रेटिंग : ढाई स्टार

निर्माता : मनीष मुंद्रा, गौरव वर्मा और गौरी खान

निर्देशक : हार्दिक मेहता

कलाकार : संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल, सारिका सिंह, ईशा तलवार, अवतार गिल, बीरबल, लिलिपुट, मनमौजी व अन्य

अवधि : दो घंटे

सिनेमा में आाए बदलाव के बावजूद बौलीवुड में आज भी हीरो, हीरोइन और विलेन की कल्पना ही मायने रखती है. बौलीवुड में हर सुविधा इन्हे ही मिलती है, जबकि बौलीवुड में चरित्र कलाकार उसी तरह से उपयोगी और आवश्यक हैं, जिस तरह से हर सब्जी में आलू उपयोगी होता है. बौलीवुड फिल्मों की कहानियां चरित्र या सह चरित्र कलाकारों के बिना आगे नही बढ़ सकती. मगर सैकड़ों फिल्में करने के बाद भी चरित्र कलाकारों को मान सम्मान नहीं मिलता. फिल्मकार हार्दिक मेहता ऐसे ही कलाकार की कहानी और उनकी त्रासदी को पेश करने वाली फिल्म ‘‘कामयाब’’ लेकर आए हैं.

ये भी पढ़ें- ब्रेकअप की खबरों की बीच एक साथ दिखे शिवांगी जोशी-मोहसिन खान, PHOTOS हुईं वायरल

कहानीः

अस्सी और नब्बे के दशक में चरित्र कलाकार सुधीर उर्फ शेरा (संजय मिश्रा) का अपना एक दौर था. अस्सी व नब्बे के दशक में सुधीर तकरीबन हर दूसरी फिल्म में जरुरी माने जाते थे. लेकिन आज वह फिल्मों की चमक-दमक ही नहीं अपनी बेटी, दामाद और नाती से दूर अपने दोस्त और दो पैग के साथ अकेला रहते हैं. अपने जमाने में सुधीर की एक फिल्म का संवाद "बस इंजौइंग लाइफ, और कोई औप्शन थोड़ी है?" इतना लोकप्रिय हुआ था कि अब उस पर सोशल मीडिया पर संदेश बन गए हैं. यानी कि सुधीर अभी भी लोगों के दिलो दिमाग में है. मगर कलाकार के तौर लोग उनका नाम नहीं जानते.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...