मैं अमृतसर मेल टे्रन से भोपाल से मुंबई आ रहा था. दोपहर बाद मालूम हुआ कि डब्बे में बत्तियां नहीं जल रही हैं. रात कैसे बिताएंगे, हम लोग इस बात पर चर्चा कर रहे थे. कई रेल कर्मचारी वहां मौजूद थे. वे बोले, ‘‘अगले स्टेशन पर टे्रन 15 मिनट रुकेगी. वहां स्टेशन मास्टर से शिकायत करने से आप की समस्या दूर हो जाएगी.’’
इस पर कई यात्री बोल पड़े, ‘‘शिकायत करने से कुछ नहीं होता.’’
स्टेशन आया. वे कर्मचारी उतर गए. मगर हम में से कोई यात्री नीचे न उतरा. ‘कुछ होने वाला नहीं है’ कह कर सब अपनीअपनी जगह बैठ गए.
मैं नीचे उतरा और शिकायत की. स्टेशन मास्टर ने कहा, ‘‘आप जाइए, मैं कार्यवाही करता हूं.’’
थोड़ी देर में बत्तियां जलने लगीं. एक कर्मचारी आ कर मुझ से पूछ कर गया, ‘‘सब ठीक है न?’’
प्रफुल्ल आर शाह, मुंबई (महा.)
मेरी प्रिय सहेली को हर बात बहुत बढ़ाचढ़ा कर बोलने की आदत है. जब मैं पहली बार उस के पति से मिली, उस ने मेरे बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मेरी सहेली के तो ठाट हैं, इस के पास 2 कारें हैं, 2 फ्लैट हैं.’’
मैं ने मौका मिलते ही उस से कहा, ‘‘अरे यार, तू ने तो अपने हसबैंड से मेरी सब चीजों को ‘डबल’ कर बताया, मुझे तो बहुत डर लग रहा है कि कहीं तू ‘डबल’ करते हुए मेरे 2 बच्चों को 4 और 1 पति को 2 पति न बता बैठे.’’
मेरी इस चुटकी का ‘सकारात्मक’ प्रभाव पड़ा कि मेरी सहेली ने तब से अपनी आदत पर कंट्रोल करना शुरू कर दिया.
संध्या, बेंगलुरु (कर्नाटक)
दिल्ली में मेरा घर एक छहमंजिली इमारत में है. मैं नीचे की मंजिल पर रहती हूं. मेरे से ऊपर वाली मंजिल पर रहने वाले मेरे पड़ोसी अपनी बालकनी से कूड़ा नीचे फेंक देते थे जो सीधा हमारे दरवाजे के सामने आ कर गिरता था.
मैं ने उन से कई बार इस विषय में निवेदन किया पर वे हर बार मना कर देते कि हम इस तरह से कूड़ा नहीं फेंकते हैं. मैं ने हार मान कर उन से कहना बंद कर दिया.
एक दिन कूड़ा ऊपर से फिर गिरा तो मैं बाहर गई. मुझे उस में गैस सिलैंडर रिफिल की परची दिखी. उस में उन्हीं का नाम और पता लिखा था.
जब मैं ने उस दिन उन से कूड़ा न डालने को कहा तो उन्होंने अपनी आदत के मुताबिक कहा कि यह कूड़ा उन के यहां से नहीं फेंका गया है. पर जब मैं ने उन्हें कूड़े में से मिली वह परची दिखाई तो वे मना न कर सके. उस दिन के बाद से हमारे घर के सामने ऊपर से कूड़ा गिरना बंद हो गया.
राखी राज, लोधी रोड (नई दिल्ली) 

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