अनुच्छेदों 370 और 35 ए को अप्रभावी बनाने का भाजपा सरकार का कदम कश्मीर समस्या को हल करना नहीं था और न है, यह तो भारतभर में फैले कट्टर हिंदूभक्तों की मानसिक समस्या का हल है. कट्टर हिंदुओं को इन बातों से सिरदर्द नहीं होता कि देश में उन की औरतें ही क्यों दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह रहती हैं, क्यों तलाक बढ़ रहे हैं, क्यों शादियों में दहेज की मांग हो रही है, क्यों शहरगांव गंद से भरे हैं, क्यों हर कोने में एक मंदिर उगता है, क्यों कांवड़ या रामलीला या हनुमान परिक्रमा की वजह से सड़कें बंद हो जाती हैं.

उन के सिर में दर्द होता था कि क्यों कश्मीर को 1947 के विलय की शर्तों के हिसाब से संविधान में बने अनुच्छेद 370 और 35 ए के तहत विशेष स्तर दिया गया है. सड़कों, चौराहों, व्हाट्सऐप चर्चाओं, ट्विटरों, समाचारपत्रों में देश के सामने सब से भीषण समस्या न गरीबी है, न बेरोजगारी है, न मौबलिंचिंग है, न दलितों को पैर की जूती समझना है. समस्या तो केवल संविधान में कश्मीर को स्पैशल स्टेटस देना है. वह अब समाप्त कर दिया गया, तो मानो कश्मीर पर विजय हो गई.

अब कट्टरपंथी हिंदू फूले जा रहे हैं मानो उन की 2 जनों की फौज ने विदेशी भूमि पर कब्जा कर लिया है और वहां की जमीन, पैसा, औरतें भरभर कर लाई जाएंगी जो भक्तों में बांटी जाएंगी.

ऐसा माहौल, इंटरनैट बंद करने के बावजूद, क्या कश्मीरियों को छुएगा नहीं? यह एक ऐसा घाव है जिसे कश्मीरी तब ही भूल पाएंगे जब उस का खमियाजा मिल जाए.

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