नीलम की शादी को अभी 3 महीने ही हुए थे. तब से वह सावन के महीने में अपने मायके आई थी. रक्षाबंधन पर अपने 2 छोटे भाइयों
को राखी बांधने के बाद उसे अपनी ससुराल लौट जाना था. रक्षाबंधन 10 अगस्त को था. 3 अगस्त को जब वह घर में मां के साथ कामकाज में हाथ बंटा रही थी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. वह काम छोड़ कर कमरे में गई और मेज पर रखे मोबाइल को उठा कर देखा. फोन उस के पति बाबूराम का था. उस ने तुरंत काल रिसीव की.
उस के हैलो कहते ही बाबूराम की आवाज सुनाई दी, ‘‘नीलम, तुम दातागंज आ जाओ, मैं तुम्हें गोपालसिद्ध का मेला दिखा कर लाऊंगा.’’
नीलम ने बहाना बना कर उसे टालना चाहा तो बाबूराम बोला, ‘‘देखो नीलम, ऐसा मौका बारबार नहीं आएगा, इसलिए आ जाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’ बाबूराम ने अधिकार भरे शब्दों में अपनी बात कह कर जगह बता दी और फोन काट दिया.
नीलम को बाबूराम पर बिलकुल भरोसा नहीं था. 3 महीने में वह उसे जितना जान पाई थी, उस से उसे लगता था कि बाबूराम उसे पसंद नहीं करता. लेकिन वह उस का पति था और जिद कर रहा था, इसलिए जाना उस की मजबूरी थी.
उस ने अपनी मां को बताया और फिर अपनी छोटी बहन संगीता को साइकिल पर बैठा कर दातागंज चली गई.
जब देर शाम होने पर भी नीलम संगीता के साथ वापस नहीं लौटी तो उस की मां को चिंता हुई. मां ने यह बात अपने पति हरभजन को बताई तो उन्होंने नीलम और संगीता की खोजबीन शुरू की. नीलम की ससुराल में फोन कर के पता किया तो वे दोनों वहां भी नहीं गई थीं. बाबूराम भी घर पर नहीं था.