ओला और उबर आमदनी बढ़ाने और खर्च घटाने के लिए कई कदम उठा रही हैं. पहले दोनों कंपनियां मार्केट शेयर बढ़ाने के लिए काफी पैसा खर्च कर रही थीं. दोनों कंपनियों ने इसके लिए बड़े शहरों में किराया बढ़ाना शुरू कर दिया है. वे ड्राइवर्स को दिए जाने वाले इंसेंटिव्स में भी कटौती कर रही हैं. ओला और उबर ने ड्राइवर्स के फ्रॉड को रोकने के लिए निगरानी भी बढ़ा दी है. यह जानकारी कंपनी एग्जिक्युटिव्स, इन्वेस्टर्स और ड्राइवर्स से बातचीत से मिली है.

बड़े शहरों में दोनों कंपनियों की ग्रोथ रेट पीक पर पहुंच गई है. ऐसे में वे प्रति पैसेंजर लॉस कम करने की कोशिश कर रही हैं. इस बिजनस पर नजर रखने वाले इन्वेस्टर्स और ऐनालिस्टों ने बताया कि ओला और उबर, दोनों को हर महीने अभी 3-4 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है. उबर इंडिया के प्लान से वाकिफ एक सूत्र ने बताया, 'सब्सिडी हमेशा के लिए नहीं दी जा सकती. कस्टमर्स को धीरे-धीरे इसकी आदत डालनी होगी.' इस बारे में ईमेल से पूछे गए सवालों का दोनों कंपनियों से जवाब नहीं मिला.

इस साल फंडिंग कम होने के बाद कंज्यूमर इंटरनेट कंपनियों का ध्यान मुनाफा कमाने पर बढ़ा है. ओला और उबर ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है, जब वे बेंगलुरु में सर्ज प्राइजिंग पर बैन का सामना कर रही हैं और दिल्ली में उनके प्लैटफॉर्म पर ड्राइवर्स की संख्या में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है. पिछले दो साल से अधिक कस्टमर्स हासिल करने और ड्राइवर्स को प्लैटफॉर्म से जोड़ने के लिए वे करोड़ों डॉलर खर्च कर रही थीं, लेकिन अब वे नए फेज में दाखिल हो रही हैं.

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