जाति का सवाल किस तरह गहराई तक लोगों के दिमाग में ठुंसा हुआ है उस का एक नमूना दिखा जबलपुर, मध्य प्रदेश में जहां दुर्घटना में घायल 2 औरतों को इलाज कराने के लिए अस्पताल लाया गया तो मरीजों के रिश्तेदारों ने डाक्टर की पिटाई कर डाली क्योंकि वह शैड्यूल कास्ट था और मरीज ऊंची जाति का. मरीज ने कुछ कहा या नहीं, पर रिश्तेदारों को मरीजों की तकलीफ मंजूर है, नीची जाति का छुआ जाना मंजूर नहीं है.

जो लोग कहते हैं कि देश में जाति सिर्फ आरक्षण की वजह से बची है वे या तो अनजान हैं या जानबूझ कर अनजान बने रहना चाहते हैं. जाति का जहर इस तरह लोगों के दिमाग में भर दिया जा रहा है कि वे इसे जिंदगी से ज्यादा बड़ा मानने लगे हैं. यह पहले कम दिखता था क्योंकि तब ऊंची और नीची हर जाति के रास्ते ही अलग थे. समाज बुरी तरह बंटा हुआ था.

आज नीची जातियों को ऊंची जातियों के रास्तों पर चलने का हक है, बसों में बैठने का हक है, रेल, हवाईजहाज में बैठ सकते हैं, हाकिम की कुरसी पर भी बैठ सकते हैं. हजारों डाक्टर अपना तनमन लगा कर लोगों को ठीक कर रहे हैं.

लेकिन इस के बावजूद एक बड़ा तबका लगातार लगा हुआ है कि जाति को भुलाया न जाए. अमेरिका में गोरोंकालों को अलग से पहचाना जा सकता है. यहां शक्लसूरत से ऊंचेनीचे को पहचानना मुश्किल है और इसलिए तरहतरह के टोटके अपनाए जा रहे हैं कि जाति का पता चलना लगता रहे.

ऊंची जाति वालों को खास देवीदेवता दे दिए गए हैं और नीची जातियों के लोगों ने हंसहंस कर बेवकूफ बन कर उन्हीं देवताओं के दासों, बिगड़ैलों, पालतू पशुओं, नाजायज संतानों की पूजा करनी शुरू कर दी?है. कहीं उन ऊंचेनीचे देवताओं की गढ़ी हुई कहानियां सुनासुना कर जाति का जहर और ज्यादा गहरा कर दिया कि लोग अपनों को मरने देने को या मारने को तैयार हैं पर जाति पर धब्बा लगे, इस के लिए तैयार नहीं हैं.

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