चुनावी नतीजे से सूचकांक ने भी रचा इतिहास
लोकसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को बहुमत मिलने की धमक बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई में जम कर दिखी और चुनाव नतीजों के साथसाथ शेयर सूचकांक भी कुलांचें भरता हुआ कारोबार के दौरान रिकौर्ड 25,376 अंक के स्तर पर पहुंच गया.
कमाल यह रहा कि 1 घंटे के कारोबार में उत्साहित निवेशकों ने बीएसई और नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी में जम कर कारोबार किया जिस के कारण सूचकांक ने 5 प्रतिशत की जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की. बाजार में यह उत्साह 16 मई को ही नहीं बल्कि इस से पहले टैलीविजन चैनलों पर प्रसारित एक्जिट पोल में भाजपा गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद से ही देखने को मिल रहा था. शुक्रवार को बाजार 25,000 के पार पहुंचा जबकि इस से पहले मंगलवार को अंतिम और 9वें चरण के मतदान में 20,000 अंक को पार कर गया था.
चुनावी नतीजे की सुनामी में बाजार पिछले वर्ष 13 सितंबर से कुलांचें भर रहा है जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. तब से यानी 13 सितंबर, 2013 से 16 मई, 2014 के बीच बाजार मोदी नाम के उत्साह में आएदिन रिकौर्ड बनाता और तोड़ता हुआ करीब 23 फीसदी तक उछल चुका है. इस दौरान रुपए में भी मजबूती रही और हमारी मुद्रा भी मोदी के रंग में रंगती हुई निरंतर नजर आ रही है. रुपया लंबे समय बाद मजबूती के इस स्तर पर पहुंचा है. पिछले माह महंगाई की दर भी घटी है जो बाजार के लिए अनुकूल माहौल ले कर आई. नरेंद्र मोदी से अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद से सूचकांक उड़ान भर रहा है. मोदी के लिए असली परीक्षा उम्मीदों पर खरा उतर कर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की है.
बीमा कंपनियों में धोखाधड़ी पर इरडा सख्त
बीमा कंपनियों में होने वाली धोखाधड़ी पर अब लगाम लग सकती है. बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण यानी इरडा इस तरह की घटनाओं पर नजर रखने के लिए एक निगरानी व्यवस्था बनाने पर विचार कर रहा है. संगठन ने दूसरी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है.
इरडा का मानना है कि यह व्यवस्था लागू होने के बाद बीमा कंपनियों में होने वाली धोखाधड़ी की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सकेगा. व्यवस्था के तहत बीमाधारक, बीमा देने वाली कंपनी और बीमा क्लेम से जुड़ी प्रक्रिया में धोखाधड़ी की संभावना वाली हर प्रक्रिया पर नजर रखी जाएगी. इस में अच्छे रिकौर्डधारी बीमाग्राहक को प्रोत्साहित करने की भी योजना है. बीमा क्षेत्र में मोटर वाहन और स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में सर्वाधिक हेराफेरी होती है. इस तरह के बीमा से जुड़ा शायद ही कोई बीमाधारक होगा जिसे गड़बड़ी नजर न आती हो.
स्वास्थ्य बीमा में सब से ज्यादा गड़बड़ी होती है. इस लेखक का भी एक अनुभव है. पिता की आंख के औपरेशन के लिए कैशलैस कार्ड पर गाजियाबाद का एक नामी अस्पताल वर्ष 2006 में
35 हजार रुपए मांग रहा था. बीमा कंपनी युनाइटेड इंश्योरेंस को अनावश्यक पैसा नहीं भरना पड़े, इसलिए 18 हजार रुपए में एक डाक्टर से इलाज कराया. बीमा कंपनी को बिल भेजा तो उस ने चुप्पी साध ली. मामला वर्ष 2008 में कर्जन रोड स्थित दिल्ली की उपभोक्ता अदालत में गया लेकिन 2012 से फैसला लंबित है. संदेह है कि युनाइटेड इंश्योरेंस ने वहां भी जुगाड़ लगा लिया है. लेखक को लेने के देने पड़े. उस मुकदमे के लिए करीब 10 हजार रुपए और खर्च करने पड़े.
