चीनी की दुनिया की कड़वाहट

सहकारी चीनी मिलों पर सूबे की सरकार का काबू नहीं

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सूबे में चीनी उत्पादन और गन्ना मूल्य भुगतान ही किसानों का सब से खास मुद्दा है. सारे साल इसी बात को ले कर उठापटक मची रहती है. मुख्यमंत्री से ले कर प्रधानमंत्री तक को  मामले में जबतब दखल देना पड़ता है, फिर भी चीनी के मामले की कड़वाहट खत्म नहीं हो पाती. फिलहाल गन्ना मूल्य भुगतान की उम्मीद लगाए बैठे तमाम किसानों को सहकारी चीनी मिलों ने करारा झटका दिया है. बीते चीनी सीजन में गन्ने की पेराई करने वाली 23 सहकारी मिलों ने उच्च न्यायालय को बताया कि वे कोर्ट के फरमान के मुताबिक 2 हफ्ते में बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं कर पाएंगी. इस के लिए उन्हें 31 दिसंबर यानी 2015 के अंत तक का वक्त चाहिए. इन मिलों ने अपने हलफनामे में दो टूक अंदाज में कहा है कि उन पर सूबे की सरकार का कोई काबू लागू नहीं होता. उन का संचालन स्वायत्त सहकारी समितियां करती हैं, जिन की स्थापना किसानों द्वारा की गई है. गौरतलब है कि पिछली बार 29 जुलाई, 2015 को उच्च न्यायालय ने गन्ना मूल्य भुगतान के मसले पर सख्ती बरतते हुए सूबे की सरकार के अधिकार वाली सहकारी चीनी मिलों को 2 हफ्ते में किसानों को भुगतान करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने आदेश का पालन न किए जाने की दशा में सख्त कार्यवाही करने की बात कही थी.

उच्च न्यायायल ने ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन’ के संयोजक वीएम सिंह की जिस याचिका पर 2 हफ्ते में भुगतान किए जाने का आदेश दिया था, उस में पक्षकार बनने के लिए 23 सहकारी मिलें उच्च न्यायालय जा पहुंचीं. उन्होंने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में साफ कहा कि उन की मिलें सूबे की सरकार की नहीं है. इस मसले पर याचिकाकर्त्ता वीएम सिंह का कहना है, सहकारी चीनी मिलों का नियंत्रण उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल संघ के अधीन है, मगर वह तसवीर से गायब है. ‘पहली दफे सहकारी चीनी मिलों को आगे कर के हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कराया गया है, जिस में बातों को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. ‘सूबे की सरकार के कहने पर यह कवायद निजी चीनी मिलों के हित में की जा रही है.’ सहकारी चीनी मिलों के महाप्रबंधकों का कहना है कि सहकारी चीनी मिलों पर 6855.37 करोड़ रुपए का कर्ज है. इस में राज्य सरकार की ब्याज सहित देनदारी 3880.11 करोड़ रुपए है. गौरतलब है कि राज्य सरकार से जो कर्ज मिलता है, उस पर 15 फीसदी ब्याज देना पड़ता है. अब देखने वाली बात यह है कि मिलों के दावे पर कोर्ट क्या कहता है. क्या मिलों को साल के अंत तक का वक्त दिया जाता है? क्या इस के बाद भी भुगतान पूरी तरह निबट पाएगा? सारे सवालों के जवाब समय आने पर ही मिल पाएंगे.                                               ठ्ठ

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