देश के अपने आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई संकन वल्र्डवाइड इंटरनेशनल द्वारा ग्लोबल हंगर इंडैक्स के अनुसार भारत का नाम ऊंचा हो रहा है, भूखों में. 116 भूखे देशों में 2020 में भारत 94वें स्थान पर था और 2021 में लुडक़ कर 101वें स्थान पर आ गया है और केवल 15 छोटेछोटे देशों में भारत से ज्यादा भूखे हैं.

भारत जो अपने को विश्वगुरू कहने से नहीं अघाता असल में मूर्ख को इस वर्तमान सरकार का कोई एजेंडा ही नहीं मानता क्योंकि भूख तो पिछले जन्म के कर्म तय करते है. इस जन्म में भ्भूूखे रह कर यदि पंडों को पर्याप्त खाना खिलाया गया तो शायद अगले जन्म में भूख से छुटकारा मिलेगा.

ग्लोबल हंगर इंडैक्स जैसे आंकड़े देशों की सरकारों द्वारा खुद किए गए आंकड़ों पर तय होते हैं. विदेशी संस्था अपने लोग भारत के गांव देहातों में आदमी नहीं भेजती जो ढूंढ़े कि कौन भूखा है, कौन नहीं. 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु, लोगों का औसत वजन, अस्पतालों में आने वाले बच्चों के आंकड़े सरकारी संस्थाएं तैयार करती रहती है और इन्हीं पर यह इंडैक्स तैयार किया जाता है.

यह बेहद गर्भ की बात है कि 7 सालों के अच्छे दिनों में यह इंडेक्स लगातार भारत की गिरती स्थिति दर्र्शा रहा है और लगता है भारत सरकार का उत्तर एक ही है, भूखों को पैदा न होने दे. जनसंख्या नियंत्रण कानून बना कर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि यदि जनसंख्या कम होती तो भूखे कम होंगे. यह एकदम निरर्थक और बेमानी है. जनसंख्या कम ज्यादा होने से भूख के इंडैक्स को कोई  फर्क नहीं पड़ता क्योंकि भारत से ज्यादा सघन आबादी वाली बांग्लादेश हमारे से बेहतर है. हमारे ऊपर तो राम जी की कृपा है पर फिर भी हम भूखे हैं, ऐसा क्यों?

असल में हमारी प्राथमिकताएं ही गलत हैं. हम धर्म और उस से जुड़े प्रपंच में इतने व्यस्त रहते हैं कि किसान की समस्याओं, बेकारी, वितरण की समस्याए, बेघरों के पेटभर खाना आदि को सरकार अपने जिम्मेदारी मानती ही नहीं है. शायद नीति निर्धारिकों के मन में कहीं बैठा है कि बेघर भूखे मंदिर, गुरूद्वारों, मसजिद के सामने बैठ कर खाना पा सकते हैं और सरकार को ङ्क्षचता करने की आवश्यकता नहीं. नीति निर्धारित चाहे नेता हो या सरकारी अफसर इन लोगों के प्रति एकदम रूखा व्यवहार रखते हैं और उन्हें देश व समाज पर के या मानते हैं.

ये लोग बोझ हो सकते है पर हर समाज का कर्तव्य होता है कि चहने में पिछड़ रहे लोगों को सहारा दे, इन्हें धीमे सही जीने का अवसर तो दें न कि उनको रोंदते हुए अपनी फर्राटेदार गाडिय़ों से कुचल डालें.

ग्लोबर हंगर इंडैक्स हर साल निकाला जाता है और हर साल अगर सरकार कुछ कहती है तो सिर्फ यही कि कैसे सही सच को छिपाया जाए ताकि विश्वभर में थूथू न हो. सरकार को भूखों की नहीं छवि की ङ्क्षचता बस है.

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