अंत नहीं, आरंभ

72 घंटे अवसाद के समंदर में डुबकियां लगा कर लालकृष्ण आडवाणी जब यथार्थ के संसार में वापस आए तो उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ. निचोड़ यह था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किए जाने के उन के विरोध पर कोई हाहाकार नहीं मचा, जमाना जनसंघ का नहीं संघ का है और उगते सूरज को सभी हमेशा की तरह आज भी सलाम करते हैं.

डूबने से बचने और युद्धरत रहने के लिए जरूरी यह है कि पार्टी में रह कर ही समर्थन या विरोध किया जाए, लिहाजा वे रायपुर में नरेंद्र मोदी के साथ उन की झूठी तारीफ करते दिखे तो समझने वाले समझ गए कि असल लड़ाई तो अब शुरू हुई है. आडवाणी पलायन नहीं करेंगे और मध्य प्रदेश व राजस्थान से मिल रहे अच्छे समाचारों का श्रेय भी लेंगे. उन का मायूस हो चला खेमा भी प्रसन्न है कि उम्मीद अभी बाकी है.

अम्मा छाप पानी

तमिलनाडु में अम्मा ब्रैंड पानी 10 रुपए बोतल मिल रहा है जो दूसरे ब्रैंड्स के मुकाबले सस्ता है, लिहाजा ज्यादा बिकेगा. इस पानी में कोई अतिरिक्त खूबी नहीं है सिवा इस के कि यह लगभग मुख्यमंत्री जे जयललिता छाप है. दक्षिण भारत में अम्मा संबोधन आम है पर वहां से बाहर उत्तर की तरफ लोग अम्मा का एक ही मतलब जानतेसमझते हैं वह है जयललिता.

कई दफा साबित हो चुका है कि पानी हो या हवाई जहाज, सरकारें कारोबार नहीं कर पातीं क्योंकि बगैर सरकारी अधिकारियों के यह मुमकिन नहीं होता जो आमतौर पर भ्रष्ट होते हैं. अब जल्द ही ये अफसर पानी से पैसा बनाएंगे. व्यावहारिक तो यह होता कि सरकार मौजूदा प्रचलित ब्रैंड पर कर कम कर देती और निर्माताओं से कहती कि अपने ब्रैंड का नाम अम्मा कर दो. लेकिन सत्ताधारियों की मुहिम तो सस्ता खिलाने और पिलाने की है ताकि लोकप्रियता और वोट मिलें, इसलिए कैंटीन भी खोली जाती हैं और इडलीसांभर भी बेचा जाता है.

दुष्कर्मी मंत्री

शायद खामी राजस्थान की आबोहवा में ही है, वहां बाबा हो या नेता, बलात्कार कर डालता है. संत आसाराम सलीके से जेल में जम भी नहीं पाए थे कि एक मंत्री बाबूलाल नागर दुष्कर्म के आरोप में फंस गए. गहलोत सरकार के ये तीसरे मंत्री हैं जो इस तरह के मामले में फंसे हैं.

पीडि़ताएं अब समझदार होती जा रही हैं. वे पुलिस को दुष्कर्मस्थल का पूरा ब्यौरा दे रही हैं. मसलन, परदे के रंग, सोफे की डिजाइन और दीवार का पेंट कैसा था आदि. इस से उन की बात में दम आ जाता है. बाबूलाल नागर चुनाव के वक्त पकड़े गए हैं. लिहाजा, दिक्कत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पेश आ रही है, जो पहले से ही भारतीय जनता पार्टी और वसुंधरा राजे सिंधिया के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं. बजाय दुख में हाथ बंटाने के, मंत्री अगर दुख बढ़ाएं तो उन्हें चलता कर देने के अलावा कोई रास्ता बचता भी नहीं.

दंगा नायक

कभी पहलवानी करते रहे मुलायम सिंह ने कई सियासी दांवपेंच आजम खान को सिखाए, पर कुछ जानबूझ कर नहीं सिखाए जो अखाड़े का एक प्रचलित नियम भी है कि गुरु सबकुछ सिखाता है पर एक दांव बचा कर रखता है.

आजम खान ने अपनी ही पार्टी समाजवादी पार्टी की तरफ आंखें तरेरनी शुरू कीं तो पता चला कि दंगों में उन की भूमिका को ले कर शोध होने लगे हैं. मुसलमानों का हीरो बनने का सपना देख रहे आजम की नींद टूटी और वे हड़बड़ा कर उठ बैठे. जल्द आए और दुरुस्त आए आजम को असल सियासत अब समझ आ रही है कि इस में कोई किसी का सगा नहीं होता और जो कैरियर बनाए उस से दगाबाजी ठीक नहीं होती. रही बात दंगों की, तो उन से किसी का खास नुकसान नहीं हुआ है, हमेशा की तरह कुछ बेगुनाह, आम लोग मारे गए हैं जिस पर बेवजह खून जलाने से कोई फायदा नहीं.

 

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