अलावा वे बागबानी फसलों की तरफ भी मुड़े. आजकल वे 25 बीघे खेत में टिश्यूकल्चर विधि से तैयार की गई केले की जी 9 व रोबेस्टा प्रजाति की खेती कर रहे हैं. केले की खेती से अच्छा फायदा लेने के लिए उन्होंने परिवार के सदस्य ओमप्रकाश को जिम्मेदारी सौंप रखी है. ओमप्रकाश तैयार केले की फसल को नजदीकी मंडी में ले जाते हैं, जिस से बिचौलियों की वजह से नुकसान नहीं होने पाता है.                         

जैविक खेती के लिए पशुपालन

किसान रामराज वर्मा ने अपने खेतों में बोए गए तंबाकू व बागबानी फसलों में कैमिकलयुक्त खादों व उर्वरकोें के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए 16 दुधारू पशुओं को पाल रखा है, जिन से प्राप्त होने वाले मलमूत्र का इस्तेमाल वे गोबर गैस प्लांट में करते हैं और गोबर गैस से प्राप्त अवशिष्ट का प्रयोग जैविक खाद के रूप में करते हैं. किसान रामराज वर्मा ने यह साबित कर दिया है कि अगर व्यावसायिक फसलों की खेती उन्नत तरीके से की जाए तो न केवल वह किसान के लिए फायदेमंद बन सकती है, बल्कि उस से दूसरे लोगों को भी जोड़ा जा सकता है. उन की तंबाकू की खेती से होने वाले लाभ को देखते हुए गांव के तमाम लोगों ने तंबाकू की खेती को अपना कर अपनी माली हालत को मजबूत किया है.

किसान रामराज वर्मा से तंबाकू की खेती के गुर सीखने के लिए दूसरे जिलों के लोग भीउन के खेतों तक चल कर आते हैं. दूसरे जिलों से आए किसानों को रामराज वर्मा न केवल तंबाकू की खेती से जुड़ी तकनीकी जानकारी देते हैं, बल्कि उस की प्रोसेसिंग, गुणवत्ता निर्धारण व मार्केटिंग के बारे में भी बताते हैं.

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