गजेंद्र सिंह सोलंकी राजस्थान ही के नहीं, देश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक हैं. मैं अपने पुत्र के पास फरीदाबाद आया हुआ था और वहां सूरजकुंड में चल रहे मेले में अशोक चक्रधर के संयोजन में एक कविसम्मेलन में गजेंद्र सिंह सोलंकी जी के नाम का विज्ञापन पढ़ कर परिवार के साथ मैं कवि सम्मेलन में पहुंचा.

अशोक चक्रधर से मैं ने पूछा, ‘‘गजेंद्र सिंह सोलंकी जी कब पधारेंगे?’’

वे एक युवक की ओर इशारा कर के बोले, ‘‘यही तो हैं सोलंकी जी.’’ हमारे सोलंकी जी तो 80 वर्ष पार कर चुके हैं व उन के बीसियों कवि सम्मेलनों का संयोजन व उन के कई सम्मान समारोहों का आयोजन मैं स्वयं करा चुका था. सो, मैं दंग रह गया. खिसियाने स्वर में मैं ने अपने सभी परिवार के सदस्यों को बताया कि उसी नाम के ये युवा कवि हैं.  

गजेंद्र जैन

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हमारे एक परिचित के बेटे का रिश्ता तय हो गया था. एक दिन उन का फोन आया कि विवाह की तिथि 17 अक्तूबर निश्चित हुई है. 16 अक्तूबर को लेडीज संगीत व मेहंदी की रस्म होगी. वे बोले कि सोच रहा हूं कि 15 अक्तूबर को कौकटेल पार्टी कर लूं. मेरे पति बोले, ‘‘ठीक है, पर

14 अक्तूबर को हम जैसे लोगों के लिए तुम नीबू पार्टी भी कर दो.’’

मेरे पति की बात सुनते ही वे बहुत हंसे और जब उन्होंने मुझे यह बात बतलाई तो मुझे भी बहुत हंसी आई.   

अरुणा रस्तोगी

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बात उन दिनों की है जब हम लोग नएनए मुंबई में सांताक्रुज रहने गए थे. मेरी सासूजी राजस्थान से आने वाली थीं. सो, मैं ने एक नई नौकरानी रखी थी. एक दिन मैं बाहर खरीदारी करने गई थी. घर में उस के सिवा कोई नहीं था. एक भद्र महिला ने दरवाजा खटखटाया. नौकरानी के खोलने पर उस ने अपनेआप को मेरी छोटी बहन, जो कोलकाता में रहती थी, बतलाया. नौकरानी ने उसे डाइनिंगरूम में बैठाया और चाय बनाने रसोई में चली गई.

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