अलसी तेल वाली फसलों में दूसरी खास फसल है. अलसी के पूरे पौधे से पैसा कमाया जा सकता है. इस के तने से लिनेन नामक बहुत महंगा रेशा मिलता है और बीज का इस्तेमाल तेल प्राप्त करने के साथसाथ  दवाओं में किया जाता है. आयुर्वेद में अलसी को रोज का भोजन माना जाता है. अलसी के कुल उत्पादन का करीब 20 फीसदी खाने के तेल के रूप में और बचा 80 फीसदी उद्योगों में इस्तेमाल होता है. अलसी के बीज में ओमेगा 3 वसीय अम्ल 50 से 60 फीसदी पाया जाता है. साथ ही इस में अल्फा लिनोलिनिक अम्ल, लिग्नेज, प्रोटीन व खाद्य रेशा आदि भी होते हैं. ओमेगा 3 वसीय अम्ल मधुमेह गठिया, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कैंसर, मानसिक तनाव (डिप्रेशन), दमा आदि बीमारियों में लाभदायक होता है. दुनिया में अलसी के उत्पादक के तौर पर भारत का तीसरा स्थान है, जबकि पहले स्थान पर कनाडा व दूसरे स्थान पर चीन हैं. करीब 448.7 हजार हेक्टेयर जमीन पर इस की खेती की जा रही है व कुल उत्पादन 168.7 हजार टन व औसतन पैदावार 378 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. भारत में खासतौर पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, ओडिशा, महाराष्ट्र व कर्नाटक आदि प्रदेशों में इस की खेती की जाती है. अलसी के कुल उत्पादन का लगभग 20 फीसदी खाद्य तेल के रूप में और बचा 80 फीसदी तेल उद्योग जैसे सूखा तेल, पेंट बनाने में, वारनिश, लेमिनेशन, तेल कपड़े, चमड़े, छपाई की स्याही, चिपकाने, टेपिलोन साबुन आदि में किया जाता है.

जमीन और जलवायु : अलसी की फसल के लिए काली भारी व दोमट मटियार मिट्टी मुनासिब होती है. जमीन में उचित जल निकासी का इंतजाम होना चाहिए. अलसी की फसल को ठंडी व सूखी जलवायु की जरूरत पड़ती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...