मेरे मित्र के 3 वर्षीय पुत्र मानू को दूसरों की उंगली अपने मुंह में डाल कर काटने की बुरी आदत थी. एक दिन मैं अपने 7 वर्षीय भतीजे हर्ष के साथ वहां गया तो मानू ने मेरी उंगली भी अपने मुंह में रख कर काट ली. यह देख कर हर्ष ने मेरी जेब से स्टील का पैन निकाला और उंगली के नीचे छिपा कर मानू को अपना मुंह खोलने को कहा. मानू के मुंह खोलते ही हर्ष ने अपनी उंगली उस के मुंह में रख दी और मुंह बंद होने से पहले ही अपनी उंगली निकाल कर पैन मुंह में ही छोड़ दिया. मानू ने 2-3 बार पैन में दांत मारे और फिर ‘आह’ कर के छोड़ दिया. उस के बाद तो मित्र ने भी यही उपाय बारबार अपनाकर उस की यह बुरी आदत सदा के लिए छुड़वा दी.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

*

सुनीता अस्पताल में काफी दिनों से भरती थी. ठीक होने पर उसे अस्पताल से छुट्टी मिली तब वह वापस घर जाने को तैयार नहीं थी. पति ने व बेटेबहुओं ने समझाया तब भी वह जिद पर अड़ी रही. पास की मरीज महिला सुधा यह नजारा काफी देर से देख रही थी. वह सुनीता के पास आ कर बोली, ‘‘बहन, अस्पताल से सब को घर जाने की जल्दी होती है. वे खुश होते हैं. तुम्हें यह खुशी का मौका मिला, फिर भी तुम घर जाने से इनकार कर रही हो, क्यों?’’

‘‘बहन, अस्पताल में एसी का जो सुख है वह घर पर नहीं मिलेगा. मैं इस सुख से वंचित होना नहीं चाहती.’’ अस्पताल के गमगीन माहौल में भी सुनीता के उत्तर ने सब को हंसाहंसा कर लोटपोट कर दिया.

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