हमारे घर में बहुत दिनों से प्रथा चली आ रही थी कि घर में कोई भी शुभ कार्य संपन्न करने से पहले ‘कुलदेवता’ की पूजा होती और उस पूजा में कुलदेवता को एक सफेद ‘भेड़’ की बलि दी जाती थी.  मेरी मां और पिताजी देवर और ननद की शादीब्याह से ले कर हम बहनों के मुंडन तक कुलदेवता को सफेद भेड़ की बलि देते रहे. जब दीदी की शादी की बारी आई, पिताजी 15 दिन पहले ही सब काम छोड़ कर सफेद भेड़ खोजने निकल गए. कुछ दिनों के बाद पिताजी बहुत बीमार हो कर खाली हाथ वापस आ गए. पिताजी की तबीयत इतनी खराब हो गई कि उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा.

इधर घर में बेटी का ब्याह उधर अस्पताल में पिताजी की नाजुक स्थिति. मां से नहीं रहा गया. पिताजी की बिगड़ती हालत देख, मां मन में कुछ सोच कर पिताजी से बोलीं, ‘‘मैं ने सफेद भेड़ का इंतजाम कर लिया है. अब आप को कुछ करने की जरूरत नहीं. आप जल्दी से ठीक हो जाइए.’’ पिताजी आश्वस्त हो गए और शादी तक धीरेधीरे स्वस्थ हो कर घर आ गए.  मां ने सफेद भेड़ की जगह सफेद मोम का भेड़ कुलदेवता को अर्पण कर नई शुरुआत की.

डा. स्वेता सिन्हा, मैथन (झारखंड)

 

मेरे देवर की शादी थी. जब दुलहन को ले कर बरात वापस आई तो भद्रा लग चुकी थी. मेरी सास ने कहा कि इस लगन में वधू प्रवेश अशुभ होता है. इसलिए नवदंपती को होटल में ठहरा दिया गया. शादी का सामान भी होटल में था. रात में जब वे सो रहे थे तो सारा कीमती सामान चोरी हो गया. पुलिस भी कुछ नहीं कर पाई. उस शादी को हम आज तक नहीं भूले हैं.

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