बात उन दिनों की है जब अंटार्कटिका से भारतीय टीम लौट रही थी. केपटाउन और जोहांसबर्ग आने पर छुट्टी होने के कारण बाजार बंद थे. मैं लौटते समय किसी के लिए कुछ भी खरीद नहीं पाया. दोपहर 2 बजे की फ्लाइट थी जोहांसबर्ग से मुंबई, इसलिए 10 बजे होटल से निकल कर 1 बजे तक माइग्रेशन की प्रक्रिया पूरी कर ली थी. अभी उड़ान के लिए 1 घंटे का समय था इसलिए टीम के लोग जल्दीजल्दी एअरपोर्ट में दुकानों की तरफ लपके. मैं दुकान में खरीदारी में इतना मशगूल हो गया कि पता ही नहीं चला कि कब साथ के लोग फ्लाइट की ओर जा चुके थे. अपनेआप को अकेला पा कर मैं भी तेजी से निकला और दिशाहीन बढ़ा चला जा रहा था. तभी एक भारतीय युगल ने टोका कि मुंबई की फ्लाइट पकड़नी है क्या? मैं ने कहा, ‘‘हां.’’ उन्होंने कहा कि मैं गलत दिशा में जा रहा हूं, मुंबई टर्मिनल का रास्ता दूसरी तरफ है. मैं दोबारा वापस मुड़ा और तेजी से काउंटर की ओर दौड़ा, काउंटर पहुंच कर देखा कि मेरा बोर्डिंग पास गायब था. अब ऐसी असहज स्थिति के चलते मेरे मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं. तभी मेरे नाम का एनाउंसमैंट हुआ कि मेरा बोर्डिंग पास काउंटर पर है. अपना पासपोर्ट दिखा कर काउंटर पर उपस्थित अधिकारी से अपना बोर्डिंग पास हासिल किया. उस ने कहा कि गुम हुआ बोर्डिंग पास मिल गया, जिसे कोई काउंटर पर जमा कर गया था. वरना मैं घोर संकट में पड़ सकता था. अब मैं तेजी से विमान में पहुंचा. मेरे इंतजार में फ्लाइट लेट हो रही थी.

डा. घनश्याम सिंह, देहरादून (उ.खं.)

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मेरी सहेली की शादी थी. लड़की वाले पंजाबी और लड़के वाले सिख थे. फेरे लेने की रस्म दोपहर में गुरुद्वारे में तय हुई. प्रीतिभोज अलग स्थान पर रखा गया था. जब फेरे पूरे हुए तो दूल्हा सपरिवार अलग गाडि़यों में व दुलहन अलग से सजी हुई गाड़ी में प्रीतिभोज वाले स्थान के लिए रवाना हो गए. सभी मेहमानों व दूल्हे के पहुंचने के काफी देर बाद भी जब दुलहन की गाड़ी नहीं पहुंची तो कार ड्राइवर को फोन लगाया गया. पता चला कि वह किसी दूसरे विवाह में पहुंच गया. दुलहन के सिर पर घूंघट था, इसलिए उसे बाहर का कुछ दिखा नहीं और न ही दूसरों को उस का चेहरा दिख पाया.

भाविनी डेम्बला, जयपुर (राज.)

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