जिसे लोग आरएसएस और उस के मुखिया मोहन भागवत में आता बदलाव बता रहे हैं, वह दरअसल पौराणिक वादियों की पुरानी चाल है कि जिस से जीत न पाओ, उसे साम, दाम, दंड, भेद, छल, कपट वगैरा के जरिए या तो मिटा दो और मिटा न पाओ तो गले लगा कर उदारता व समरसता का ढोल पीटने लगो. मुंबई में आयोजित 75वां दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार समारोह इस परंपरा का अपवाद नहीं था जिस में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अभिनेता आमिर खान को पुरस्कार प्रदान कर अनुग्रहित किया. कुछकुछ लोगों का मानना है कि खुद भागवत इस से अनुग्रहित हुए.
अब आमिर खान के हाथ पर लिखा अराष्ट्रवादी होने का ठप्पा हट गया है और वे भी राष्ट्रवादी हो गए हैं. आजकल हर कोई राष्ट्रवादी दिखने की दौड़ और होड़ में है और इस की अनिवार्य शर्त है नए हिंदूवादी एजेंडे पर एतराज न जताना. राष्ट्रवादियों की तादाद अब और बढ़ेगी और नई मुख्यधारा से जुड़ने के लिए और भी निश्चय टूटेंगे.