मेरी 80 वर्षीया बूआजी 21 वर्षों से एकादशी व्रत रखती आ रही थीं. पर इस वर्ष व्रत रखते हुए उन को कमजोरी महसूस होने लगी थी. शाम तक चक्कर आने लगते व चाल में थोड़ा कंपन भी लगता था. ऐसी स्थिति में उन के बहूबेटे ने व्रत न रखने परजोर डाला. बूआजी ने

21 वर्षों से परिचित अपने पंडितजी से बात की जिन के कहने पर व्रत रख रही थीं. उन्होंने कहा एकादशी का उद्यापन किए बिना व्रत बंद करने से व्रत स्वीकृत नहीं माने जाएंगे.

उद्यापन के लिए पंडितजी ने 24 लोटे, 24 सुपारी, 24 जनेऊ, फल आदि के साथ स्वयं के लिए वस्त्रों की व दक्षिणा की बात की. विधि के तहत 24 लोटों को व्रती व्यक्ति को ही जल से भर कर पूजास्थल पर रखना था. व्रती बूआजी लोटों में पानी डालते वक्त चक्कर खा कर गिर पड़ीं और उन का माथा लोटे के किनारे से जा टकराया. कृषकाय बूआजी लहूलुहान हो, बेहोश हो गईं. तत्काल उन्हें पास के एक नर्सिंगहोम में ले जाया गया.

व्रत करने पर तथा समाप्ति पर भी पंडितजी की जेब भरती है. कब तक आंखें बंद कर ऐसी आस्थाओं को ढोया जाता रहेगा.    

मीता प्रेम शर्मा

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मेरी ससुराल में शादी के बाद वरवधू पैदल गांव से बाहर मंदिर में जाते हैं. पुजारीजी का आशीर्वाद लेते हैं. प्रसाद के रूप में पुजारीजी, वधू के पल्ले में फल डालते हैं. मान्यता है कि फलों की संख्या के  हिसाब से ही घर में लड़का या लड़की पैदा होते हैं. बेल का फल प्राप्त हुआ, तो समझो लड़का पक्का है. मेरे पल्ले में पुजारीजी ने 3 फल डाले, जिन में से 2 फल बेल के थे. सासूमां यह देख कर बहुत खुश हुईं.

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