मैं घर का सामान लेने सदर बाजार गई. भारी बैग उठाए जब मैं वापस आ रही थी, तभी एक व्यक्ति तेजी से भागते हुए मुझ से टकराया और मैं गिर गई. मुझे गिरा हुआ देख कर भी वह व्यक्ति भाग खड़ा हुआ. तभी उस के पीछे दूसरा व्यक्ति चोरचोर कहता हुआ आया. उस ने मुझे सहारा दे कर उठाया.

मेरे घुटने से खून आ रहा था. उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप बेवजह ही जख्मी हो गई हैं.’’ वह व्यक्ति मुझे डाक्टर के पास ले गया.

मैं ने उस से कहा, ‘‘आप ने चोर को न पकड़ कर मेरी सहायता क्यों की?’’

इस पर वह व्यक्ति कहने लगा, ‘‘हमारे यहां बेरोजगारी की समस्या इतनी है कि लोग चंद रुपए कमाने के लिए चोरीचकारी पर उतर आते हैं.’’

उस अजनबी ने मुझे आटो में बिठाया. मैं ने उस को रुपए देने चाहे तो उस ने नहीं लिए. उस ने कहा कि उस ने इंसानियत का फर्ज ही तो निभाया है.      

दीपा गुलाटी

*

मैं और मेरे पति शहर में फैले डेंगू की बीमारी के चपेट में आ गए. कोई सगासंबंधी नजदीक न था प्लेटलेट की कमी से हम शारीरिक रूप से निढाल थे. मेरी अवस्था कुछ ज्यादा नाजुक हो गई थी. हिम्मत कर मेरे पति मुझे शहर के सरकारी अस्पताल तक ले आए. अस्पताल में इसी बीमारी से ग्रस्त लोगों की भरमार थी. चारों ओर आपाधापी, फाइल बनवाने की सैकड़ों औपचारिकताएं, ऊपर से वे खुद भी अस्वस्थ, जैसेतैसे मेरी फाइल बनी. मुझे बैड अलौट किया गया अस्पताल की तीसरी मंजिल पर. एक अनजान व्यक्ति स्वयं आ कर इन के हाथों से व्हीलचेयर ले कर मुझे वार्ड तक छोड़ गया.

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