टी-20 क्रिकेट वर्ल्डकप के 2 मैचों में लगातार हार के बाद ‘मोदी ही क्रिकेट में जिताएंगे’ कहने वालों और ‘मोहम्मद शमी की वजह से पाकिस्तान से हारे’ का नारा लगाने वालों के मुंह में गोबर भर गया है. पाकिस्तान से 10 विकेट की और न्यूजीलैंड से 8 विकेट की हार ने बता दिया है कि भारतीय क्रिकेट के शायद भारतीय हौकी वाले दिन आ गए हैं. नारों और जुमलों पर जीने वाली टीम क्रिकेट क्राफ्ट वैसे ही भूल चुकी है जैसे क्रिकेट के अंधभक्त, जिन में ज्यादातर धर्मभीरु अंधभक्त ही हैं, भाजपा सरकार के गवर्नैंस के स्टेट क्राफ्ट को पकड़ नहीं पाए.

भारत में क्रिकेट और क्रिकेटर तब भी ऊंची जमातों के लिए आदर्श रहे जब भारत 8-10 खेलने वाले देशों में से आखिरी पायदान पर हुआ करता था और देश अमरनाथ व मांजरेकर के गुण गाया करता था. हौकी में जीतते थे पर उसे तब भी और आज भी नीचे, दलितों, बैंकवार्डों, गरीबों का खेल समझा जाता है.

जब 5 दिनों के टैस्ट मैच होते थे, लोग सारे दिन ट्रांजिस्टर कान पर लगाए अपने क्रिकेटरों को 5-10 रन बना कर स्टेडियम में लौटते हुए और अपने बौलरों की गेंदों पर छक्केचौके लगते सुनते थे. आज क्रिकेट चतुर लोगों की वजह से अरबपति खेल बन गया है और 300 करोड़ से ज्यादा का वेतन क्रिकेटरों को मिलता है. सट्टेबाज क्या किसे देते हैं, यह राज कभी खुलेगा नहीं क्योंकि सरकार, पुलिस सब क्रिकेटरों के साथ हैं.

पाकिस्तान के साथ खेलते हुए 10 विकेट से हारने को एक घटना माना गया था पर उस के तुरंत बाद न्यूजीलैंड से 8 विकेट से हारना साबित कर गया है कि हमारे आकाओं के लिए क्रिकेट सिर्फ पैसा फेंको, तमाशा देखो वाला मामला है. अगर बीच के सालों में भारतीय टीम जीतती रही तो इस का एक कारण यह भी था कि दुनियाभर के क्रिकेटरों को पैसा भारतीय दर्शक और भारतीय सट्टेबाज ही देते रहे हैं. इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में इस खेल का बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं है.

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