मैं और मेरे पति अपने बच्चों के साथ इंदौर से अकलेश्वर ट्रेन द्वारा आ रहे थे. बीच में एक स्टेशन पर एक 50 वर्षीय बुजुर्ग, पायजामाकुरता पहने हुए और पेट पर 6 इंच चौड़ा कपड़ा बंधे हुए, अपनी पत्नीबच्चे के साथ डब्बे में आए. उन की पत्नी ने कहा, ‘‘औपरेशन करवाना है, सहायता कीजिए.’’
मेरे पति ने 100 रुपए दिए. सभी यात्री सहायता राशि दे रहे थे. वे आगे दूसरे कोच में चले गए.
सीट के सामने एक बुजुर्ग दंपती बैठे सब देख रहे थे. तभी उन्होंने कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं 2 साल से इसी हालत में इन को देख रहा हूं सहायता मांगते हुए. पता नहीं इन का औपरेशन कब होगा. ये दिनदहाड़े आप जैसों को ठगते रहते हैं.’’
कमला चौहान
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मेरे पिताजी दिल्ली में डीटीसी बस में दिलशाद गार्डन से लापजत नगर जा रहे थे. वे सब से आगे ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठे हुए थे. चूंकि डीटीसी बसों में कंडक्टर सब से पीछे रहता है, सो उन्होंने एक लड़के को 100 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘बेटा, एक 15 रुपए का टिकट मेरे लिए ले आना.’’
वह लड़का 100 रुपए का नोट ले कर पीछे कंडक्टर के पास गया और जैसे ही बस की रफ्तार कम हुई, बड़े आराम से नीचे उतर गया.
पिताजी के साथसाथ सभी यात्री इस दिनदहाड़े लूट की हरकत देख आश्चर्यचकित रह गए.
राकेश घनशाला
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मैं अपने पति के साथ ट्रेन में सफर कर रही थी. डब्बे में भीड़ थी. दिन का समय होने के कारण एकएक बर्थ पर सामर्थ्य से अधिक लोग बैठे थे. कुछ लोग खड़े थे और कुछ आजा भी रहे थे.