महाराष्ट्र और उस से पहले हरियाणा के चुनावों ने एक बात साबित कर दी है कि जहां भारतीय जनता पार्टी की मशीनरी एक हार के बाद फिर से मेहनत करने पर लग जाती है वहीं कांग्रेस की मशीनरी एक जीत के बाद यह प्लानिंग करने लगती है कि अगली जीत के बाद कौन कैसा लाभ उठाएगा. कांग्रेस जब हार जाती है तो मुंह छिपा कर बैठ जाती है.
भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में ही नहीं, उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में हार के बाद भी हार नहीं मानी और दोगुनेचौगुने जोश से काम किया. कांग्रेसी जश्न के नशे में डूबे रहे. भारतीय जनता पार्टी को यह गुण धार्मिक संगठनों से मिला है. हर धर्म की खासीयत यही होती है कि उस के अनुयायी हर अत्याचार और पराजय के बाद फिर लड़ने को तैयार हो जाते हैं. लगभग हर धर्म की किताब में ऐसी कहानियां हैं जिन में उन के भगवानों को एक हार मिली तो वे दूसरी लड़ाई के लिए तैयार हो गए.
राजाओं के साथ अकसर यह नहीं होता था. राजा एक युद्ध हारने के बाद अकसर किसी बीहड़ में खो जाता था. राजा राम, राजा युधिष्ठिर के साथ यही हुआ. उन का साथ देने वाला धर्म तो जिंदा रहा पर राजाओं के अवशेष नहीं बचे. कांग्रेस के साथ यही हो रहा है. कोई आंदोलन, कोई पार्टी अपनेआप नहीं चल सकती. यह ऐसी रेल है जिसे लगातार कोयला चाहिए चलाते रहने के लिए. एक बार गति पकड़ने के बाद लोको ड्राइवर डाइनिंग टेबल पर बैठ कर मजे नहीं ले सकता. उसे समय पर कोयला चाहिए होगा और समय पर इंजन के बौयलर में डालना होगा.
कांग्रेसियों ने ऐसे लोगों को पाल रखा है जो ट्विटर (अब एक्स) पर एक मैसेज रोज डाल कर या सप्ताह में एक बार किसी अखबार में कौलम लिख कर आराम से बैठ जाते हैं. भारतीय जनता पार्टी के पास हर मंदिर में और उस से पलते हुए लोगों की विशाल भीड़ है जो उस के लिए रातदिन काम करने को तैयार है.
2024 के लोकसभा चुनावों के पहले राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो’ नारा दिया तो सोते-आराम फरमाते कांग्रेसियों को कुछ करनेधरने को मिला. 2024 में मिली आंशिक सफलता से उन्हें फिर लड्डू खाने की आदत पड़ गई, बिना यह सोचे कि ये लड्डू बनाएगा कौन? इंडिया ब्लौक की ज्यादातर पार्टियों का यही हाल है.
महाराष्ट्र में वैसे भारतीय जनता पार्टी जीती है तो शिवसेना शिंदे और अजित पवार के बलबूते पर. अगर ये दोनों अपनी राजनीति के अस्तित्व के लिए नहीं लड़ रहे होते तो देवेंद्र फडणवीस की हालत पेशवाओं जैसी होती जो अंगरेजों के रहमोकरम पर 100-150 साल रहे. 1818 में तीसरे युद्ध के बाद ब्राह्मण पेशवाओं ने राजकाज अंगरेजों को सौंप दिया था और जो राज कुर्मी-क्षत्रिय शिवाजी ने उन्हें दिया था, उसे नष्ट कर दिया. अब भी पेशवा देवेंद्र फडणवीस, मराठे शिंदे और अजित पवार के सहारे ही जीते हैं.