Diwali 2025 : ‘विवेक, दीवाली एकदम करीब आ गई है, तुम ने पार्टी का लेआउट एकदम तैयार नहीं किया है. कैसे होगा काम मेरी समझ में नहीं आ रहा.’ नेहा और उस का दोस्त विवेक इस दीवाली एक पार्टी प्लान कर रहे थे जिस में उस के 10-12 दोस्त आने वाले थे.
‘नेहा, सब प्लान कर लिया है. बस, एक परेशानी सूरज ने फंसा दी तो अब रमेश, संदीप और आनंद भी उसी समस्या की बात कर रहे हैं,’ विवेक ने कहा.
‘क्या समस्या आ रही है? हमें बताओ, हम हल निकालते हैं,’ नेहा बोली.
‘जो समस्या है उस को समस्या कहना ठीक नहीं है. बात हमारे पेरैंट्स की है. उन को घर छोड़ो तो बहुत दिक्कत होती है. साथ पार्टी में ले जाओ तो सहज अनुभव नहीं होता है. रमेश, संदीप और आनंद इस को ले कर परेशान हैं. बताओ, क्या करें?’ विवेक ने उस को पूरी बात सम?ाई.
‘यह कोई परेशानी नहीं है. यह काम मैं संभाल लूंगी. तुम लोग पार्टी की तैयारी करो,’ नेहा बोली.
‘अरे यार, पहले बताओ क्या करना है?’
‘सिंपल है. इस दीवाली पार्टी में हमारे बुजुर्ग भी पार्टी में हिस्सा लेंगे. हम लोग उन के लिए अलग से व्यवस्था कर देंगे. अगर वे पूरी पार्टी में नहीं भी रहना चाहते तो उन का मन करेगा तो उन को जल्दी घर भेज देंगे.’ नेहा की इस बात को विवेक ने दूसरे दोस्तों को बताया. पूरे ग्रुप ने कहा, ‘आइडिया’ अच्छा है.
अब जिम्मेदारी उन लोगों पर थी जिन के घर में बुजुर्ग थे. कुल मिला कर कर 5 लोग हो रहे थे. इन में 3 महिलाएं और 2 पुरुष थे. वे लोग भी खुशीखुशी पार्टी में आने के लिए तैयार हो गए. अब पार्टी में शामिल होने वालों की कुल संख्या
17 हो गई. होटल बुक हो गया. पार्टी में बुजुर्गों के लिए खाने का मेन्यू उन के अनुसार था. नेहा, विवेक और उस के साथी देर तक पार्टी करने वाले थे. उन लोगों ने बुजुर्गों के मनमुताबिक उन को पहले घर भेज दिया. इस तरह से पार्टी हिट रही.
बुजुर्गों का रखें खयाल
युवाओं द्वारा दीवाली की पार्टी का जब आयोजन किया जाए तो उस में घर के बड़ेबुजुर्गों को भी शामिल किया जाए. वैसे, दोनों के बीच उम्र का अंतर होता है. ऐसे में सामंजस्य बैठाना आसान नहीं होता. भारत में बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है. राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अनुसार बुजुर्गों की हिस्सेदारी 2011 में लगभग 9 फीसदी थी जो वर्ष 2036 तक 18 फीसदी तक पहुंच सकती है. 1940 के दशक में भारत में औसत आयु लगभग 32 साल थी जो अब बढ़ कर 70 साल हो गई है.
इस दौरान प्रजनन दर प्रति महिला लगभग 6 बच्चों से घट कर केवल 2 रह गई है. इस से महिलाओं को बारबार प्रसव से गुजरने और बच्चे की देखभाल करने की परेशानियों से काफी हद तक राहत मिल गई है. परिवार का स्वरूप बदल गया है. पहले गांव से लोग शहर केवल कमाई करने आते थे. वे अपना परिवार गांव में रखते थे. जब रिटायर होते तब वे वापस गांव परिवार के पास चले जाते थे. औसत आयु कम होने से बुजुर्गों को अकेलापन कम सहन करना पड़ता था.
