पिछले वर्ष की बात है. अचानक मेरे बेटे, जिस की उम्र 48 साल थी, की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई. हम लोग समझ ही नहीं पाए यह सब कैसे हो गया? हम सब चेतनाशून्य हो गए. दिमाग काम नहीं कर रहा था.
तभी हमारी बहूरानी बोली, ‘‘मैं आप की बहू नहीं बेटा हूं.’’ और वास्तव में उस ने अपनी बात को साबित कर के दिखाया और मेरे बेटे के काम को अच्छी तरह संभाल लिया.
बच्चों को भी वह बहुत अच्छी तरह से पाल रही है. यह देख कर मेरे पति कहते हैं कि हमें बहू के रूप में दूसरा बेटा मिल गया है.  
उमा सुशील, गे्रटर कैलाश (न.दि.)
 
उस दिन बाजार से घर लौटते हुए हम ने एक अजीब दृश्य देखा. बाग और सड़क के बीच कंटीले तारों की बाड़ लगाई गई है. एक झबरा कुत्ता तारों के बीच से निकलने के चक्कर में तारों में बुरी तरह उलझ गया था. वह बारबार इधर से उधर कूदता, यहां तक कि उस के बाल इतने जकड़ गए कि वह हिल भी नहीं सकता था. बाग में खेलने वाले छोटेछोटे बच्चे असहाय से खड़े थे.
तभी कुछ बड़े लड़के हाथ में कैंची और दूध का कटोरा लिए वहां पहुंच गए. उन्होंने पुचकार कर कुत्ते के बालों को धीरेधीरे काटना शुरू किया. वे कुछकुछ डर भी रहे थे. जल्द ही कुत्ता तारों से मुक्त हो गया. पर वह दूध की दावत स्वीकार न कर चुपचाप पूंछ दबा कर एक ओर सरक लिया. इस तरह एक बेबस जीव की मदद कर उन बच्चों ने वाकई सराहनीय कार्य किया.
छोटे बच्चे ताली बजा कर खुश हो रहे थे और बड़े बच्चों के मुख पर संतोष का भाव था.
मनोरमा दयाल, नोएडा (उ.प्र.)
 
बात उस समय की है जब मैं बहुत छोटी थी. मैं मम्मीडैडी के साथ शाम को बाजार घूमने गई थी. घूमतेघूमते एक दुकान पर वे दोनों सामान खरीदने लग गए. साथ की दुकान में मैं नेलपौलिश लेने की जिद करने लगी.
वे अपना सामान खरीद कर घर वापस जाने की तैयारी में थे. उन्होंने मुझे समझाने की काफी कोशिश की लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ी रही. उन्होंने सोचा कि मैं उन की बात मान कर उन के पीछे आ जाऊंगी. लेकिन मैं जिद कर के वहीं खड़ी रही और रोती रही.
तभी एक सज्जन वहां आए और मेरे रोने का कारण पूछा. मैं ने उन्हें रोतेरोते सबकुछ बता दिया. उन्होंने मुझ से मेरे घर  का पता पूछा और मुझे घर छोड़ दिया. दूसरी तरफ मेरे मम्मीडैडी का बाजार में मुझे ढूंढ़तेढूंढ़ते बुरा हाल था. जब वे बेहाल हो कर घर पहुंचे तो मुझे घर में सहीसलामत पा कर बहुत खुश हुए.
पूर्णिमा शर्मा, बिलासपुर (हि.प्र.) 
 

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