हमारी बालकनी के निचले हिस्से में कबूतर ने अंडे दिए. उस में से बच्चे निकल आए. ये सारी प्रक्रिया मैं और मेरा 4 साल का बेटा रोज देखते और उन के बारे में बातें करते. कबूतर का वह बच्चा बड़ा होता गया. उस के छोटेछोटे पंख निकलते रहे और एक दिन वह उड़ गया. जब मेरे बेटे ने मुझ से कबूतर के बच्चे के बारे में पूछा तो मैं ने उसे बताया कि वह तो उड़ गया. तब वह बड़ी देर तक सोचते हुए बोला, ‘‘ठीक है मम्मी, जब मेरे भी पंख आ जाएंगे तो मैं भी उड़ जाऊंगा.’’ यह सुन कर मैं ठहाका लगा कर हंस पड़ी.
बीना, गोल मार्केट (दिल्ली)
मेरा ढाई वर्षीय नाती अक्षत बहुत नटखट और हाजिरजवाब है. उसे मिट्टी खाना अच्छा लगता है. हम उसे रोकते हैं तो वह छिप कर खाने की कोशिश करता है. एक दिन वह दीवार खुरच कर खा रहा था. मुझे आते देख कर डर गया और पास की दीवार पर बैठी छिपकली को दिखा कर अपनी तोतली आवाज में कहने लगा, ‘‘नानी, मैं ने नहीं, उछ ‘छुपली’ ने मिट्टी खाई है.’’ उस की मासूम सफाई और भोली सूरत पर हम सब हंस पड़े.
निर्मला राम, पटना (बिहार)
एक दिन मैं अपने कमरे में बच्चों को पढ़ा रही थी. देवरानी खाना बना रही थी. सासूमां मेरी देवरानी की 3 साल की बेटी रोशनी को दुलार कर रही थीं. वे गा रही थीं : चल मेरी चक्की शानोशान, आटा पीसना मेरा काम, पीसूंगी, पिसवाऊंगी, रोटियां पकाऊंगी, भैया को खिलाऊंगी, भैया जाएगा पढ़ने, डाक्टर बन कर आएगा. इस पर रोशनी बोली, ‘‘दादीमां, मैं रोटी नहीं पकाऊंगी, बड़ी मम्मी की तरह पढ़ कर मैडमजी बनूंगी.’’ आंगन में जितने लोग थे, ठहाके लगाने लगे.
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