अब मुद्दा बदल गया है. लोग शहर में रहने भी लगे हैं. परिवार में 3 पीढि़यां एकसाथ रह रही हैं. पिता, बेटा और पोता एकसाथ रह रहे हैं. इसी वजह से अब ज्यादातर लोग 3 कमरों वाला मकान या फ्लैट खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसे में कई बार बुजुर्गों में शक्तिहीनता, अकेलापन, बेकारी और अलगाव की भावना बढ़ने लगती है. बच्चे भी अपना जीवन सही से जी नहीं पाते हैं. इस समस्या का समाधान यह है कि युवा बुजुर्गों को भी अपनी पार्टी का हिस्सा बनाएं.
‘हेल्पएज इंडिया’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से उजागर हुआ कि कम से कम 47 फीसदी बुजुर्ग अपनी आय के लिए अपने परिवारों पर निर्भर हैं. 34 फीसदी पैंशन व सरकारी सुविधाओं पर निर्भर हैं. 40 फीसदी लोगों ने कहा, ‘जब तक संभव हो तब तक कार्य करते रहना चाहिए.’ हमारे समाज की सब से बड़ी समस्या यह है कि हमें बुजुर्गों को मैनेज करना नहीं आता. देश में बुजुर्गों के अस्पताल न के बराबर हैं. हमारे ओल्डएज होम भी अच्छे नहीं हैं. अकेले रहने से बुजुर्गों में कई बीमारियां पैदा होने लगती हैं.
एक सर्वे में पता चला कि 30 से 50 फीसदी बुजुर्गों में ऐसे लक्षण मौजूद थे जो उन्हें अवसाद का शिकार बनाते हैं. अकेले रहने को विवश बुजुर्गों में महिलाओं की संख्या अधिक है. अवसाद का गरीबी, खराब स्वास्थ्य और अकेलेपन से गहरा संबंध देखा गया. सामाजिक कल्याण की ज्यादातर योजनाएं आर्थिक आधार पर बनती हैं. गरीबी रेखा से नीचे के परिवार इस में शामिल होते हैं. वृद्धावस्था पैंशन सभी को नहीं मिल पाती है.
पार्टियों का बनाएं हिस्सा
ऐसे में यह जरूरी है कि अपने बुजुर्गों का खयाल रखें. उन का अकेलापन दूर करने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय साथ बिताएं. उन को इस बात का एहसास न होने दें कि उन की उपेक्षा हो रही है. उन को अपने दोस्तों और परिवार के लोगों से हमेशा नहीं मिलवा सकते हैं क्योंकि कई बार बुजुर्ग इस के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से तैयार नहीं होते. समयसमय पर युवा अपनी पार्टियों में उन को साथ ले जाएं जैसे शादियों में ले जाते हैं. पार्टी में वे अपने हमउम्र लोगों से मिल सके तो उन को अच्छा लगेगा. वे अपने को बेहतर अनुभव करेंगे.
पार्टी में मेन्यू उन की पसंद के अनुसार का हो. उन की पसंद और सु?ाव के अनुसार कुछ गेम्स या फिर डांसम्यूजिक का प्रबंध करें. पार्टी में उन के हमउम्र लोगों को बुलाएं. जितना समय वे पार्टी में रहना पसंद करें उन को वहां रहने दें. अगर वे घर जल्दी वापस आना चाहें तो उन को भेज दें. आजकल ओला व उबर जैसी सुविधाएं हैं. जब पार्टी में बुजुर्ग शामिल होंगे तब युवाओं के मन में यह बो?ा नहीं रह जाएगा कि वे पार्टी कर रहे हैं और उन के बुजुर्ग घर में कैद हैं.
डांस, म्यूजिक, खाना और अपने मनपसंद लोगों का साथ अपनेआप में अलग अनुभव देता है. बुजुर्गों के करीब आने से परिवारों में घनिष्ठता आएगी और युवाओं में बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी की भावना का विकास हो सकेगा. इस दीवाली बुजुर्गों के साथ पार्टी मनाएं.
घरों में ही नहीं दिलों में भी खुशी के दीये जलाएं. यह कर के देखिए, Diwali 2025
अच्छा लगेगा. –