मैं पोस्ट औफिस गई थी. मुझे पत्रों के लिफाफे पर ऐड्रैस लिखने थे. मैं ने हर लिफाफे पर ऐड्रैस लिखा, टिकट लगाया और वहां से चल पड़ी. लिफाफे पोस्ट बौक्स में डाल कर एटीएम से पैसे निकालने गई. तब ध्यान आया, मेरा पर्स तो पोस्ट औफिस की बैंच पर रह गया.
मैं वापस पोस्ट औफिस पहुंची. इधरउधर देखा तो लाइन में खड़े लोगों ने बताया, ‘‘दीदी, आप का पर्स चाय वाले लड़के को मिला था. उस ने पोस्टमास्टर साहब को दे दिया.’’
मैं पोस्टमास्टर साहब के पास पहुंची तो उन्होंने पर्स दे दिया. मैं ने तब उस चाय वाले लड़के को ढूंढ़ा, उस को पास बुला कर इनाम देना चाहा तो उस ने पैसे या इनाम लेने से इनकार कर दिया और बोला, ‘‘यह तो मेरा फर्ज था.’’ और दौड़ता चला गया. 
इंदुमती पंडया, राजकोट (गुज.)
 
बात पुरानी है. सुबह 5 बजे मेरे पति फैक्टरी के काम के लिए जीप से रामपुर से बरेली जा रहे थे. जीप ड्राइवर चला रहा था. रास्ते में एक ट्रक से जीप का ऐक्सिडैंट हो गया जिस में ड्राइवर तो उछल कर नीचे गिर गया व बेहोश हो गया, मेरे पति लुढ़क कर स्टीयरिंग के बीच में फंस गए. जीप पिचक गई.
वहां पर सिर्फ एक ढाबा था जिसे  4 भाई चलाते थे. उन्होंने जीप की बौडी कटवा कर मेरे पति को बाहर निकाला. मेरे पति के दाहिने हाथ व पैर की काफी हड्डियां टूट गई थीं. बेहोश होने से पहले उन्होंने बरेली का पता, जिन से मिलना था, बता दिया. 
उन लोगों ने मेरे पति को बरेली तक छोड़ा. आज मैं सोचती हूं कि अगर वे चारों भाई मेरे पति की मदद नहीं करते तो वे शायद आज दुनिया में न होते.
आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)
 
मेरे पति को अपने व्यापार के सिलसिले में दुर्गापुर जाना था. चूंकि उन का जाना बेहद जरूरी था, इसलिए ड्राइवर नहीं मिला तो वे स्वयं ही कार चला कर जाने को तैयार हो गए.
हावड़ा से लगभग 40-45 किलोमीटर गए होंगे कि 80-90 की गति से चल रही उन की कार का अगला दाहिना चक्का फट गया और कार सड़क के बीच के डिवाइडर से टकरा गई. वे सामने के विंडग्लास को तोड़ते हुए डिवाइडर की दूसरी तरफ छिटक कर दूर जा गिरे.
स्थानीय 2-3 युवकों ने मेरे पति को उठाया. गाड़ी के अंदर से उन के जरूरी कागजातों का बैग और मोबाइल फोन भी ला कर दिया. उन लड़कों ने मेरे पति को आननफानन हावड़ा के एक अस्पताल में दाखिल करवा दिया और हमें सूचना दी. आज भी, जब मैं उन लड़कों के बारे में सोचती हूं, तो श्रद्धा से मेरा सिर झुक जाता है.
अर्चना अग्रहरि, हावड़ा (प.बं.) 
 

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