राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने पांव और पसारने के लिए अपनी शाखाओं का विस्तार कर रहा है. वह अपनी 65 हजार शाखाओं को बढ़ा कर एक लाख करने की तैयारी में जुटा है. देश में कोई समाजसेवी संस्था बना कर किसी को भी जनता के पैसे से जनहित के कार्य करने का पूरा हक है. संविधान का दिया यह हक़ समाज को जोड़ता है. सवाल तो तब खड़ा होता है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस देश को प्राचीन पौराणिक मान्यताओं की ओर घसीटने को समाज सुधारना मानता व मनवाता है.

संघ के प्रोत्साहन से अब एक और शब्द प्रचारित किया जा रहा है और वह शब्द है- सनातन धर्म. हिंदू धर्म के अलावा यह क्या व कौन सा धर्म है? दरअसल, यह हिंदू धर्म की एक और कट्टर सोच है जिस में सारा जोर हिंदू धर्म के पूजापाठ का महिलाकरण कर के आम लोगों को सारे दिन धर्म के नाम पर कभी उस की पूजा, कभी उस को चढ़ावा, कभी फलां माला को जपने, कभी इसी धर्म के धंधेबाजों को खाना खिलाने और गाय दान करने जैसे कृत्यों पर है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या उस का रंग लिए सैकड़ों छोटेबड़े स्वामियों के आश्रमों, मठों, सैंटरों की कतारों में ध्यान, पूजापाठ, आज इस का दिन, कल उस का दिन मनवा कर देश की जनता को लगातार बहकाया जा रहा है और उस की उत्पादकता को नष्ट किया जा रहा है.

संघ के एजेंडे में पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन, जनसंख्या असंतुलन, मातृभाषा जैसे बड़े बोझिल शब्द शामिल हैं जो लगभग इसी रूप में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दोहराए गए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर प्रवचन में सुनने को मिलते हैं जो शुरू तो ‘भाइयोबहनो’ से होते हैं लेकिन अंत तक पौराणिक बन जाते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...