सीबीआई और आरबीआई दोनों में घमासान होने से यह पक्का हो गया है कि इस सरकार की पकड़ न आम लोगों की सुरक्षा पर है, न पैसे पर. अगर सीबीआई के सब से ऊंचे अफसर अपने से नीचे वालों को गिरफ्तार करने लगें और नीचे वाले खुद ऊपर वालों की शिकायतें करने लगें तो पक्का है कि सीबीआई यानी सैंट्रल ब्यूरो औफ इंटैलीजैंस की जगह सड़ा बैगन औफ इंडिया बन गया है. इसी तरह आरबीआई में रिजर्व बैंक औफ इंडिया की तरह काम नहीं कर रहा रुपया बरबादी इंजन बन गया है.

सरकार की समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे. नरेंद्र मोदी को तो मंदिरों में पूजा करने, विदेशों के दौरे करने, मूर्तियों के फीते काटने, भाषण देने, नेहरू खानदान पर दोष मढ़ने के अलावा कुछ और काम नहीं है. उन के पहले दायां हाथ रहे अरुण जेटली केवल कमरे में बैठ कर बोल सकते हैं क्योंकि वे बीमार ही चल रहे हैं. आरबीआई उन की सुनता नहीं है या समझता है कि वकील को भला फाइनैंस के मामलों का क्या पता.

सीबीआई का काम राजनाथ सिंह के हाथों में होना चाहिए पर उन्हें भी और मंत्रियों की तरह देशभर में फालतू में हांफते देखा जा सकता है, देश का हिसाब रखते नहीं.

सीबीआई का अंदरूनी झगड़ा डराने वाला है क्योंकि ऊपर के दोनों अफसरों ने एकदूसरे पर करोड़ों की रिश्वत लेने का आरोप लगाया है. उम्मीद यह की जाती रही है कि सीबीआई ही बेईमानों को पकड़ेगी पर पिछले 4 डायरैक्टरों पर तरहतरह के इलजाम लग चुके हैं. अब हालात ये हो गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से दोनों ऊपरी अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर दिया है. जो नया अफसर सरकार ने बनाया है वह कोई फैसले नहीं ले सकता. सरकारी तोता अब पिंजरा तोड़ चुका है पर उस के पर तो सैकड़ों डोरों से बंधे हैं जो अपनी मनमरजी का काम कराते रहे हैं. साफ है कि जितने छापे सीबीआई ने पिछले 4 सालों में मारे हैं सारे सरकार ने बदले की भावना और विपक्षियों की टांग तोड़ने के लिए मरवाए हैं और सीबीआई ने बढ़चढ़ कर फायदा उठाया है.

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