शाम के करीब साढ़े 7 बजे का वक्त था. मोहन कुमार खंडेलवाल पटना स्थित अपने होटल में ही थे तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. वह काल एक अनजान नंबर से आई थी. जिस तरह वह अन्य काल्स को रिसीव करते थे, उसी तरह उस को भी रिसीव करते हुए जैसे ही हैलो कहा तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तुम्हारे बेटे शिवम का कार सहित अपहरण कर लिया है.’’

शिवम उन का 14 साल का बेटा था, जो पटना के बीरचंद पटेल रोड स्थित न्यू पटना क्लब में टेनिस खेलने जाता था. कार उन का ड्राइवर गिरीश पाठक चला कर ले जाता था. बेटे के अपहरण की बात सुन कर मोहन कुमार के तो जैसे होश ही उड़ गए. अपहर्त्ता बेटे को कोई हानि न पहुंचा सकें इसलिए वह बड़ी ही विनम्रता से बोले, ‘‘आप मेरे बेटे को छोड़ दीजिए, बदले में आप मुझ से जो भी मांगेंगे, मैं दे दूंगा.’’

‘‘हमें 2 करोड़ रुपए चाहिए. पैसों का इंतजाम करने के लिए कल दोपहर 2 बजे तक का वक्त दिया जाता है. तुम तब तक पैसों का इंतजाम कर लो और अगर तुम ने पैसे नहीं दिए या फिर कोई चालाकी दिखाने की कोशिश की तो तुम बेटे से हाथ धो बैठोगे.’’ अपहर्त्ता ने चेतावनी दी.

‘‘मैं पैसे दे दूंगा लेकिन बेटे को कुछ नहीं कहना. हमें बेटे से बात तो करा दो ताकि हमें कुछ तसल्ली आ जाए.’’ मोहन कुमार विनम्रता से बोले. बेटे की आवाज सुनने के लिए वह फोन को कान से चिपकाए रहे.

कुछ देर बाद उन के कान में बेटे की आवाज आई, ‘‘हां पापा, मैं अंकल के कब्जे में हूं.’’

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