स्पष्ट है कि अस्पताल बीमा कार्ड पर मनमाने पैसे वसूलते हैं. डाक्टर और अस्पताल ऐसे फ्राड में शामिल रहते हैं. स्वास्थ्य बीमा में लगभग 95 फीसदी गड़बड़ी होती है. इसी तरह की गड़बड़ी मोटर बीमा क्षेत्र में भी होती है. आएदिन कहानियां सुनने को मिलती हैं. बीमा क्लेम में गवाहों और एजेंटों का गठजोड़ होता है जो अस्पताल और डाक्टरों की तरह मिलीभगत किए रहते हैं.
कुछ गवाह तो मोटर वाहन क्लेम के मामलों में कई जगह गवाह बनते हैं और कमीशन लेते हैं. उन का यह धंधा बन गया है. उन के पास अलगअलग पहचानपत्र और पेन कार्ड हैं. फर्जीवाड़ा के लिए जो भी आवश्यक दस्तावेज चाहिए होते हैं, उन के पास सब तैयार रहते हैं. उधर, ग्राहकों को बाजार में बीमा कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का भी शिकार होना पड़ रहा है. उन्हें लालच दे कर फर्जी बीमा प्रदाता बन कर कंपनी बदलने की सलाह दी जा रही है जो एक और बड़ा फ्राड है. जरूरत ग्राहक के सतर्क रहने और फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की है.
विज्ञापन का फर्जीवाड़ा कर रहा कबाड़ा
विज्ञापन यानी चीजों का प्रचारप्रसार बाजार की धुरी बन रहा है. पहले किसी वस्तु की महत्ता या गुणवत्ता की कसौटी होती थी उपभोक्ता का अनुभव और खरीदे गए सामान की गुणवत्ता पर उस की प्रतिक्रिया. लोग जिस कंपनी के सामान की तारीफ करते थे उस की बाजार में मांग बढ़ती थी और वह वस्तु लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच जाती थी. अब किसी के पास किसी सामान की तारीफ करने या सुनने की फुरसत नहीं है, इसलिए कंपनियां अपने उत्पाद के सर्वश्रेष्ठ होने का खुद ही प्रचार कर रही हैं. यह अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनने वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली स्थिति है. कंपनियां विज्ञापन में अपने उत्पाद का वह गुण बताती हैं जो उपभोक्ता को प्रभावित करता है.
विज्ञापन से लगता है कि यह उत्पाद एक ही दिन में कायाकल्प कर देगा. उत्पाद खरीद के लिए लाइन लगने लगती है. खानपान अथवा सेहत से जुडे़ विज्ञापनों के लुभावने झांसे में उपभोक्ता जल्दी आ जाता है. विज्ञापनों में कितना भ्रामक प्रचार होता है इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कई कंपनियों ने गत फरवरी में स्वीकार किया है कि उन के विज्ञापन में सचाई नहीं है. भारतीय विज्ञापन मानक परिषद यानी एएससीआई ने इस साल फरवरी में कहा कि उस से 136 विज्ञापनों की शिकायत की गई जिन की उस ने जांच की. 99 कंपनियों ने स्वीकार किया कि उन का दावा गलत है. विज्ञापन में अच्छा दिखाया गया सामान मानक के अनुकूल नहीं है और विज्ञापन गुमराह करने वाला है. परिषद ने कई कंपनियों के पैकेजिंग को भी गुमराह करने वाला पाया है.
कमाल यह है कि उन में 80 फीसदी से अधिक शिकायतें खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग को ले कर थीं. असल में कंपनियां समझती हैं कि ग्राहक को अच्छी पैकेजिंग के जरिए लुभाया जा सकता है. सामान खुलने के बाद वापसी की गारंटी नहीं होती. हर उपभोक्ता लड़ना भी नहीं जानता जिस का लाभ कंपनियां उठाती हैं. ज्यादा दिन नहीं हुए जब विज्ञापन की चोरी का एक मामला सामने आया था जिस में एक टूथपेस्ट कंपनी ने दूसरे पर आरोप लगाया कि उस ने विज्ञापन की नकल की है.
विज्ञापन और प्रचार ही है जिस की बदौलत आसाराम और रामदेव आज उद्योगपति बन गए हैं और निर्मल (कथित निर्मल बाबा) भगवान बने फिर रहे हैं. विज्ञापन एक कला है जिसे बेहद संतुलित मनोवैज्ञानिक ढंग से तैयार किया जाता है. विज्ञापन भरोसा दिलाता है जिस की आड़ में भरोसा दरअसल तोड़ा जा रहा है.