लेखक-डा. संजय सिंह, वैज्ञानिक,

फसल सुरक्षा धान की फसल ज्यादा पानी वाली फसल है और इस की खेती भी ज्यादातर इलाकों में बरसात के ऊपर ही निर्भर है. इन दिनों तरहतरह के खरपतवार भी तेजी से पनपते हैं, जो फसलों को खासा नुकसान पहुंचाते हैं. अगर समय पर इन की रोकथाम नहीं की जाए, तो फसल की उपज में भी कमी आती है धा न की फसल में पाए जाने वाले प्रमुख खरपतवार घास, सावां, टोडी बट्टा या गुरही, रागीया ?िंागरी, मोथा, जंगली धान या करघा, केबघास, बंदराबंदरी, दूब (एकदलीय घास कुल के), गारखमुडी, विलजा, अगिया, जलकुंभी, कैना, कनकी, हजार दाना और जंगली जूट हैं. इन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं :

* जहां खेत में मिट्टी का लेव बना कर और पानी भर कर धान को रोपा या बोया जाता है, वहां जो खरपतवार भूमि तैयार करने से पहले उग आते हैं, वे लेव बनाते समय जड़ से उखाड़ कर कीचड़ में दबसड़ जाते हैं. इस के बाद मिट्टी को 5 सैंटीमीटर या अधिक पानी से भरा रखने पर नए व पुराने खरपतवार कम पनप पाते हैं. * बीज छिटकवां धान, जिस में बियासी नहीं की जाती हो, वहां बोआई के तुरंत बाद या नई जमीन में या सूखी भूमि में बोनी के बाद, पानी बरसने के फौरन बाद ब्यूटाक्लोर 2.5 लिटर प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व का छिड़काव 500 लिटर पानी में घोल कर करने से तकरीबन 20 से 25 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं. खड़ी फसल में 2 बार 20-25 दिनों और 40-45 दिनों की अवस्था पर निराई करें.

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